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Written By DW
Last Updated : शनिवार, 7 अगस्त 2021 (10:06 IST)

शिक्षा में आरक्षण से पिछड़े तबके को कितना फायदा?

शिक्षा में आरक्षण से पिछड़े तबके को कितना फायदा? - How much benefit will the backward class get from reservation in education?
रिपोर्ट : प्रभाकर मणि तिवारी
 
केंद्र सरकार ने मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए अन्य पिछड़े तबके (ओबीसी) और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के छात्रों के लिए क्रमश: 27 और 10 फीसदी आरक्षण का एलान किया है। सवाल उठने की वजह यह है कि आरक्षण के जरिए भारतीय तकनीकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले के बाद ऐसे बहुत से छात्र अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। केंद्र सरकार की ओर से राज्यसभा में इसी सप्ताह पेश आंकड़ों के मुताबिक बीते 5 वर्षों के दौरान देश के 7 भारतीय तकनीकी संस्थानों (आईआईटी) में बीच में ही पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों में से करीब 63 फीसदी आरक्षित वर्गों के हैं।
 
सरकारी आंकड़ा
 
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने इस बारे में इस सप्ताह संसद में आंकड़े पेश किए। बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों में से लगभग 40 फीसदी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तबके के थे। कुछ संस्थानों में तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी 72 फीसदी तक थी।
 
यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि आईआईटी में करीब आधे छात्र आरक्षित वर्ग वाले होते हैं। उनमें से 23 फीसदी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति से आते हैं। दलित और आदिवासी संगठन लंबे अरसे से दलील देते रहे हैं कि इन संस्थानों में पढ़ाई करने वाले आरक्षित श्रेणी के छात्र हमेशा से भारी दबाव में रहते हैं और उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
 
उधर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राज्यसभा को बताया कि आरक्षित वर्ग के छात्रों के इन संस्थानों को छोड़ने की मुख्य वजह छात्रों को अपनी पसंद का विभाग न मिलना या संस्‍थानों का पसंद नही आना रहा। कई बार छात्रों ने अपने निजी वजहों से भी बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। केरल के सांसद वी. शिवादासन ने सरकार से सवाल किया था कि सरकार के खर्चे पर चलने वाले तकनीकी संस्थानों में छात्रों के बीच में पढ़ाई छोड़ने की क्या वजह है और सरकार ने इस पर अंकुश लगाने के लिए क्या कदम उठाए हैं?
 
पढ़ाई छोड़ना पुरानी समस्या
 
आरक्षित वर्ग के छात्रों के आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों में दाखिले के बावजूद बीच रास्ते में पढ़ाई छोड़ने की समस्या पुरानी है। 25 जुलाई, 2019 को तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने सदन में बताया था कि बीते दो वर्षों के दौरान (2017-2019) आईआईटी के 2,461 छात्रों ने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी। उनमें 1290 सामान्य वर्ग के थे और 1171 आरक्षित वर्ग के। आरक्षित वर्ग में सबसे ज्यादा 601 छात्र ओबीसी, 371 छात्र अनुसूचित जाति और 199 अनुसूचित जनजाति तबके के थे। यानी आईआईटी की पढ़ाई बीच में ही छोड़ने वाले छात्रों में सामान्य वर्ग के 52.4 फीसदी, अनुसूचित जाति के 15.07 फीसदी, अनुसूचित जनजाति के 8.08 फीसदी और ओबीसी के 24.42 फीसदी थे। इसी दौरान आईआईएम की पढ़ाई छोड़ने वाले 99 छात्रों में 37 छात्र सामान्य वर्ग के थे और 62 छात्र आरक्षित वर्ग के।
 
पढ़ाई छोड़ने की वजह?
 
