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Written By BBC Hindi
Last Updated : सोमवार, 30 जनवरी 2023 (09:55 IST)

राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के जम्मू-कश्मीर के लिए क्या मायने हैं

राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के जम्मू-कश्मीर के लिए क्या मायने हैं - What does Rahul Gandhi's Bharat Jodo Yatra mean for Jammu and Kashmir
- विनीत खरे
पूर्व में लंबे दौर की हिंसा देख चुके और अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद सुनहरे भविष्य के वायदों के बीच कश्मीर में लोगों की नज़र राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' पर रही। पिछले साल सितंबर से कन्याकुमारी से शुरू हुई ये यात्रा 75 ज़िलों से होती हुई आख़िरकार श्रीनगर के लाल चौक में घंटाघर पर झंडारोहण से ख़त्म हुई।

कांग्रेस के मुताबिक़, ये यात्रा 136 दिनों में पूरी हुई और 136 में से 116 दिन चलने का दिन था और यात्री रोज़ 23-24 किलोमीटर चले। 'राहुल गांधी आख़िरी उम्मीद हैं हिंदुस्तान में', घंटाघर के सामने एक कश्मीरी युवक ने कहा।उस वक़्त वहां सामने कांग्रेस समर्थक, देश के दूसरे हिस्से से आए हुए यात्री कांग्रेस के झंडे और तिरंगा फहरा रहे थे।

इस व्यक्ति ने कहा, हमें एक ही उम्मीद है। कांग्रेस हुकूमत ही है जो कुछ कर सकती है। उनका कहना था, यहां जो भी बात करता है, उस पर पीएसए (पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट) लगता है। हमारी कोई सुनवाई नहीं है। उनके साथ खड़े एक अन्य शख़्स ने कहा, कश्मीरी क़ौम को लग रहा है कि राहुल गांधी एकमात्र उम्मीद हैं।

नज़दीक खड़ी एक महिला से जब पूछा कि उन्हें राहुल गांधी या इस यात्रा से क्या उम्मीद है, तो उन्होंने कहा, हम देखेंगे कि वो आगे क्या करेंगे। अभी मुझे पता नहीं है। लोग बेचारे उम्मीद से भरे हुए हैं। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 ख़त्म किए जाने का कश्मीर में कई लोगों ने विरोध किया था। राज्य का दर्जा ख़त्म किए जाने से भी नाख़ुशी थी। केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर के तेज़ विकास के अलावा राज्य के दर्जे को बहाल करने की बात की है।

अनुच्छेद 370 को हटाने पर जम्मू और कश्मीर को क्या हासिल हुआ, इस पर बीबीसी से बातचीत में गवर्नर मनोज सिन्हा ने कहा था, देश की संसद के बने कई क़ानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे, अब 890 ऐसे क़ानून हैं जो जम्मू-कश्मीर में लागू हो गए हैं जैसे शिक्षा का अधिकार। दूसरा उद्देश्य था जम्मू-कश्मीर पूरे देश के साथ एकीकृत हो जाए और उसमें भी सफलता मिली है।

सरकार के आलोचक
ये यात्रा कांग्रेस की थी, इसलिए इसमें कांग्रेस की विचारधारा से सहमत लोग और नरेंद्र मोदी सरकार के आलोचक मौजूद थे। कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक तरीकों की बहाली और इसे राज्य का दर्जा दोबारा दिए जाने की बात तो करती है, लेकिन ये भी कहती है कि जम्मू-कश्मीर में कई राजनीतिक मुद्दे हैं, रोज़मर्रा की चिंताए हैं, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा इन दैनिक चिंताओं के हल का फ़ोरम नहीं है।

उधर लोगों ने बातचीत में कहा कि कश्मीर में बेरोज़गारी है, बिजली की समस्या है, उनकी बात हुकूमत तक नहीं पहुंचती, इसलिए उन्हें उम्मीद है कि राहुल गांधी उनकी बात को आगे बढ़ाएंगे। रविवार शाम की एक प्रेसवार्ता में राहुल गांधी ने कहा कि वो जम्मू और कश्मीर की यात्रा में ऐसे किसी व्यक्ति से नहीं मिले जो ख़ुश था।

