युद्ध के कारण यूरोपीय देशों में महंगाई बेलगाम
यूरो मुद्रा का इस्तेमाल करने वाले देशों में महंगाई रिकॉर्ड दर स्तर पर पहुंच गई है। यूरोप की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक साथ कई मोर्चे पर संकट से जूझ रही है। महामारी और युद्ध के संकट ने महंगाई बढ़ा दी है और विकास घट गया है। एक तरफ यूक्रेन युद्ध के प्रभाव में ईंधन की कीमतें आसमान छू रही हैं तो दूसरी तरफ कोविड की महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी पूरी तरह से लौटी नहीं है। इन देशों में रहने वालों के घरेलू खर्च का बजट गड़बड़ा गया है।
अप्रैल के महीने में सालाना महंगाई की दर 7.5 फीसदी पर चली गई है। यूरोजोन में 1997 में महंगाई के आंकड़े दर्ज होने शुरू हुए थे और तब से अब तक के दौर में यह सबसे ज्यादा है। इसके साथ ही 6ठी बार लगातार रिकॉर्ड टूटा है। इससे पहले मार्च में यह भी 7.4 फीसदी के साथ यह रिकॉर्ड टूटा था। यूरोजोन में रहने वाले 34.3 करोड़ लोगों पर यूक्रेन युद्ध के असर का पता इससे पता चल जाता है कि यहां ऊर्जा की कीमतें 38 फीसदी बढ़ गई हैं।
इसके साथ ही यह आशंका भी लगातार बनी हुई है कि रूस से तेल और गैस की सप्लाई आने वाले हफ्तों या महीनों में रुक सकती है। रूस दुनिया में तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है। जाहिर है कि इस आशंका ने तेल और गैस की कीमतों को और ज्यादा बढ़ाया है। महामारी के चलते बीते दो साल से ज्यादा समय में तेल की मांग और कीमत काफी नीचे चले गए थे। इसके नतीजे में तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक और उसके सहयोगी रूस ने उत्पादन बढ़ाने में काफी सावधानी बरती और फिर तेल के दाम ऊपर चले गए। युद्ध शुरू होने से पहले ही बढ़ रही तेल की कीमतों को अब पर लग गए हैं।
घरेलू बजट बिगड़ा
यूरोपीय संघ की सांख्यिकी एजेंसी यूरोस्टेट ने शुक्रवार को ये आंकड़े जारी किए। इनकी गूंज राजनीति और अर्थव्यवस्था में सुनाई दे रही है। जर्मनी ने बिजली की बिलों में अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए लिया जा रहा सरचार्ज खत्म कर दिया है। इससे औसत जर्मन परिवारों को सालाना करीब 300 यूरो की बचत होगी। जर्मनी की आईजी मेटल इंडस्ट्रियल यूनियन देश के स्टील क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए 8।2 फीसदी सालाना वेतन बढ़ोत्तरी पर चर्चा करने जा रहा है।
घर को गर्म रखने, बिजली और कारों के लिए ईंधन की कीमतों के और बढ़ने के डर ने ही यूरोपीय सरकारों को रूस से ऊर्जा के आयात को पूरी तरह बंद करने से रोक रखा है। मुद्रास्फीति यूरोपीय सेंट्रल बैंक पर भी आने वाले महीनों में ब्याज दरों को बढ़ाने के लिए दबाव बना रही है जो रिकॉर्ड निचले स्तर पर है। हालांकि महंगाई को रोकने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाना भी अर्थव्यवस्था के सामान्य होने की प्रक्रिया में बाधा बनेगी जो पहले ही ऊर्जा की कमी, युद्ध और कोविड 19 से जूझ रही है।
यूरोजोन के 19 सदस्य देशों में इस साल के पहले 3 महीनों में विकास दर में 0.2 फीसदी की गिरावट आई है। कोविड 19 के व्यापक फैलाव के दौर में लोगों ने ऑफलाइन सेवाओं का इस्तेमाल बहुत कम कर दिया दूसरी तरफ महंगाई के कारण भी मांग नहीं बढ़ रही है।
विकास दर में कमी
जर्मनी की अर्थव्यवस्था ने 2022 की पहली तिमाही में 0.2 फीसदी विकास दर हासिल की है। इस तरह से यह तकनीकी रूप से मंदी को टालने में सफल रही है। 2021 में विकास दर लगातार कम हो रहा था। साल की आखिरी तिमाही में तो जीडीपी के विकास दर में 0.3 फीसदी की कमी आई थी। उसके बाद कोरोना के संक्रमण और यूक्रेन युद्ध के चलते आशंका पैदा हो गई थी कि यह मंदी का शिकार हो सकता है पर ऐसा नहीं हुआ।
यूक्रेन युद्ध के चलते कई जर्मन कंपनियों के उत्पादन में बाधा आई है। प्रमुख कार कंपनी फोल्क्सवागन को तो कई बार अपनी फैक्ट्री बंद करने की नौबत आ गई। इसी हफ्ते की शुरुआत में 2022 के लिए जर्मनी ने विकास दर का अनुमान 3.6 फीसदी से घटा कर 2.2 कर दिया।
महंगाई के कारण फ्रांस में भी पहली तिमाही में विकास दर घट कर शून्य हो गई है। इससे पहले अनुमान लगाया गया था कि यह 0.3 फीसदी बढ़ेगी। इसी तरह वहां सालाना विकास दर भी अप्रैल में बढ़ कर 4.8 हो गई है जो एक महीने पहले 4.5 फीसदी थी।
फ्रांस की अर्थव्यवस्था ने पिछले साल मजबूत वापसी की थी और ऐसा लग रहा था कि कोरोना काल में हुए नुकसान की सारी भरपाई हो गई लेकिन अब जो हालात बन रहे हैं, उसमें मंदी का आशंका जोर पकड़ रही है। कीमतों के ज्यादा होने से मांग में तेजी नहीं आ रही है दूसरी तरफ ऊर्जा और खाने-पीने की चीजों की सप्लाई पर संकट मंडरा रहा है।
एनआर/ओएसजे (एपी, एएफपी)