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Written By DW
Last Updated : शनिवार, 11 जून 2022 (08:53 IST)

फैक्ट चेक: मंकीपॉक्स के बारे में फैल रही गलत जानकारियों का सच

फैक्ट चेक: मंकीपॉक्स के बारे में फैल रही गलत जानकारियों का सच - The truth of the misinformation spreading about monkeypox
रिपोर्ट: जिमोन शिरमाखेर (सहयोग इनेस आइजेले)
 
मंकीपॉक्स बीमारी क्या एस्ट्राजेनेका के कोरानावायरस टीके के कारण ऐसे भड़की? या ये वायरस किसी लैब से निकला? मंकीपॉक्स से जुड़ी कुछ घनघोर गलत धारणाओं और मिथकों पर नजर डालिए डॉयचे वेले के फैक्ट चेक में।
 
क्या मंकीपॉक्स महज फेक न्यूज है?
 
दावाः ऐसे सोशल मीडिया यूजर हैं जिनका दावा है कि मंकीपॉक्स का अस्तित्व है ही नहीं। अपने दावे के समर्थन में वे ऐसी रिपोर्टें दिखाते हैं जिनमें पुरानी तस्वीरें छपी हैं या दाद-खुजली जैसी दूसरी बीमारियों का हवाला दिया गया है। ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्मों में इनकी तुलना दिखाते हुए बेशुमार फोटो सर्कुलेट किए जा रहे हैं।
 
डीडब्लू फैक्ट चेकः दावा गलत है
 
मंकीपॉक्स वाकई है। यह वायरस 1958 से अस्तित्व में है। 1970 से हम जानते हैं कि ये इंसानों में भी जा सकता है। समय बेसमय ये बीमारी भड़की है लेकिन वो पश्चिम और मध्य अफ्रीका तक ही सीमित रही है। नाईजीरिया में अभी ये बीमारी फैली हुई है। 2017 में शुरू हुई थी। 500 मामले दर्ज किए गए हैं।
 
मंकीपॉक्स को फर्जी बताने वाली रिपोर्टों में बतौर साक्ष्य जो 'पुरानी' तस्वीरें इस्तेमाल की गई हैं वे ज्यादातर उस बीमारी की एजेंसी तस्वीरें हैं जो सालों से उनके अलग अलग प्रदाताओं की ईजाद की हुई हैं। चिकित्सा मामलों से जुड़ी रिपोर्टों में बार बार एक जैसी तस्वीरों का इस्तेमाल कोई असामान्य बात नहीं है क्योंकि कुल चयन अपेक्षाकृत छोटा होता है।
 
कुछ ट्वीटर यूजर मंकीपॉक्स की खबरों को झूठ साबित करने के लिए दाद-खुजली से जुड़े लेख और उनमें प्रकाशित तस्वीरें डाल रहे हैं।
 
ऑस्ट्रेलिया में क्वींसलैंड सरकार के दाद-खुजली पर एक बयान की तस्वीर वास्तव में ट्वीट हुई थी। मंकीपॉक्स पर हेल्थसाइट डॉट कॉम में प्रकाशित लेख का मामले थोड़ा ज्यादा पेचीदा हैं। 19 मई 2022 के उस लेख के साथ जो तस्वीर लगी है वो ट्वीट पर डाली गई तस्वीर नहीं बल्कि अलग है।
 
दूसरी तरफ, इसी लेख के 17 जुलाई 2021 के एक पुराने आर्काइव्ड संस्करण में दाद-खुजली की तस्वीर को गलत ढंग से मंकीपॉक्स के चित्र की तरह दिखाया गया था। वह गलती सुधार ली गई थी और आलेख संशोधित कर दिया गया था। एक वेबसाइट पर हुई संपादकीय चूक से ये तथ्य नहीं बदल जाता कि मंकीपॉक्स सच में है।
 
कोविड टीकाकरण से हुआ मंकीपॉक्स?
 
