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Written By DW
Last Updated : सोमवार, 15 मार्च 2021 (14:26 IST)

चीन कम्युनिस्ट पार्टी में नई जान फूंककर और ताकतवर बनना चाहता है

चीन कम्युनिस्ट पार्टी में नई जान फूंककर और ताकतवर बनना चाहता है - China wants to revive and become stronger in the Communist Party
चीन पूरी दुनिया पर छा जाने के लिए बेकरार है। इसके लिए चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी में नई जान फूंकी जा रही है। जानकार कहते हैं कि चीन की बढ़ती ताकत विश्व स्तर पर टकरावों को जन्म दे सकती है।
 
पिछले दिनों चीन की सर्वोच्च विधायी संस्था, नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) की सालाना बैठक में हुए प्रमख भाषणों का सबसे ज्यादा जोर कायाकल्प पर रहा। तीन हजार सदस्यों वाली कांग्रेस की यह बैठक साल का सबसे बड़ा राजनीतिक आयोजन है। इसमें सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी का अति उत्साही दूरगामी उद्देश्य निहित थाः सही मायनों में वैश्विक शक्ति के रूप में चीन का राष्ट्र निर्माण! ऐसी शक्ति जिसे बाकी दुनिया झुक कर सलाम करे!
 
इस लक्ष्य के साथ कम्युनिस्ट पार्टी के सत्ता में बने रहने का लक्ष्य भी गुंथा हुआ है। डिजिटल स्पेस की सेंसरिंग, समाचार मीडिया पर नियंत्रण और सरकार या पार्टी की सार्वजनिक आलोचना करने वालों को जेल। इस तरह पार्टी अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखती है। लेकिन वह जनता को खुश रखने की कोशिश भी करती है। दुनिया में अपने बढ़ते दबदबे की झलक दिखाकर राष्ट्रीय गौरव को उभारती है। इसके जरिए वह 70 साल से भी ज्यादा वक्त से जारी अपनी हुकूमत की वैधता को भी साबित करने की कोशिश करती है।
 
मौकों की तलाश
 
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में नंबर तीन की हैसियत रखने वाले पदाधिकारी ली चांगशू ने एनपीसी के सदस्यों से कहा कि चीनी राष्ट्र को कायाकल्प की तरफ एक और विशाल कदम बढ़ाने के लिए अग्रसर करते हुए सेंट्रल कमेटी ने आकर्षक नतीजे हासिल किए हैं। इससे हमारे लोग खुश हैं और यह बात इतिहास में दर्ज होगी।
 
कायाकल्प की बात मंत्र की तरह दोहराई जाती है। चीनी कलेंडर में बैल का वर्ष मनाते हुए राष्ट्रीय कला संग्रहालय में चहुं दिशा यही मंत्र अभिव्यक्त किया गया था। प्रदर्शनी के परिचय में एक परिश्रमी बैल को दिखाते हुए पार्टी नेता और राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग को चीनी राष्ट्र के महान प्रयास की समझ को गहरा बनाने का श्रेय दिया गया था। ये नजरिया हलचल भरा है। अमेरिका और अन्य देशों की सरकारें चीन के उदय और उसकी वजह से होने वाले वैश्विक बदलावों के बीच क्या रास्ता निकाला जाए, इस पर मंथन करने लगी हैं।
 
चीनी नेता अमेरिकी सीमा-शुल्कों और प्रतिबंधों को चुनौती देते हुए एक ज्यादा व्यवस्थित अर्थव्यवस्था और एक ज्यादा शक्तिशाली सेना बनाने के अलावा घरेलू बाजार की वृद्धि और हाईटेक क्षमताओं को और तेज करने में जुटे हैं। वे विश्व नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए अवसरों की तलाश कर रहे हैं, कोविड-19 की वैश्विक महामारी से लेकर जलवायु परिवर्तन तक। लेकिन मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर दूसरों की मांगें मानने के झंझट से खुद को मुक्त रखते हैं।
 
चुनौतियां
 
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के लिए इसमें बहुत सी चुनौतियां बनती हैं। जलवायु परिवर्तन पर सहयोग के लिए तो जगह है। व्यापार और प्रौद्योगिकी पर कुछ मतभेद सुलझाए जाने हैं। पश्चिमी प्रशांत महासागर पर कब्जे के लिए दोनों देशों की नौ सेनाओं में होड़ लगी है। ताइवान, हांगकांग और चीन के मुस्लिम बहुल शिनचियांग क्षेत्र पर गहरे विभाजन बने हुए हैं जहां दोनों पक्ष अपने अपने दावों पर अड़े हैं।
 
कम्युनिस्ट पार्टी ने इस वर्ष के लिए लक्ष्य रखा गया है सामान्यतः समृद्ध समाज का निर्माण। देश की प्रति व्यक्ति जीडीपी दस हजार डॉलर से ऊपर हो गई है। जिसके चलते चीन उच्च मध्यवर्गीय आय वाले देशों की रैंक में अपनी जगह पुख्ता कर चुका है। हालांकि शहरी अमीरों और ग्रामीण गरीबों की संपत्ति में अंतर की चौड़ी खाई है।
 
