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ब्रिटेन में शरणार्थियों के लिए मुफ्त में मंहगे होटल, स्थानीय लोग सड़कों पर

Britain is a favorite destination for refugees
Protests against refugees in Britain: एक समय था, जब लगभग आधी दुनिया पर अंग्रेजों का राज हुआ करता था। उनकी सब जगह तूती बोलती थी। अब, ऐसे दिन आ गए हैं कि कभी उनके उपनिवेश रहे देशों के न केवल लाखों प्रवासी वहां रच-बस गए हैं, लाखों की संख्या में नए शरणार्थी भी धावा बोलने लगे हैं। उन्हें पंचसितारा होटलों तक में ठहराया जाता है!
 
लंदन, 2024 में ब्रिटेन में शरण चाहने वाले विदेशियों के रहने-बसने का दूसरा सबसे सबसे पसंदीदा स्थान बन गया। अकेले इस वर्ष, यानी 2025 में अब तक 28,000 से अधिक नए शरणार्थी ब्रिटेन पहुंचे हैं। इस धावे से, और उससे निपटने में अक्षम ब्रिटेन की सरकारों से तंग आकर, अब वहां के मूल निवासी सड़कों पर उतरने लगे हैं। 13 सितंबर, 2025 के दिन एक लाख से कहीं आधिक – संभवतः डेढ़ लाख प्रदर्शनकारी – लंदन की सड़कों पर उमड़ पड़े। लंदन के यॉर्क रोड और वेस्टमिंस्टर ब्रिज से होते हुए वे सरकारी कार्यालयों के संकुल 'व्हाइटॉल' (whitehall) के सामने जमा हुए।
 
झड़पें और गिरफ़्तारियां : यह अपने ढंग का अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन था। इसका आह्वान और आयोजन ब्रिटेन के जाने-माने दक्षिणपंथी टॉमी रॉबिन्सन ने किया था। प्रदर्शन के दौरान कई बार पुलिस के साथ झड़पें हुईं, गिरफ़्तारियां भी हुईं। प्रदर्शनकारियों के हाथों में ब्रिटेन के राष्ट्रीय झंडे 'यूनिय जैक' के अतिरिक्त, आप्रवासियों और शरणार्थियों को रोकने और उन्हें वापस भेजने की मांगें करते अनगिनत पोस्टर भी थे।
 
उसी समय और वहीं, "फासीवाद के विरुद्ध मार्च" के नारे लगाता एक प्रति-प्रदर्शन भी हो रहा था। पुलिस का अनुमान है कि उसमें लगभग 5000 लोग ही शामिल रहे होंगे। पुलिस का हालांकि यह भी कहना था कि इतने बड़े आयोजनों में शामिल लोगों की सटीक संख्या का अनुमान लगाना बहुत कठिन होता है।
 
प्रदर्शन के विरोध में प्रदर्शन : कैमरों और हेलीकॉप्टरों की सहायता से पुलिस प्रदर्शनकारियों पर नज़र रखे हुए थी। प्रति-प्रदर्शनकारी अपने हाथों में "टॉमी रॉबिन्सन का विरोध करें", "शरणार्थियों का स्वागत है" और "महिलाएं दक्षिणपंथ के विरुद्ध हैं" जैसे संदेशों वाले पोस्टर पकड़े हुए थे। पर, उनकी संख्या इतनी कम थी कि शायद ही कोई उनकी तरफ ध्यान दे रहा था। बीबीसी (BBC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, टॉमी रॉबिन्सन के नेतृत्व वाले प्रदर्शन से निपटने के लिए लंदन में लगभग 1,000 मेट्रोपॉलिटन पुलिस-अधिकारी तैनात किए गए थे। उनकी सहायता के लिए लीसेस्टरशायर, नॉटिंघमशायर, डेवोन और कॉर्नवाल से 500 पुलिस अधिकारी अलग से बुलाए गए थे।
 
