रेडियो से टीवी पत्रकारिता : आवाज़ और अंदाज
भारतीय पत्रकारिता महोत्सव के दूसरे दिन पहले सत्र में 'रेडियो से टीवी पत्रकारिता : आवाज़ और अंदाज' विषय पर परिचर्चा आयोजित हुई। इस सत्र में आवाज़ की दुनिया की ख्यातनाम शख्सियत हरीश भिमानी सहित केंद्रीय मंत्री कमल पटेल, आरजे यूनुस खान, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की कुलपति रेणु जैन, मानसिंह परमार, संजीव आचार्य, आलोक वाजपेयी आदि उपस्थित थे। अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर सत्र की शुरुआत की।
रेणु जैन ने कहा कि इंदौर स्वच्छता में तो नंबर एक है ही, कला संस्कृति के साथ ही इंदौर को 'पत्रकारिता की राजधानी' कहा जाता है। यह इंदौर के लिए गौरव की बात है। उन्होंने रेडियो के बारे में बताते हुए कहा कि उनके जमाने में टीवी नहीं आए थे, तब रेडियो हुआ करते थे। हम तमाम कार्यक्रम रेडियो पर सुना करते थे। इस वजह से रेडियो से एक अलग तरह का जुड़ाव रहा है। मेरी मां भी रेडियो की कैजुअल अनाउंसर रही हैं इसलिए रेडियो से बहुत जुड़ाव रहा है। हालांकि अब कार्यक्रमों का वो स्तर नहीं रहा, लेकिन रेडियो पत्रकारिता का देश में बहुत योगदान रहा है।
-जिंदगी बदलता है रेडियो जॉकी
आरजे वेणु ने कहा कि रेडियो और कुछ नहीं, एक तकनीक है जिसका इस्तेमाल आज सभी जगह हो रहा है। रेडियो उन सभी की जिंदगी बदलता है, जो रेडियो सुनता है, चाहे वो स्टूडेंट हो या चाहे किसान हो। यह सबसे तेज माध्यम है जिसे कहीं से भी चलाया जा सकता है। रेडियो वो माध्यम है, जो आवाज़ से आपको महसूस करवाता है।
आज रेडियो इतना पॉपुलर हो गया है कि अब लोग रेडियो जॉकी को कॉल करके उससे बात करते हैं, अपने सुख-दु:ख बताते हैं। इंदौर की स्वच्छता में भी इंदौर का योगदान है। वेणु ने बताया कि एक बार देवास जिले से एक किसान का कॉल आया कि मेरी फसल बर्बाद हो गई, मैं आत्महत्या कर लूंगा। रेडियो ने किसान की आवाज़ को प्रशासन तक पहुंचाया और कलेक्टर ने तुरंत किसान को राहत भिजवाई, ये रेडियो की ताकत है।
-क्या टीवी आम लोगों के मुद्दे उठा रहा है?
मनोज भोयर ने कहा कि आज जरूरत है कि आवाज़ और अंदाज के इस सबसे बड़े माध्यम को बचाना है। हम टीवी में लगातार अतीक अहमद की खबरें देख रहे हैं, विजुअल्स की वजह से लोगों का ध्यान टीवी की तरफ ज्यादा होता है। लेकिन फिर भी आज आवाज़ की ताकत कम नहीं हुई है। सवाल यह है कि क्या टीवी आम लोगों की आवाज़ को उठा पा रहा है? जब तक मुद्दा उठता नहीं है, तब तक टीवी वाले उस मुद्दे को छूते तक नहीं हैं। जब तक मोर्चा नहीं निकला जाता, तब तक मीडिया में उसे उठाया नहीं जाता लेकिन रेडियो ऐसा नहीं करता है। रेडियो हर आदमी की आवाज़ बनने की कोशिश करता है।
-आवाज़ विकास और विनाश का माध्यम है
शब्द बहुत ताकतवर है, इतना कि उसका दोनों तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। शब्द से विकास भी होता है और शब्द से ही दंगे भी हो जाते हैं। लेकिन इतने गंभीर विषय पर हमारे पाठ्यक्रम में बोलना सिखाने के लिए कोई ट्रेनिंग ही नहीं है। स्पीच कम्युनिकेशन को लेकर हमारे विश्विद्यालय में कोई कोर्स क्यों नहीं होता? हमें अपने बच्चों को बोलना और सुनना भी सिखाया जाना चाहिए। जितना बोलना महत्वपूर्ण है, उतना ही सुनना भी महत्वपूर्ण है।
देश में मीडिया लिट्रेसी बहुत जरूरी है। मीडिया काउंसिल ऑफ इंडिया बनाया जाना चाहिए, जो मीडिया के सारे एलिमेंट्स को कंट्रोल करता हो। ये सारे माध्यम अभी बेलगाम चल रहे हैं। सोशल मीडिया तो भस्मासुर की भूमिका में है इन दिनों। संविधान में वाणी की जो आजादी मिली है, उसका गलत इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। वाणी का काम लोक मंगलकारी होना चाहिए।
Edited by: Ravindra Gupta