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Written By DW
Last Updated : शुक्रवार, 20 अगस्त 2021 (17:21 IST)

तालिबान की वापसी से अफ्रीका में चिंता और भय

तालिबान की वापसी से अफ्रीका में चिंता और भय | Taliban
रिपोर्ट : आइजैक कालेद्जी
 
अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी ने दुनिया को हैरान कर दिया है। इसने अफ्रीका में इस्लामी विद्रोहों को कुचलने के लिए संघर्ष कर रहे देशों में चिंता और भय को बढ़ा दिया है। पिछले एक दशक से अधिक समय से पूर्वी और पश्चिमी अफ्रीका, साहेल और दक्षिणी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में चरमपंथी समूहों की गतिविधियां बढ़ गई हैं। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के एक संगठन ने कहा है कि अल-कायदा से जुड़े कई इस्लामी आतंकवादी समूह हैं जिनका संबंध तालिबान के साथ है।
 
लंदन स्थित राजनीतिक विश्लेषक अहमद रजब का कहना है कि अल-शबाब समूह से जुड़े सोमालिया स्थित मीडिया घराने ने अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी पर खुशी जाहिर की है। इसे समर्थन के तौर पर देखा जा सकता है। रजब ने डॉयचे वेले को बताया कि हम तालिबान और अल-शबाब के बीच के संबंध को लेकर पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि क्या ये संबंध अल-शबाब की ओर से अवसरवादी हैं या वाकई तालिबान और अल-शबाब की गतिविधियों के बीच जैविक संबंध है।
 
उनका कहना है कि अभी इस बारे में फैसला करना जल्दबाजी होगी लेकिन तालिबान अपने प्रभाव को मजबूत करने के लिए अफ्रीका के चरमपंथियों के ऐसे संदेशों का मतलब निकाल सकता है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने अफगानिस्तान की स्थिति के बाद, पूरे अफ्रीका में तथाकथित इस्लामिक स्टेट के सहयोगियों के खतरनाक विस्तार की चेतावनी दी है। घाना में कोफी अन्नान इंटरनेशनल पीसकीपिंग ट्रेनिंग सेंटर में अकादमिक मामलों और अनुसंधान संकाय के निदेशक क्वासी अनिंग ने उस स्थिति को साझा किया है। अक्रा स्थित सिटी एफएम रेडियो पर अनिंग ने कहा कि अफगानिस्तान में जिस तरह का माहौल बन रहा है, वह संभावित रूप से अफ्रीका और साहेल में हम सभी को खतरे में डाल सकता है।
 
अफ्रीका में चरमपंथी संगठनों की मौजूदगी
 
अल-शबाब कई वर्षों से सोमालिया की संयुक्त राष्ट्र समर्थित सरकार को गिराने और देश में सख्त शरिया कानून लागू करने के लिए लड़ रहा है। इस समूह पर सोमालिया और पूर्वी अफ्रीका कई घातक हमले करने का आरोप है। इसी तरह, पश्चिम अफ्रीका में हजारों लोगों की हत्या और लाखों लोगों के विस्थापन के पीछे नाइजीरिया के बोको हराम समूह का हाथ है।
 
इस्लामिक आतंकवादी साहेल क्षेत्र और पश्चिम अफ्रीकी उप-क्षेत्र के कुछ हिस्सों में भी सक्रिय हैं। मोजाम्बिक में इस्लामी चरमपंथियों ने काबो डेलगाडो के सुदूर-उत्तरी प्रांत पर कब्जा करने के बाद भारी तबाही मचाई है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2017 में विद्रोह शुरू होने के बाद से 2,500 से अधिक लोग मारे गए हैं और लगभग सात लाख लोग अपने घर छोड़कर भाग गए हैं।
 
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो के कुछ हिस्सों में भी इस्लामी चरमपंथी काफी सक्रिय हैं। राजनीतिक विश्लेषक क्वासी अनिंग का कहना है कि अफगानिस्तान में मौजूदा संकट को देखते हुए उत्पन्न होने वाले किसी नए खतरे से निपटने के लिए अफ्रीका में सुरक्षा उपायों पर ध्यान देना चाहिए।
 