दावाः कहा गया कि एस्ट्राजेनेका के कोरोना टीके में चिंपाजियों के कमजोर एडीनोवायरस, कोरोनावायरस स्पाइक प्रोटीन के डीएनए वाहक के तौर पर मौजूद हैं। कुछ सोशल मीडिया यूजरों के मुताबिक इससे पता चलता है कि मंकीपॉक्स संक्रमण वेक्टर टीके का नतीजा हैं।
 
डीडब्लू फैक्ट चेकः दावा गलत है
 
भले ही 'मंकी' शब्द पहली नजर में एक संभावित जुड़ाव दिखाता है, लेकिन इन वायरसों का एक दूसरे से कोई लेनादेना नहीं है।
 
जर्मन सोसायटी फॉर इम्युनोलॉजी की प्रमुख क्रिस्टीन फाक बताती हैं, 'इसे मंकीपॉक्स इसलिए कहा जाता है क्योंकि सबसे पहले 1958 में ये बंदरों के बीच मिला था। लेकिन असल में ये बीमारी, कतरने वाले जानवरों से आती है, बंदर इस बीमारी के संभवतः इंटरमीडिएट होस्ट हैं।'
 
वह कहती हैं कि वेक्टर वैक्सीनों का आधार बनने वाले, चिंपाजी के एडीनोवायरस समेत तमाम एडीनोवायरस, चेचक के वायरसों से बिल्कुल ही अलग श्रेणी के वायरस हैं, उनकी विशेषताएं कतई अलग होती हैं।
 
क्रिस्टीन फाक के मुताबिक, ये वायरस सर्दी जैसे संक्रमण दे सकते हैं। 'इनमें से कुछ ऐसे हैं जिन्हें चिंपाजियों से अलग कर टीके बनाने के लिए संवर्धित किया गया है ताकि हमारे शरीरों में पहले से इम्युनिटी न पैदा हो सके, जैसा कि मानव एडीनोवायरस में होता है।' फाक और दूसरे जानकार जोर देकर कहते हैं कि कोविड-19 टीकों का मंकीपॉक्स बीमारी से कोई लेनादेना नहीं है।
 
क्या मंकीपॉक्स वायरस वुहान की लैबोरेटरी से निकला था?
 
दावाः कहा जाता है कि वुहान स्थित वाइरोलजी संस्थान ने मंकीपॉक्स वायरसों पर प्रयोग किए हैं। कुछ के लिए ये मौजूदा बीमारी के मूल स्थान का साफ संकेत है। ये कोरानावायरस की 'लैब थ्योरी' की याद दिलाता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि ऐसा  नहीं है लेकिन इसे पूरी तरह से खारिज भी नहीं किया है।
 
डीडब्लू फैक्ट चेकः दावा भ्रामक है
 
मंकीपॉक्स वायरसों की पीसीआर टेस्टिंग से जुड़े प्रयोग वुहान में बेशक हुए थे। ये निर्विवाद है। फरवरी 2022 में संस्थान की ओर ये प्रकाशित अध्ययन भी इसे पारदर्शी बनाता है। लेकिन इस अध्ययन में वायरस के एक अंश पर ही प्रयोग किया गया जिसमें मंकीपॉक्स का एकतिहाई जीनोम ही था। अध्ययन के मुताबिक, वो अंश पूरी तरह से महफूज था क्योंकि उसके संक्रमित होने का किसी भी तरह का जोखिम एक बार फिर मिटा दिया गया था।
 
ओरेगॉन नेशनल प्राइमैट रिसर्च सेंटर में इम्युनोलॉजिस्ट और प्रोफेसर मार्क स्लीफ्का ने डीडब्लू को बताया कि 'इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि मंकीपॉक्स किसी लैब से निकला था। मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के कई देशों में ये ये जानवरों के आसरों के आसपास ही, कुदरत में मौजूद है। कमोबेश हर साल मानवों में छिटपुट संक्रमण होते रहे हैं।'
 
उनका ये भी कहना है कि वैज्ञानिक जीनोम की सिक्वेन्सिग से वायरस के अलग अलग स्ट्रेनों में अंतर भी कर सकते हैं। इससे उन्हें ये स्थापित करने में मदद मिलती है कि वायरस का संबंध, मंकीपॉक्स वायरस के पश्चिम अफ्रीकी स्ट्रेन या मध्य अफ्रीकी स्ट्रेन से है या नहीं। उनके मुताबिक, 'मेरी जानकारी में शुरुआती संक्रमित मामलों में से कोई भी ऐसा नहीं था जिसने पहले चीन की यात्रा की हो।'
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस बात की पुष्टि की है कि तमाम मौजूदा मामले, पश्चिम अफ्रीका में पाए गए मंकीपॉक्स वायरस के स्ट्रेन से जुड़ते हैं। यूरोपीय रोग नियंत्रण केंद्र से प्रकाशित एक पर्चे के मुताबिक यूरोप में मंकीपॉक्स से संक्रमण के मामलों में वृद्धि शायद कथित रूप से स्प्रेडर घटनाओं यानी रोग फैलाने वाली घटनाओं से है। ऐसे मामले भी देखे गए जब पुरुषों के परस्पर यौन संसर्ग में भी वायरस संक्रमित हुआ। क्योंकि मंकीपॉक्स बुनियादी रूप से सीधे म्यूकस यानी श्लेष्म झिल्ली के संपर्क से फैलता है।
 
