शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Why is the trend of Pakistani girls not adopting their husband's name after marriage
Written By BBC Hindi
Last Updated : सोमवार, 22 फ़रवरी 2021 (09:07 IST)

पाकिस्तानी लड़कियों में शादी के बाद अपने पति का नाम न अपनाने का रुझान क्यों बढ़ रहा है?

पाकिस्तानी लड़कियों में शादी के बाद अपने पति का नाम न अपनाने का रुझान क्यों बढ़ रहा है? - Why is the trend of Pakistani girls not adopting their husband's name after marriage
शिज़ा मलिक (पत्रकार)
 
'मैंने अपनी सारी उम्र ज़ुहा ज़ुबैरी के नाम से गुज़ारी है। और अब मैं एकदम से अपना नाम बदल लूं ये सोचकर मुझे बहुत अजीब लगा। अगर मैं अपना नाम बदल लेती तो शायद मुझे अपनी पहचान ख़त्म होती महसूस होती।' ये कहना था ज़ुहा ज़ुबैरी का जिन्होंने एक आम परंपरा को न मानकर अपनी शादी के बाद नाम न बदलने का फ़ैसला किया। यानी उन्होंने शादी के बाद अपने पति या उनके ख़ानदान का उपनाम अपने नाम के साथ नहीं जोड़ा।
 
दुनिया के बहुत से देशों की तरह पाकिस्तान में भी पारंपरिक तौर पर अधिकतर महिलाएं शादी के बाद अपने परिवार का नाम हटाकर अपने पति के परिवार का नाम लेती हैं। मगर आजकल पाकिस्तानी महिलाओं में भी शादी के बाद नाम न बदलने का रुझान बढ़ता जा रहा है। ज़ुहा का कहना है कि वह अपने परिवार और दोस्तों में पहली महिला हैं जिसने अपना नहीं बदला है।
 
वह कहती हैं, 'मेरी मां की शादी के फ़ौरन बाद ही उनका नाम बदल दिया गया था और अब उनका पूरा पैदाइशी नाम किसी को याद नहीं है। मेरी बहन ने भी शादी के बाद अपना नाम बदल लिया था।' मगर जब ज़ुहा कि अपनी शादी का वक़्त क़रीब आने लगा तो उन्हें अपना पैदाइशी नाम बदलने का विचार परेशान करने लगा।
 
इसका कारण यह था कि उन्हें अपना पैदाइशी नाम बहुत पसंद था और साथ ही पेशेवर ज़िंदगी में लोग उन्हें इसी नाम से जानते थे। वह कहती हैं, 'कॉलेज में सभी मुझे ज़ुबैरी नाम से बुलाते थे। उसके अलावा मैं आर्किटेक्ट हूं और गायिका भी हूं। इन दोनों पेशों में मुझे लोग इस नाम से जानते हैं।' ज़ुहा के पति बालाच तनवीर ने भी उनके नाम न बदलने के फ़ैसले का समर्थन किया।
 
बालाच बताते हैं, 'ज़ुहा ने अपने असली नाम से अपनी एक पहचान बनाई है। उनका जिस पेशे से संबंध है उसमें एक नाम के साथ लोगों का विश्वास जुड़ा होता है।' कुछ ऐसा ही कहना है जन्नत करीम ख़ान का।
 
नाम और कामयाबी
 
ज़ुहा की तरह जन्नत करीम ख़ान ने भी शादी के बाद अपना नाम नहीं बदला। जन्नत का कहना है, 'जैसे-जैसे हम ज़िंदगी में आगे बढ़ते जाते हैं तो हमारा नाम ही हमारी पहचान बन जाता है। मैंने ज़िंदगी में जितनी भी कामयाबियां हासिल कीं उनके साथ मेरा नाम जुड़ा हुआ है।'
 
एलाफ़ ज़हरा नक़वी का कहना था कि शादी के बाद नाम न बदलना महिला का निजी फ़ैसला होना चाहिए। 'कुछ महिलाओं को अपना नाम पसंद होता है तो कुछ को अपने नाम से ख़ास लगाव होता है। वजह जो भी हो यह फ़ैसला करने का अधिकार महिला को ही होना चाहिए।'
 
उनके पति तलाल ने बताया कि एक वक़्त पर वह चाहते थे कि एलाफ़ उनका नाम अपनाएं क्योंकि उनका मानना था कि अगर सरकारी दस्तावेज़ों में पति-पत्नी का नाम एक जैसा हो तो इमिग्रेशन और अन्य मामलों में आसानी होती है। मगर एलाफ़ से बात करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि किसी का पैदाइशी नाम बदलना अच्छी बात नहीं है।
 
'इंसान जो नाम लेकर इस दुनिया में आए और जिस नाम के साथ बड़ा हो, उसका वह नाम बदल देना शायद उसके साथ एक तरह का ज़ुल्म है।' उन्होंने हंसते हुए कहा, 'सिर्फ़ इसलिए कि आपकी किसी से शादी हो गई है तो आप क्या अपना नाम ही बदल देंगी?'
 