पुलिस के साथ झड़पें : दोपहर एक बजे के कुछ ही देर बाद, मध्य लंदन की सड़कें यूनियन जैक वाले झंडे लहराते लोगों से भर गईं। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर के खिलाफ खूब नारे लगने लगे। कई जगहों पर पुलिस के साथ झड़पें भी हुईं। बोतलें, वस्तुएं और पटाखे फेंके गए, जिनके कारण कई लोग तथा 26 पुलिसकर्मी घायल भी हुए। कुछ प्रदर्शनकारियों ने रास्ता रोकने के लिए लगे अवरोधकों को तोड़ने का प्रयास किया। 25 गिरफ्तारियां भी हुईं। दंगा निरोधक उपकरणों और घुड़सवार पुलिस के साथ अतिरिक्त पुलिस बल को बुलाना पड़ा। ब्रिटिश अखबार ''द गार्जियन'' ने कम से कम नौ गिरफ़्तारियों की सूचना दी।
 
मध्य लंदन में प्रदर्शनकारियों के मार्च के अलावा, अमेरिकी 'टेक अरबपति' और टेस्ला के सीईओ एलोन मस्क वीडियो के ज़रिए एक वक्ता के रूप में रैली में शामिल हुए। उन्होंने अन्य बातों के अलावा यह भी कहा कि ब्रिटिश जनता "अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने से डरती है।" यह भी, कि बीबीसी (BBC) "ब्रिटेन के विनाश में भागीदार है।" मस्क ने विदेशी आप्रवासियों से जुड़ी समस्याओं और ब्रिटेन द्वारा यूरोपीय संघ की सदस्यता त्याग दिए जाने के तथाकथित ''ब्रेक्सिट'' जैसे विषयों पर भी टीका-टिप्पणी की।
 
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता : यूरोप के कई दक्षिणपंथी राजनेता और कार्यकर्ता लंदन में हुए प्रदर्शन में दिखाई पड़े। प्रदर्शन के आयोजक टॉमी रॉबिन्सन ने कई बार दोहराया कि लाखों "ब्रिटिश देशभक्तों" की "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन को देख कर" उन्हें लोगों से सड़कों पर उतरने का आह्वान करना पड़ा। टॉमी रॉबिन्सन का असली नाम स्टीफन याक्सली-लेनन है। उन्हें ब्रिटेन के सबसे प्रमुख दक्षिणपंथी उग्रवादियों में गिना जाता है। इस सदी के पहले के दशक की शुरुआत के साथ वे एक इस्लाम-विरोधी कार्यकर्ता के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं। उनका मत है कि जो लोग खुद तो इस्लाम-पंथियों के चाटुकार हैं, वे ही उनके जैसी चाटुकारिता नहीं करने वालों को ''इस्लामोफोबिक'' (इस्लाम से भयाक्रांत) बताने में परमसुख पाते हैं। 
 
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशंसक, पॉडकास्टर चार्ली कर्क की अमेरिका में हुई हत्या की ख़बर से और भी ज़्यादा लोग लंदन के प्रदर्शन में शामिल हुए बताए गए। प्रदर्शन को "अभिव्यक्ति की आज़ादी का प्रदर्शन" बताने की कोशिश की गई। लगभग सभी वक्ताओं ने कर्क का ज़िक्र किया और उन्हें एक "शहीद" बताया। 
 
प्रदर्शन का प्रमुख कारण : लंदन में 13 सितंबर को हुए सरकार विरोधी अपूर्व भारी प्रदर्शन का एक प्रमुख कारण यह है कि ब्रिटेन पहुंचने वाले नए शरणार्थियों को, भारी सरकारी खर्चे पर, चार या पांच सितारा होटलों तक में ठहराया जाने लगा है। देश के आम आदमी का कहना है कि काम-धंधा हम करें, सारे टैक्स हम भरें और मंहगे होटलों में गुलछर्रे वे लोग उड़ाएं, जो न जाने कहां-कहां से आते हैं, गंदगी और अव्यस्था फैलाते हैं!
 