दावाः मंकीपॉक्स काफी पहले ही तैयार किया जा चुका था- ये दावा भी सोशल मीडिया नेटवर्कों में फैलाया जा रहा है। म्युनिख सुरक्षा सम्मेलन में, मंकीपॉक्स जैसे एक हालात पर आधारित एक सिम्युलेशन गेम इसका एक सबूत माना जा सकता है। बिल गेट्स और मंकीपॉक्स फैलने के बीच सीधा संबंध भी कई दावों में किया जाता है। कहा जाता है कि वो लगातार ऐसे किसी सूरतेहाल के बारे में लगातार आगाह करते रहे थे।
 
डीडब्लू फैक्ट चेकः दावा भ्रामक है
 
म्युनिख सुरक्षा सम्मेलन में कथित तौर पर योजनाबद्ध मंकीपॉक्स महामारी के सबूत के रूप में इस्तेमाल किया गया सिम्युलेशन गेम अस्तित्व में है और उसमें मई 2022 में काल्पनिक मंकीपॉक्स महामारी का परिदृश्य भी दिखाया गया है। म्युनिख सुरक्षा सम्मेलन के एक हिस्से के रूप में न्यूक्लियर थ्रेट इनिशिएटिव (एनटीआई) ने वैश्विक महामारी समन्वय में कमियों की ओर ध्यान दिलाने के लिए ये सिम्युलेशन शुरू किया था।
 
सिम्युलेशन गेम्स का इस्तेमाल कई संदर्भों में, पेचीदा हालात या सुरक्षा जोखिमों की तैयारी के लिए या प्रक्रियागत अभ्यास या समीक्षा के लिए किया जाता है। इस तथ्य से ये पता चलता है कि इस किस्म के हालात आज की तारीख में मौजूद हैं और इससे इसके यथार्थवादी होने का पता चलता है।
 
इसमें दिखाए हालात काफी नजदीकी हैं, लेकिन वास्तविकता से मेल नहीं खाते। मिसाल के लिए वास्तविक रोगाणु कम संक्रामक होता है और संक्रमण फैलने के मार्ग भी म्युनिख सुरक्षा सम्मेलन में दिखायी प्रस्तुति से अलग होते हैं। एनटीआई ने हाल में एक बयान के जरिए इससे फिर स्पष्ट भी किया था: 'हमारे अभ्यास के तहत निर्मित परिदृश्य में मंकीपॉक्स वायरस के एक स्ट्रेन का काल्पनिक डिजाइन रखा गया था जो कि ज्यादा संक्रामक भी था और वायरस के प्राकृतिक स्ट्रेनों के मुकाबले ज्यादा खतरनाक भी, और जो वैश्विक स्तर पर फैलने वाला था- जिससे आखिरकार 18 महीनों के दरमियान तीन अरब से ज्यादा मामले और 27 करोड़ मौतें दिखाई गई थीं।'
 
एनटीआई का कहना है कि मौजूदा महामारी में ये मानने का कोई आधार नहीं है कि, 'ये पहले से तैयार किए रोगाणु की वजह से फैली है, ऐसी किसी परिकल्पना को साबित करने वाला कोई पक्का सबूत हमने नहीं देखा है। हम ये भी नहीं मानते हैं कि मौजूदा महामारी में काल्पनिक रूप से डिजाइन किए हुए रोगाणु जितनी तेजी से फैलने की क्षमता है या वो उतनी ज्यादा जानलेवा भी होगी।'
 
जहां तक बिल गेट्स से जुड़े दावों का सवाल है, तो ये सही है कि अरबपति गेट्स समाजसेवी भी हैं और लंबे समय से अपनी फाउंडेशन के जरिए रोग नियंत्रण कार्यों में जुड़े रहे हैं। लंबे समय से वे जैव-आतंकवाद और वैश्विक महामारियों के खतरों से भी आगाह कराते आए हैं जिनमें मिसाल के तौर पर चेचक महामारी का भी जिक्र है। ऐसी किसी महामारी की संभावना या चेचक के वायरसों के संभावित जैव-आतंकवादी हमलों के बारे में विभिन्न शोध आलेखों में चर्चा और बहस होती आ रही है। गेट्स ने अपने बयानों में विशेषतौर पर मंकीपॉक्स का जिक्र कभी नहीं किया है।
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