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Written By DW
Last Updated : बुधवार, 26 अगस्त 2020 (09:19 IST)

क्या होती है मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी?

Sushant Singh Rajput | क्या होती है मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी?
रिपोर्ट चारु कार्तिकेय
 
कहा जा रहा है कि सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की जांच के सिलसिले में सीबीआई सुशांत की 'मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी' करेगी। जानिए क्या और कितनी उपयोगी होती है मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी।
हिन्दी फिल्मों के अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की सीबीआई द्वारा जांच में एक नया मोड़ आया है। मीडिया में आई खबरों के अनुसार सुशांत के घर की जांच और उनसे जुड़े कई लोगों से पूछताछ के बाद केंद्रीय जांच एजेंसी अब सुशांत की 'मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी' करेगी। ऑटोप्सी यानी शव का परीक्षण होता है। मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी को एक प्रकार का दिमाग का पोस्टमार्टम कहा जा रहा है।
सुशांत सिंह राजपूत 14 जून को मुंबई में अपने फ्लैट में मृत पाए गए थे। उनकी मौत को शुरू में आत्महत्या माना जा रहा था, लेकिन बाद में पटना में रहने वाले उनके पिता ने दावा किया कि उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाया गया था। उन्होंने उनके बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में 6 लोगों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई जिनमें सुशांत की पूर्व गर्लफ्रेंड अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार के 3 सदस्य शामिल हैं। सीबीआई द्वारा जांच की मांगों के बीच मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और सर्वोच्च न्यायालय ने जांच सीबीआई को सौंप दी।
मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी हत्या के मामलों में और विशेष रूप से आत्महत्या के मामलों में जांच की एक तकनीक होती है। इसमें मृतक के जीवन से जुड़े कई पहलुओं की जांच के जरिए मृत्यु के पहले उसकी मनोवैज्ञानिक अवस्था समझने की कोशिश की जाती है। इसका इस्तेमाल खासकर उन मामलों में कारगर होता है जिनमें मृत्यु के कारण को लेकर संदेह हो। इसमें मृतक के नजदीकी लोगों से बातचीत की जाती है, उसका मेडिकल इतिहास देखा जाता है और अगर वो कोई दवाइयां ले रहा हो तो उनका भी अध्ययन किया जाता है।
वो कहां कहां गया था, उसने क्या क्या पढ़ा था और विशेष रूप से उसने इंटरनेट पर क्या क्या किया था, इसकी जांच की जाती है। इसमें मुकम्मल रूप से मृतक की मानसिक अवस्था की रूपरेखा तैयार की जाती है और इसके लिए आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति के निजी इतिहास में लंबे समय तक भी पीछे जाना पड़ता है। उत्तरप्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह के मुताबिक इस तरह की प्रोफाइलिंग में मृतक की कम से कम 6 महीने तक की गतिविधियां तो देखनी ही चाहिए।
 
मीडिया में आईं खबरों में कहा जा रहा है कि मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी का इस्तेमाल इसके पहले सिर्फ सुनंदा पुष्कर की मृत्यु और दिल्ली के बुराड़ी में एक ही परिवार के 11 लोगों के एक साथ मृत पाए जाने वाले मामलों में किया गया था। लेकिन विक्रम सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया कि इसका इस्तेमाल बहुत आम है और उन्होंने खुद दहेज को लेकर उत्पीड़न से संबंधित मौत और दूसरे भी ऐसे कई मामलों में इसका इस्तेमाल किया है।
 
विक्रम सिंह ने यह भी बताया कि मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी को अदालत में सबूत के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके बावजूद उनका मानना है कि इसका इस्तेमाल जांच में बहुत उपयोगी सिद्ध होता है।
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