ब्रिटिश सरकार ने दो ही सप्ताह पहले, 29 अगस्त को एक अदालती फैसला जीता था, जिसका अर्थ है कि एक होटल में टिकाए गए उन शरणार्थियों को उस होटल से निकाला नहीं जाएगा, जहां एक शरणार्थी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था। इस फैसले ने सरकार और न्याय प्रणाली के आलोचकों का पारा और अधिक ऊपर चढ़ा दिया।  
 
आव्रजन बना राजनीतिक मुद्दा : ब्रिटेन में आव्रजन अब एक ऐसा प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गया है, जिसने लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को लेकर वहां के नागरिकों की चिंताओं को भी पीछे धकेल दिया है। ब्रिटेन और यूरोपीय महाद्वीप के बीच की इंग्लिश चैनल को पार कर नावों से आने वाले शरणार्थियों की संख्या, इस वर्ष अभी से 28,000 को पार कर गई है, जो एक नया रिकार्ड है।
 
पिछले अगस्त महीने में, लंदन के उच्च न्यायालय ने राजधानी से लगभग 30 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित बेल होटल में शरणार्थियों को ठहराने पर रोक लगाने का आदेश दिया था। यह होटल वहां रहने वाले एक इथियोपियाई शरणार्थी पर यौन अपराधों का आरोप लगने के बाद कई बार हिंसक प्रदर्शनों का केंद्र बन गया था। लेकिन, अपील न्यायालय ने इस फैसले के विपरीत सरकार की अपील को ही बरकरार रखा। उस अस्थायी निषेधाज्ञा को रद्द कर दिया, जिसके कारण शरणार्थियों को उनके होटल से निकाला जा सकता था।
 
प्रधानमंत्री आरोपों के घेरे में : अपील न्यायालय के फैसले से, प्रधानमंत्री कीर स्टारमर और उनके मंत्रियों पर मुख्य राजनीतिक विरोधियों द्वारा यह आरोप लगना बढ़ गया है कि वे स्थानीय लोगों की नाराज़गी के डर के बावजूद शरणार्थियों का पक्ष ले रहे हैं। मुख्य विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी के नेता केमी बेडेनोच ने एक बयान में कहाः "कीर स्टारमर ने दिखा दिया है कि वे अवैध प्रवासियों के अधिकारों को उन ब्रिटिश लोगों के अधिकारों से ऊपर रखते हैं, जो बस अपने शहरों और समुदायों में सुरक्षित महसूस करना चाहते हैं।"   
 
"हमें अरबों डॉलर की लागत वाली अव्यवस्थित शरण आवास व्यवस्था विरासत में मिली थी," शरण मंत्री एंजेला ईगल ने कहा: "हमने इस फैसले के खिलाफ अपील की ताकि बेल जैसे होटलों को नियंत्रित और व्यवस्थित तरीके से बंद किया जा सके; ताकि हाल के वर्षों की उस अव्यवस्था से बचा जा सके, जिसके कारण 90 लाख पाउंड प्रतिदिन की लागत से 400 होटल खोले गए थे।"
 
19 प्रतिशत शरणार्थी लंदन में : हाल के वर्षों में ब्रिटेन में शरण-आवास का भौगोलिक वितरण बदल गया है। 2024 के अंत में सरकारी सहायता पर आश्रित शरणार्थियों में से 19 प्रतिशत लंदन में रह रहे थे। 2018 में यह अनुपात 10 प्रतिशत से कुछ  अधिक था। उस समय, आवास प्राप्त करने वाले शरणार्थियों में से केवल 4 प्रतिशत को होटलों सहित आकस्मिक आवासों में रखा गया था। 2024 तक लगभग आधे (47 प्रतिशत) लोग होटलों में रह रहे थे।
 