उन्होंने कहा, मुझे लगा कि जो कुछ भी जम्मू और कश्मीर में हो रहा है, उसे लेकर कोई भी एक्साइटेड नहीं है। लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि लोगों ने उनसे क्या कहा, और उसके जवाब में उन्होंने क्या कहा। जम्मू-कश्मीर मामलों की जानकार राधा कुमार कहती हैं कि सिर्फ़ कांग्रेस ही नहीं बल्कि सभी राजनीतिक दलों की लीडरशिप में ये सोच है कि आप भाजपा को कोई मौका नहीं देना चाहते, इसलिए वो कुछ भी कहते वक़्त बहुत सावधान होते हैं।

भारत जोड़ो नहीं, इसका नाम 'माफ़ी मांगो यात्रा' रखना चाहिए था
इस यात्रा पर जम्मू और कश्मीर भाजपा प्रवक्ता अल्ताफ़ ठाकुर ने कहा कि इसका नाम माफ़ी मांगो यात्रा रखना चाहिए। वो कहते हैं, भारत जब-जब टूटा है, उसे कांग्रेस ने तोड़ा है। 1947 में पाकिस्तान कांग्रेस की ग़लत नीतियों की वजह से बना।

अल्ताफ़ ठाकुर कहते हैं, पीओके आज अगर पाकिस्तान के पास है तो कांग्रेस की ग़लत नीतियों की वजह से है। पाकिस्तान को उन्होंने पीओके गिफ़्ट में दे दिया। जम्मू-कश्मीर में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान लगाने वाली कांग्रेस है।

स्थानीय लोग और यात्रा
श्रीनगर के बाहरी इलाके पंथा चौक, कैंट इलाके आदि से होती हुई ये यात्रा जब लाल चौक की तरफ़ बढ़ रही थी, तो हम यात्रा के साथ रहे।

सड़क के किनारे सुरक्षा बल तो थे ही, लेकिन साथ में आम लोग, बड़े, बूढ़े, बच्चे भी खड़े थे। कुछ लोग वीडियो बनाते दिखे, तो कुछ सेल्फ़ी लेते। कुछ लोगों के चेहरों पर कोई भाव नहीं थे, और हाथ बांधे वो यात्रा और उसके पीछे सुरक्षाबलों से भरी कई गाड़ियों को जाते देख रहे थे। यात्रा के आसपास, शहर में सुरक्षाबल भारी तादाद में थे।


जानकार क्या कहते हैं?
जम्मू विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की पूर्व प्रोफ़ेसर रेखा चौधरी के मुताबिक़, इस यात्रा ने जम्मू-कश्मीर में एक बज़ या शोर पैदा किया है, क्योंकि यहां कुछ और ज़्यादा राजनीतिक गतिविधियां नहीं हो रही हैं। वो कहती हैं, मैं ये नहीं कह सकती है कि इसका चुनावी राजनीति पर कोई असर पड़ेगा या नहीं। इस यात्रा में महबूबा मुफ़्ती भी शामिल हुईं।

पीडीपी नेता नईम अख़्तर के मुताबिक़, इस यात्रा को लेकर बहुत उत्साह है, हालांकि कश्मीरियों के पास कांग्रेस को लेकर जश्न मनाने को ज़्यादा कुछ नहीं है। वे कहते हैं, ये शायद पहला मौका है कि लोग मोदी-विरोध के अपने सेंटीमेंट को दिखा पा रहे हैं। राहुल गांधी भारतीय राजनीति का दूसरा सिरा हैं।