भावुक मसला
 
अपना पैदाइशी नाम बदलना या न बदलना अक्सर महिलाओं के लिए एक भावुक मामला भी होता है। अनम सईद कहती हैं कि उन्हें शादी के कुछ साल के बाद अपना पुराना नाम बदलने पर मलाल होने लगा। 'जब मेरी शादी हुई उस वक़्त मुझे लगता था कि अपने पति का नाम एक अच्छी परंपरा है जो पति को सम्मान देने का प्रतिबिंब है। इसलिए मैंने अपने नाम में अपने पति के ख़ानदानी नाम 'इक़बाल' को जोड़ लिया था।'
 
'मगर शादी के कुछ अरसे बाद जब मैं अमेरिका गई तो वहां लोग मुझे सिर्फ़ मिसेज़ इक़बाल और अनम इक़बाल कहने लगे। तब मुझे अपनी पहचान खो जाने का एहसास होने लगा।' अनम ने बताया कि उन्हें ख़ासकर इस चीज़ का अफ़सोस होने लगा कि वह अपने उस नाम से जुदा हो गईं जो उन्हें उनके दिवंगत पिता ने दिया था। इसलिए कुछ अरसे के बाद उन्होंने अपने पुराने नाम अनम सईद को अपना लिया।
 
कुछ और महिलाओं का भी कहना था कि उन्हें उनका पैदाइशी नाम उनके परिजनों से जोड़ता है। जन्नत करीम ख़ान ने बताया कि उन्हें भी अपना पैदाइशी नाम इसलिए प्यारा है क्योंकि उनका नाम उन्हें अपने दिवंगत पिता से जोड़े रखता है।
 
झंझट का काम
 
कुछ महिलाओं के लिए नाम न बदलने का फ़ैसला व्यावहारिक कारणों पर भी आधारित होता है। हुमा जहांज़ेब कहती हैं कि वह एक कामकाजी महिला हैं इसलिए उनका नाम बदलना बहुत मुश्किल था। 'नाम बदलने का मतलब है सारे शैक्षिक और नौकरियों के दस्तावेज़ पर नाम बदलना जो कि बड़े झंझट का काम है।'
 
मगर आज भी पाकिस्तानी समाज में महिलाओं का नाम न बदलना बड़ी अनहोनी बात समझी जाती है और कई दफ़ा नाम न बदलने वाली महिलाओं को रिश्तेदारों और दोस्तों की ओर से आलोचना का सामना करना पड़ता है। 'चूंकि महिलाएं तलाक़ के बाद अपना पैदाइशी नाम दोबारा अपना लेती हैं इसलिए विवाहित महिलाओं का अपना नाम न बदलना अच्छा नहीं समझा जाता है। ऐसी लड़कियों को लोग सरफिरा समझते हैं।'
 
तलाल का कहना था कि उनके दोस्तों को हैरत होती थी कि उन्होंने अपनी पत्नी एलाफ़ का नाम नहीं बदलवाया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि लोगों की नज़र में नाम बदला नहीं बदलवाया जाता है। इस तरह अक्सर महिलाएं बताती हैं कि सरकारी अफ़सर भी इस बात पर हैरत जताते हैं कि कोई महिला शादी के वक़्त अपना नाम क्यों नहीं बदल रही है।
 
ज़ुहा ज़ुबैरी का कहना था, 'जब शादी के बाद मैं पहचान पत्र बनवाने सरकारी कार्यालय गई तो उन्होंने ख़ुद से ही मेरा नाम बदलकर मेरे नाम के साथ मेरे पति का नाम लगा दिया। जब मैंने आपत्ति जताई तो वे हैरत में पड़ गए कि मैं शादीशुदा होते हुए भी अपना नाम क्यों नहीं बदल रही हूं।'
 
पति से मोहब्बत का इज़हार
 
एक ओर जहां कुछ महिलाएं अपना नाम नहीं बदल रही हैं वहीं बहुत सी महिलाएं अपनी खु़शी से शादी के वक़्त अपने पति का नाम अपनाती हैं। मुअदब फ़ातिमा फ़रहान ने बताया कि उनके लिए शादी के वक़्त अपना बदलना पति से मोहब्बत का इज़हार करने की तरह था।
 
'जब कोई व्यक्ति आप से बेइंतहा प्यार करे और आपका हर तरह से ख़याल रखे तो आपका भी दिल चाहता है कि आप उसका नाम अपने साथ ज़िंदगी भर के लिए जोड़े रखें।' यही वजह थी कि उन्होंने अपने पति का पहला नाम अपने साथ लगाया न कि उनका ख़ानदानी नाम लगाया।
 
दानिश बतूल का कहना था कि बहुत सी महिलाएं शादी की ख़ुशी में अगले ही दिन सोशल मीडिया पर अपना नाम बदलकर अपने शादीशुदा होने का ऐलान कर देती हैं। 'ये उनका अधिकार है और अगर किसी को अपना नाम बदलने में ख़ुशी मिलती है तो इसमें कोई दिक़्क़त नहीं है।'
 
सिदराह औरंगज़ेब जिनकी शादी को 10 साल होने वाले हैं, वो कहती हैं कि जिस वक़्त उनकी शादी हुई तो उन्हें बहुत सी महिलाओं की तरह यह मालूम नहीं था कि नाम बदलना क़ानूनी या सामाजिक तौर पर आवश्यक नहीं है। 'मैं समझती थी कि नाम न बदलने का मतलब है कि आपने पूरी तरह उस ख़ानदान को नहीं अपनाया है जिसका हिस्सा आप बनने जा रही हैं।'
 
सिदराह से सहमति जताते हुए हुमा कहती हैं कि अकसर महिलाओं को नाम न बदलने को लेकर पूरी जानकारी नहीं होती। 'महिलाओं को इस बात के बारे में बताना चाहिए कि ये उनका निजी मामला है और फिर वह इस मामले में जो भी फ़ैसला करें वह उनके पति और समाज को स्वीकार करना चाहिए।' (फोटो सौजन्य : बीबीसी)
ये भी पढ़ें
'विकास' की बलि चढ़ रहे हैं उत्तराखंड के गांव