जिन संस्थानों में दाखिला लेना हर छात्र का सपना होता है वहां आसानी से दाखिला मिलने के बाद आरक्षित वर्ग के छात्र पढ़ाई बीच में ही क्यों छोड़ रहे हैं। इस सवाल का कोई सीधा और आसान जवाब नहीं है। शिक्षाशास्त्रियों का कहना है कि आरक्षण के जरिए ऐसे संस्थानों में दाखिला लेने के बाद छात्रों में असफलता का डर बढ़ जाता है। इससे वे हीन भावना का शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा कई बार आरक्षित वर्ग के छात्र अपने साथ भेदभाव और दुर्व्यवहार की भी शिकायत करते रहे हैं।
 
एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आरएन बनर्जी बताते हैं कि ऐसे छात्रों में हीन भावना साफ नजर आती है। आरक्षण की वजह से उनको दाखिला तो मिल जाता है। लेकिन संस्थान में पढ़ाई के दबाव में वह बिखरने लगते हैं। इसके अलावा उनके साथ भेदभाव की शिकायतें भी मिलती रहती हैं जो कुछ हद तक सही भी होती हैं। प्लेसमेंट के दौरान भी ऐसे छात्र बढ़िया नौकरी हासिल करने में नाकाम रहते हैं। इसी वजह से कुछ दिनों के बाद आरक्षित तबके के कई छात्रों का इन संस्थानों से मोहभंग हो जाता है।
 
शिक्षाशास्त्री गणेश कुमार दास बताते हैं कि सरकार ने उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण तो लागू कर दिया है। लेकिन इन संस्थानों में जातिगत भेदभाव को दूर करने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जा सके हैं। हालांकि कोई संस्थान इस बात को कबूल नहीं करता। लेकिन ऐसे संस्थानों में आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के छात्रों बीच विभाजन की लकीर साफ देखी जा सकती है। कई जगह प्रोफेसर भी भेदभाव करते हैं। उनके साथ अछूतों की तरह का बर्ताव किया जाता है।
 
सिर्फ दाखिले से नहीं बनेगी बात
 
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जबरदस्त प्रतिद्वंद्विता के बाद आईआईटी में दाखिला पाने वाले छात्रों व उनके अभिभावकों को पहले लगता है कि महज दाखिला मिलते ही सुनहरे भविष्य के दरवाजे खुल गए हैं। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं होता। परिसर के भीतर जबरदस्त प्रतिद्वंद्विता का माहौल होता है। हर सेमेस्टर में बेहतर प्रदर्शन करने के दबाव में दिन-रात पढ़ते हुए कई छात्र इस दबाव का सामना नहीं कर पाते और वे या तो आत्महत्या की राह चुन लेते हैं या फिर संस्थान छोड़ने का। आईआईटी में पढ़ाई के दौरान महज कक्षा ही नहीं बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करने का निरंतर दबाव रहता है।
 
समाजशास्त्री मोहित कुमार पाठक कहते हैं कि आईआईटी में आरक्षित तबके के छात्रों का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता है। ऐसे में परिसर का अंग्रेजीदां माहौल उनको रास नहीं आता। उनके आत्मविश्वास को ठेस पहुंचती है और वे हीन भावना का शिकार हो जाते हैं। यहां तमाम पढ़ाई अंग्रेजी में होती है। पढ़ाई व दूसरी गतिविधियों के दबाव में एक साथ पढ़ने वाले छात्र भी आपस में बातचीत करने का ज्यादा समय नहीं निकाल पाते। वह कहते हैं कि बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव, बेहतर प्लेसमेंट के लिए अभिभावकों की उम्मीदों के बोझ और इस वजह से लगातार बढ़ते एकाकीपन के चलते कई छात्र धीरे-धीरे अवसादग्रस्त हो जाते हैं। आखिर में वे पढ़ाई छोड़ कर पलायन का रास्ता अपनाते हैं।
 
तमाम विशेषज्ञों में इस बात पर आम राय है कि महज दाखिले में आरक्षण से ही पिछड़े तबके के छात्रों का खास भला नहीं होगा। जरूरत है ऐसे तमाम संस्थानों में अनुकूल माहौल तैयार करने की जहां अगड़े और पिछड़े तबके के छात्रों के बीच भेदभाव की कोई रेखा नहीं हो।
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