वेस्ट अफ्रीका सेंटर फॉर काउंटर-एक्सट्रीमिज्म (डब्ल्यूएसीसीई) के कार्यकारी निदेशक मुतारू मुमुनि मुक्थर ने डॉयचे वेले को बताया कि अफ्रीका में मौजूद चरमपंथी समूह अफगानिस्तान में होने वाली घटनाओं से प्रेरित होंगे। उन्होंने कहा कि उन क्षेत्रों में सरकारों को गिराने की उम्मीद करने वाले समूहों के बीच न सिर्फ उम्मीद बल्कि सच्चाई की कुछ भावना, सच्चाई की झूठी भावना' दिखाने की प्रवृत्ति है।
 
अफगानिस्तान जैसी घटना फिर से न हो
 
फ्रांस ने घोषणा की है कि 2022 तक वह उत्तरी माली में अपने ठिकानों को बंद कर देगा। इसके लिए, 2021 के अंतिम में प्रक्रिया शुरू की जाएगी। साथ ही, उसने साहेल क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति कम करने की भी बात कही है। साहेल क्षेत्र में पूर्व औपनिवेशिक शक्ति के तौर पर फ्रांस ने 2013 से ही माली में अपने सैनिक तैनात कर रखे हैं। इस्लामिक चरमपंथियों ने माली के उत्तर में कई इलाकों पर कब्जा कर लिया था। फ्रांस ने इन इलाकों को इस्लामिक चरमपंथियों के कब्जे से मुक्त कराने के लिए स्थानीय बलों की सहायता की।
 
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद, अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे यह आशंका पैदा हो गई है कि फ्रांस का मिशन समाप्त होने के बाद साहेल क्षेत्र में भी कुछ ऐसा ही हो सकता है। सुरक्षा विशेषज्ञ और दक्षिण अफ्रीका में सिग्नल रिस्क के शोधकर्ता रयान क्यूमिंग्स ने डॉयचे वेले को बताया कि फ्रांस को अपने फैसले पर फिर से विचार करना होगा। हालांकि, उन्होंने कहा कि अन्य राजनीतिक विचार भी हो सकते हैं क्योंकि साहेल में फ्रांस की मौजूदगी से चरमपंथी समूहों की सक्रियता में कोई खास कमी नहीं हुई है और न ही हिंसा की घटनाओं में कमी आई है।
 
अफ्रीकी सरकारों को हाई अलर्ट पर रहना चाहिए
 
अफ्रीका के कुछ हिस्सों में सक्रिय बोको हराम, अल-शबाब और अन्य चरमपंथी समूहों की विचारधारा तालिबान के जैसी नहीं हो सकती है। हालांकि, कई विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान की सत्ता में वापसी से वे प्रेरित हो सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अफ्रीकी सरकारों को इस पर ध्यान देना चाहिए।
 
क्यूमिंग्स का कहना है कि अफ्रीकी सरकारों को अफगानिस्तान के हालात और वहां के घटनाक्रम से सीखने की जरूरत है। चरमपंथी समूह नागरिकों के लिए जो कर सकते हैं, सरकारों को उनसे बेहतर करना चाहिए। वह कहते हैं कि कई मामलों में, अगर हम पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में आतंकवाद से प्रभावित देशों में जाते हैं, तो देखते हैं कि ये चरमपंथी समूह वास्तव में देश की सरकारों की तरह सेवाएं उपलब्ध करा रहे हैं।
 
कई अफ्रीकी देशों में न्यायिक और सामाजिक सेवाओं की कार्यप्रणाली ध्वस्त हो गई है। ये चरमपंथी समूह अक्सर न्यायिक और सामाजिक सेवाएं देते हैं और इनकी मदद से नागरिकों का समर्थन हासिल करते हैं। डब्ल्यूएसीसीई के कार्यकारी निदेशक मुतारू मुमुनि मुक्थर चाहते हैं कि अफ्रीकी सरकारें सिर्फ आतंकवादियों से निपटने पर ध्यान केंद्रित न करें बल्कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले लोगों, कारकों, और समूहों से निपटने पर जोर दे, क्योंकि आतंकवादी युद्ध के मौदान में मारे जाते हैं और आतंकवाद का सफाया स्थानीय समुदाय के स्तर पर होता है।
 
कोफी अन्नान इंटरनेशनल पीसकीपिंग ट्रेनिंग सेंटर के अनिंग ने कहा कि अफगानिस्तान में जो हो रहा है वह अफ्रीका के लिए बहुत जरूरी सबक है। वह कहते हैं कि पश्चिमी देश ऐसा नहीं कर सकते कि बस कहीं से आएं...। किसी देश में (उनकी) संस्कृति, मूल्यों, और सेना पर हावी हों, और सोचें कि इससे सब ठीक हो जाएगा।
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