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Written By BBC Hindi
Last Updated : सोमवार, 18 सितम्बर 2023 (09:31 IST)

शेख़ हसीना के भारत दौरे से क्या वहां बहुत कुछ बदलने वाला है?

शेख़ हसीना के भारत दौरे से क्या वहां बहुत कुछ बदलने वाला है? - Selfie of Joe Biden and Sheikh Hasina
-अबुल कलाम आज़ाद (बीबीसी बांग्ला, ढाका)
 
भारत में आयोजित जी 20 सम्मेलन में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की सेल्फी बांग्लादेश की राजनीति में चर्चा का विषय बन गई है। इस घटना के 2 दिन बाद फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ढाका का दौरा किया। कुछ लोग सेल्फी में शेख़ हसीना के साथ बाइडन की मुस्कुराती हुई तस्वीर को संबंधों में सुधार के संकेत के तौर पर देख रहे हैं।
 
कुछ लोग यह सवाल भी उठा रहे हैं कि एक सम्मेलन में औपचारिक मुलाक़ात और सेल्फी लेना क्या बांग्लादेश चुनाव के मुद्दे पर अमेरिका की नीतियों में बदलाव का संकेत तो नहीं है।
 
चुनाव से पहले हसीना और बाइडन की सेल्फी और उसके एक सप्ताह के भीतर 2 महाशक्तियों रूस और फ्रांस के उच्च-स्तरीय दौरे को बांग्लादेश की राजनीतिक बहस में अहमियत मिल रही है।
 
सत्तारूढ़ पार्टी बांग्लादेश सरकार के प्रति अंतरराष्ट्रीय समर्थन के सवाल पर इन मुद्दों को अहमियत के साथ सामने रख रही है।
 
दुनिया में कैसी है बांग्लादेश को लेकर धारणा
 
अवामी लीग के संयुक्त महासचिव महबूब-उल-आलम हनीफ़ मानते हैं कि इन मुद्दों को बांग्लादेश सरकार के प्रति वैश्विक समुदाय के सकारात्मक रवैए के तौर पर ही देखा जा रहा है।
 
हनीफ़ ने बीबीसी बांग्ला से कहा, 'कुल मिलाकर विश्व में बांग्लादेश सरकार के बारे में एक सकारात्मक धारणा बनी है। यह हमारी कामयाबी है।'
 
उनका कहना था कि दुनिया के बाक़ी हिस्सों में बांग्लादेश के प्रति कुछ ग़लतफ़हमी पैदा हुई थी। हनीफ़ इसके लिए बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी की सक्रियता को ज़िम्मेदार ठहराते हैं।
 
वे कहते हैं कि विपक्ष ने लाबिस्ट की नियुक्ति के जरिए सरकार की विकास और प्रगति के ख़िलाफ़ अभियान चलाया है। हनीफ़ मानते हैं कि बांग्लादेश के प्रति बाक़ी देशों की धारणा अब बदल रही है।
 
फ़िलहाल चुनाव के मुद्दे पर बांग्लादेश की सत्तारूढ़ और विपक्षी पार्टी ने एक-दूसरे के प्रति कठोर रवैया अपना रखा है। दोनों पार्टियां सड़कों पर उतरने के अलावा अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने और उसके प्रचार में भी सक्रिय नज़र आ रही हैं।
 
विपक्षी बीएनपी सरकार के इस्तीफ़े और तटस्थ सरकार के तहत चुनाव के लिए आंदोलन कर रही है। बीएनपी कुछ महीने पहले अमेरिका की ओर से घोषित वीज़ा नीति समेत दूसरे उपायों का भी स्वागत कर रही है।
 
पार्टी शेख़ हसीना और बाइडन की सेल्फी को सामान्य शिष्टाचार मानती है। उसकी दलील है कि ऐसी सेल्फी की अमेरिका की नीति में बदलाव की कोई भूमिका नहीं होगी।
 
बीएनपी के उपाध्यक्ष अब्दुल आवल मिंटू ने बीबीसी बांग्ला से कहा कि अमेरिका की अपनी एक नीति है। उसने काफ़ी सोच-समझ कर वह नीति तैयार और लागू की है। मुझे नहीं लगता कि किसी सेल्फी या बाइडन की बातों से उसमें बदलाव होगा।
 
उनका कहना था, 'बाइडन का अपना प्रभाव ज़रूर है। लेकिन बाइडन या अमेरिकी राष्ट्रपति ऐसी कोई बात या काम नहीं करेंगे जिससे वह नीति बदल जाएगी। क्या वह बांग्लादेश है जो एक व्यक्ति की बात से चलता है?'
 