अंतरिम लक्ष्य के रूप में शी जिनपिंग ने कहा है कि 2035 में अर्थव्यवस्था का आकार दोगुना हो जाएगा। और प्रति व्यक्ति जीडीपी करीब 20 हजार डॉलर हो जाएगी। लेकिन इस रास्ते में कुछ बाधाएं हैं। अर्थव्यवस्था के पूरी तरह विकसित होने से पहले ही चीनी आबादी बूढ़ी हो रही है। ये चीन में दशकों तक लागू रही एक-संतान कड़ी नीति का नतीजा है। ये साफ नहीं है कि पार्टी का कठोर सिस्टम तेजी से जटिल होते समाज और वृद्धि की केंद्रीय योजना के बजाय रचनात्मकता पर तेजी से निर्भर होती जा रही अर्थव्यवस्था को मैनेज भी कर पाएगा या नहीं।
 
राख से उठा चीन
 
कायाकल्प की शब्दावली चीन के साम्राजी दौर के चर्मोत्कर्ष की याद दिलाती है जब वो एशिया में प्रौद्योगिकी और संस्कृति का सरताज था। चिंग वंश उत्तरोतर 19वीं सदी में कमजोर पड़ गया और उस दौरान सैन्य लिहाज से ज्यादा ताकतवर हो चुके पश्चिमी देशों ने उसे बहुत सी क्षेत्रीय और व्यापार रियायतें देने पर विवश कर दिया।  
 
कायाकल्प का विचार सिर्फ कम्युनिस्टों की अपीलों को ही नहीं बल्कि शुरुआती 20वीं सदी के अन्य क्रांतिकारियों और सुधारकों की अपीलों को भी एक आधार देता है। लेकिन जब विभिन्न शक्तियां सत्ता के लिए आपस में झपट रही थीं और चीन अराजकता में घिरा हुआ था, जापान ने दूसरा विश्व युद्ध खत्म होते होते चीन के अधिकांश हिस्से पर हमला कर कब्जा कर लिया।
 
चीन को फिर से मजबूत बनाने के अपने आह्वान में कम्युनिस्ट पार्टी अक्सर सदी के अपमान का मुद्दा उठा देती है। तेज आर्थिक वृद्धि के दशकों के बाद, पार्टी अपना अंतिम लक्ष्य पाने में पहले की अपेक्षा और नजदीक आ चुकी है। 2017 की पार्टी कांग्रेस में शी जिनपिंग ने कहा था कि आधुनिक समयों के आरंभ से ही इतना सब कुछ इतने लंबे समय तक सहने वाले चीनी राष्ट्र का एक जबर्दस्त रूपांतरण हुआ हैः वह उठ खड़ा हुआ, समृद्ध बना, और ताकतवर बन रहा है, वह कायाकल्प की अद्भुत संभावनाओं को अपने भीतर संजोए हुए है।
 
दुनिया पर असर
 
सवाल ये है कि शेष दुनिया के लिए चीन के कायाकल्प का क्या अर्थ होगा। क्या वो वैश्विक आर्थिक वृद्धि को संचालित करेगा, दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार और दूसरे देशों के लिए निवेश का स्रोत बनेगा? या उसे एक सैन्य और औद्योगिक भय की तरह देखा जाएगा जो छोटे पड़ोसियों को तंग करेगा और टेक्नोलोजी चुराएगा? क्या उसकी कामयाबी कुछ अन्य देशों को अपने यहां सर्वसत्तावादी अधिनायकवादी सत्ताओं के निर्माण के लिए उकसाएंगी और वे देश अमेरिका के अपनाए लोकतंत्र से मुंह मोड़ लेंगे?
 
सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में चाइना पावर प्रोजेक्ट के निदेशक बोनी ग्लेसर कहते हैं कि चीन हवा में सवार होकर ज्यादा ताकत वाली निर्णायक पोजीशन का रुख कर रहा है जो उसके मुताबिक सत्ता के वैश्विक संतुलन का उत्कर्ष है। और बाइडन सरकार के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती है।
 
बाइडन और उनके सहयोगियों ने चीन पर कड़ा रुख अपनाने का संकेत दिया है। विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने हाल के एक भाषण में चीन को आर्थिक, राजनयिक, सैन्य और प्रौद्योगिकीय शक्ति वाला एक ऐसा इकलौता देश करार दिया था जो स्थिर और खुली अंतरराष्ट्रीय प्रणाली को, दुनिया को बेहतर ढंग से चलाने वाले तमाम नियमों, मूल्यों और सबंधों को गंभीर चुनौती देता है।
 
ये सार्वजनिक रुख कूटनीति के लिए रास्ता बना सकता है लेकिन चीन के अंतिम लक्ष्य अटल हैं, चाहे वो टेक्नोलोजी का लीडर बनने का लक्ष्य हो या दक्षिणी चीन सागर में अपनी नेवी की पहुंच बढ़ाने का लक्ष्य। एक ओर अमेरिका आर्थिक मंदी और महामारी से जूझ रहा है, वहीं चीन और उसके नेता अपने कायाकल्प को लेकर और बेधड़क, और आश्वस्त हो चले हैं।
 
एसएस/एके (एपी)
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