श्रीनगर में राजनीतिक विश्लेषक बशीर मंज़र कहते हैं, यात्रा को ज़बरदस्‍त रिस्पॉन्स मिला है। उन्होंने (राहुल ने) कश्मीरियों के साथ एकजुटता दिखाई है। लोगों को लग रहा है कि कोई उनकी बात कर रहा है। वो कहते हैं, जब से अनुच्छेद 370 हटा, राजनीतिक गतिविधि शून्य है। पहले साल क़रीब-क़रीब सभी राजनीतिक नेता जेल में थे। फिर उनको छोड़ा गया तो राजनीतिक गतिविधि पिकअप नहीं कर पाई।

बशीर मंज़र के मुताबिक़, लोगों का कोई प्रतिनिधि नहीं है। सरकार नौकरशाह चला रहे हैं जिनका आम लोगों से कोई संपर्क नहीं है। लोग परेशान हैं। ऐसे में कोई राष्ट्रीय स्तर का नेता आकर उनके साथ एकजुटता दिखाता है तो उनको लगता है कि कोई हमारी भी बात कर रहा है क्योंकि 2019 के बाद से कश्मीर के बारे में राष्ट्रीय लीडरशिप ने या किसी और क्षेत्रीय दल ने इतनी ज़ोर से कोई बात नहीं की है जितना कि आज राहुल गांधी कर रहे हैं।

जम्मू और कश्मीर भाजपा के प्रवक्ता अल्ताफ़ ठाकुर ने रैली को ड्रामा बताया और कहा कि अगर लोकतंत्र जम्मू और कश्मीर में फला-फूला तो वो 5 अगस्त 2019 के बाद हुआ, और लोगों को हर तरह की आज़ादी है। जम्मू-कश्मीर में यात्रा को मिले रिस्पॉन्स या प्रतिक्रिया पर उन्होंने कहा, जो खाली बर्तन होते हैं वो ज़्यादा बजते हैं।

21 पार्टियों को इन्होंने पत्र भेजे हैं। 21 पार्टियों के लोग इस यात्रा में शामिल हुए हैं। जहां 21 पार्टियां एक साथ हों वहां तो हज़ार-दो हज़ार लोग होंगे ही। लेकिन जिस तरह से रिस्पॉन्स मिलना था इस यात्रा को, वो नहीं मिला।

यात्रा कांग्रेस के लिए मौका
जम्मू विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की पूर्व प्रोफ़ेसर रेखा चौधरी के मुताबिक़, ग़ुलाम नबी आज़ाद और दूसरे कांग्रेसी नेताओं के पार्टी छोड़ देने के बाद पार्टी मुश्किलों का सामना कर रही थी।

वो कहती हैं, मुझे लगता है कि इस यात्रा की वजह से ये लोग ग़ुलाम नबी आज़ाद की पार्टी छोड़कर वापस कांग्रेस में आए हैं। जो लोग वापस कांग्रेस में आ गए हैं, उससे कांग्रेस पार्टी का जो आत्मविश्वास ख़त्म हो गया था, वो वापस आने लगा है। कांग्रेस को अब कुछ भरोसा है कि वो अपने पांवों पर खड़ी हो सकती है।

लेकिन जिस तरह से पीडीपी और नेशनल कॉन्फ़्रेंस, कांग्रेस की इस यात्रा में शामिल हुईं, क्या इसे आने वाले चुनाव से जोड़कर इसके राजनीतिक मायने निकाले जा सकते हैं? बशीर मंज़र कहते हैं, हम देख रहे हैं कि एनसी और पीडीपी कांग्रेस की रैली में शामिल हो रही हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि कल जब चुनाव होंगे तो वो साथ रहेंगी।

कांग्रेस ने इस यात्रा में आख़िरी चरण में शामिल होने के लिए विपक्षी नेताओं को निमंत्रण भेजे थे। देखना होगा कि कितने विपक्षी नेता श्रीनगर में कांग्रेस के इस कार्यक्रम में शामिल होते हैं, हालांकि कांग्रेस ने ये भी कहा है कि इस आमंत्रण को भी चुनावी राजनीति से जोड़कर न देखा जाए। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा है कि 30 जनवरी की कश्मीर रैली को 2024 के लिए चुनावी प्लेटफ़ॉर्म बनाने की कवायद नहीं माना जाना चाहिए।