शरण-आवास नीति का पारंपरिक उद्देश्य शरणार्थियों को दीर्घकालिक निजी किराए के आवास में रखना रहा है। लेकिन, 2020 के बाद से होटलों पर निर्भरता बहुत बढ़ गई है। 2023 और 2024 के बीच ब्रिटेन के अधिकांश हिस्सों में शरणार्थियों के लिए होटलों के उपयोग में गिरावट आई, लेकिन लंदन एक अपवाद बना रहा। 2024-25 में, एक शरणार्थी को होटल में ठहराने की औसत दैनिक लागत 170 पाउंड प्रति व्यक्ति अनुमानित की गई है, जबकि अन्य प्रकार के आवासों के लिए यह लागत 27 पाउंड प्रतिदिन होने का अनुमान है। 1 पाउंड इस समय क़रीब 120 भारतीय रुपए के बराबर है।
 
4-5 सितारा होटलों में भी ठहराया जाता है : स्थिति यह है कि शरणार्थियों को कई बार चार और पंच सितारा आलीशान होटलों में भी ठहराया जाता है। लगभग सभी शरणार्थी मुस्लिम देशों से आते हैं। उदाहरण के लिए, 2025 के जून महीने तक ब्रिटेन में जिन विदेशियों ने शरण की याचना की, उनमें से एक-तिहाई से अधिक पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान से आए थे। उनके बाद बांग्लादेश, इरीट्रिया और सीरिया से आए शरणार्थियों को गिनाया जा सकता है।
 
शरण मिल जाने पर मुस्लिम शरणार्थी, जहां तक हो सके, ब्रिटेन में पहले से ही रहरहे अपने देश-बिरादरी के लोगों के बीच ठीक उसी ढंग से रहना चाहते हैं, जिस ढंग से अपने देशों में रहा करते थे। इससे ब्रिटेन में उसी तरह की अलग-अलग बस्तियां बनने और ग़ंदगियां फैलने लगती हैं, जैसी शरणार्थियों के अपने देशों में होती हैं। मुस्लिम शरणार्थी स्थानीय मूल समाज के साथ घुलने-मिलने से परहेज़ करते हैं, बल्कि उसे अपने से कहीं नीचा और घटिया मानते हैं। ऐसे में मूल स्थानीय समाज के अंग्रेज़ों के मन में उन्हीं के प्रति ही नहीं, सभी तरह के विदेशियों के प्रति दुर्भावना पैदा होना स्वाभाविक है। ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय भी कई बार इसी कारण अंग्रेज़ों की घृणा और नस्ली भेदभाव का शिकार बनते हैं।
 
मुस्लिम तुष्टीकरण : इस बीच, भारत की तरह ब्रिटेन की राजनीति में भी मुस्लिम तुष्टीकरण की प्रथा चल पड़ी है और बढ़ती ही जा रही है। जिन निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम वोट निर्णायक हो सकते है, वहां से चुनाव लड़ने वाले अंग्रेज़ नेता भी उनके लिए मनभावन वादे करते हैं और वैसे ही काम भी करते हैं। जुलाई, 2024 में हुए पिछले ब्रिटिश संसदीय चुनावों में पहली बार 25 मुस्लिम प्रत्याशी, ब्रिटिश संसद 'हाउस ऑफ़ कॉमन्स' के लिए निर्वाचित हुए। 2017 और 2019 के चुनावों में यह संख्या 19 थी। यही कारण है कि बहुत से ग़ैर मुस्लिम नेता भी अपने निर्वाचन क्षेत्र के मुस्लिम मतदाताओं को खुश रखने में कोई कसर नहीं छोडते। ब्रिटेन के मुस्लिम नागरिकों की संख्या 34 लाख है। वे अधिकतर पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और भारत से आए लोग हैं। हिंदुओं की संख्या क़रीब 10 लाख 50 हज़ार है।
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