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Last Modified: काठमांडू , बुधवार, 10 सितम्बर 2025 (15:22 IST)

नेपाल में राजशाही की वापसी की आहट? Gen-Z क्यों उतरी सड़कों पर

Unrest in Nepal
signs of return of monarchy in Nepal: नेपाल एक बार फिर राजनीतिक उथल-पुथल और जन-असंतोष की चपेट में है। पिछले कुछ हफ्तों से, खासकर सितंबर 2025 में, देश की सड़कों पर युवा और राजशाही समर्थकों के हिंसक प्रदर्शनों ने वैश्विक सुर्खियां बटोरी हैं। नेपाल की सेना ने भी पहली बार हालात पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए शांति की अपील की है, लेकिन प्रदर्शनकारियों का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा है।
 
हालात की शुरुआत सोशल मीडिया पर प्रतिबंध से हुई थी, जब सरकार ने फेसबुक, यूट्यूब और व्हाट्सएप समेत 26 प्लेटफॉर्म्स पर रोक लगाई। लेकिन विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों का मानना है कि यह केवल एक चिंगारी थी। आंदोलन की असली जड़ें कहीं ज्यादा गहरी हैं। जेन-ज़ी (Gen-Z) के नेतृत्व में हो रहे इन विरोध प्रदर्शनों के पीछे मुख्य कारण हैं: आर्थिक असमानता, भ्रष्टाचार और राजनीतिक भाई-भतीजावाद। 
 
सोशल मीडिया बैन सिर्फ बहाना, असली गुस्सा तो भ्रष्टाचार पर है : नेपाल के युवा इस बात से भयंकर रूप से नाराज हैं कि उनके टैक्स का पैसा राजनेताओं और उनके परिवारों की अय्याशी पर खर्च हो रहा है, जबकि आम जनता बेरोजगारी और गरीबी से जूझ रही है। एक प्रदर्शनकारी ने आक्रोश में कहा कि हमारे नेता और उनके बच्चे विदेशों में ऐश कर रहे हैं, जबकि हमारी जनता भूखी मर रही है।
 
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में प्रदर्शनकारी नेपाल का झंडा और प्रथम राजा पृथ्वी विक्रम शाह की तस्वीर लिए राजशाही की बहाली की मांग कर रहे हैं। यह बताता है कि लोकतंत्र से मोहभंग होने के बाद जनता अब पुराने दौर की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रही है।
 
लोकतंत्र की विफलता और राजशाही की वापसी की मांग : राजशाही समर्थक आंदोलन मार्च 2025 से शुरू हुआ था और अब यह हिंसक रूप ले चुका है। राजधानी काठमांडू में प्रदर्शनकारियों ने पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल की पार्टी के दफ्तरों में और एक टीवी चैनल पर तोड़फोड़ की। इन झड़पों में अब तक दो लोगों की मौत हो चुकी है और 110 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं।
 
राजशाही समर्थकों ने 'संयुक्त जन आंदोलन समिति' बनाई है, जो 1991 के संविधान की बहाली की मांग कर रही है। उस संविधान में राजशाही के साथ बहुदलीय लोकतंत्र की व्यवस्था थी। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र बीर विक्रम शाह के समर्थकों का तर्क है कि 2008 में राजशाही खत्म होने के बाद से नेपाल में लोकतंत्र जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया है। पिछले 17 वर्षों में 14 सरकारें बदली हैं, और कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया।
 
विशेषज्ञों की राय : लोकतंत्र को मजबूत करने की जरूरत : पूर्व भारतीय राजदूत रंजीत राय ने नेपाल की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ओली सरकार का सोशल मीडिया पर बैन तात्कालिक कारण था, लेकिन असली मुद्दा दो बड़ी पार्टियों के बीच का गठबंधन और भ्रष्टाचार की अफवाहें हैं।
 
शशांक, पूर्व भारतीय विदेश सचिव बताते हैं कि नेपाल में मौजूदा अस्थिरता आर्थिक असमानता और राजनीतिक अवसरवाद का नतीजा है। राजशाही की मांग एक भावनात्मक प्रतिक्रिया हो सकती है, लेकिन यह कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं है। नेपाल को एक ऐसे स्थिर लोकतांत्रिक ढांचे की जरूरत है जो जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सके।
 
कनक मणि दीक्षित, नेपाली पत्रकार और विश्लेषक का कहना है कि नेपाल के युवा भ्रष्टाचार और आर्थिक असमानता से तंग आ चुके हैं। राजशाही की मांग उनके गुस्से का एक प्रतीक है, लेकिन यह देश को पीछे ले जा सकती है। लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए बड़े सुधारों की जरूरत है। लोक राज बराल, नेपाली राजनीतिक शास्त्री कहते हैं कि नेपाल का लोकतंत्र रेत पर बने घर की तरह है। यह बार-बार ढह रहा है क्योंकि नेतृत्व ने जनता का भरोसा खो दिया है।
 
नेपाल का भविष्य अनिश्चितता के चौराहे पर : नेपाल में 2008 में 240 साल पुरानी राजशाही को खत्म करके लोकतंत्र लाया गया था। लेकिन लगातार राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट ने जनता का भरोसा डगमगा दिया है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि राजशाही समर्थक आंदोलन नेपाल की हिंदू राष्ट्र की पहचान को फिर से स्थापित करने की कोशिश है, जबकि कुछ अन्य इसे लोकतंत्र की असफलता का नतीजा मानते हैं। नेपाल की सेना ने हालात को काबू में करने के लिए काठमांडू में कर्फ्यू और सैन्य तैनाती की है। 
 
लेकिन सवाल यह है कि क्या नेपाल फिर से राजशाही की तरफ लौटेगा, या यह आंदोलन एक नए लोकतांत्रिक सुधार की शुरुआत है? फिलहाल, नेपाल एक चौराहे पर खड़ा है, जहां उसका भविष्य अनिश्चितता के साये में है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 
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