सेल्फी से क्या होगा?
 
अमेरिका और पश्चिमी देश निष्पक्ष चुनाव आयोजित करने के लिए बांग्लादेश सरकार पर लगातार दबाव डाल रहे हैं।
 
भारत में आयोजित जी 20 सम्मेलन के दौरान बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के साथ वैश्विक नेताओं की नज़दीकी की तस्वीरें क्या उनके रवैए में बदलाव का संकेत हैं?
 
अमेरिका के इलिनॉय स्टेट यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर अली रियाज बदलाव का कोई संकेत नहीं देखते।
 
रियाज कहते हैं, 'मानवाधिकार और निष्पक्ष चुनाव आयोजित करने के मुद्दे पर बांग्लादेश की सत्तारूढ़ पार्टी और अमेरिका के संबंधों में तनाव पैदा हुआ है। अमेरिका बार-बार मुक्त और निष्पक्ष चुनाव की बात कह रहा है। अब तक उसके रवैए में न तो कोई बदलाव आया है और न ही उसका कोई संकेत मिल रहा है।'
 
फ़्रांस और रूस का द्विपक्षीय दौरा
 
रूस के विदेश मंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति भारत में आयोजित जी 20 सम्मेलन के क्रमशः पहले और बाद में ढाका का दौरा किया। आम तौर पर किसी सरकार का कार्यकाल ख़त्म होने के समय ऐसा हाई-प्रोफाइल दौरा सामान्य से अलग है।
 
फ्रांस के राष्ट्रपति के दौरे के दौरान बांग्लादेश विमान के लिए 10 विमान ख़रीदने और द्वितीय सैटेलाइट के निर्माण के लिए फ्रांस की एक कंपनी के साथ सहयोग का मुद्दा उठा था।
 
दूसरी ओर, रूस के विदेश मंत्री के दौरे के दौरान आपसी संबंधों को मज़बूत करने और डॉलर की वैकल्पिक मुद्रा प्रणाली पर चर्चा हुई थी।
 
प्रोफ़ेसर अली रियाज मानते हैं कि ऐसे उच्च-स्तरीय दौरों से अब वाणिज्यिक हित ज्यादा जुड़े हैं। उनकी राय में रूस फ़िलहाल अपने मित्रों की तादाद बढ़ाना चाहता है।
 
वह बांग्लादेश को अपने मित्र के तौर पर देखता है। इसकी वजह यह है कि रंगपुर बिजली परियोजना के ज़रिए बांग्लादेश के साथ रूस का वाणिज्यिक हित जुड़ा है।
 
रियाज कहते हैं, 'राष्ट्रपति मैक्रों का दौरा मूल रूप से एक वाणिज्यिक दौरा था। फ़िलहाल बांग्लादेश में सत्तारूढ़ सरकार एक तरह से कमज़ोर स्थिति और दबाव में है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय ताक़तें अधिक से अधिक वाणिज्यिक सहूलियत लेने का प्रयास करेंगी।'
 
विदेशी दबाव पर बीएनपी और अवामी लीग का रवैया
 
बीएनपी के उपाध्यक्ष अब्दुल आवल मिंटू का कहना है कि चुनाव के लिहाज से यहां रूस और फ्रांस महत्वपूर्ण नहीं हैं। अमेरिका की नीति बदलाव की एक अहम नियामक होगी। अमेरिका का दबाव पहले अंदरूनी था। लेकिन अब सार्वजनिक हो गया है।
 
अब तो उसने साफ़ कर दिया है कि भविष्य में होने वाले चुनाव में मुक्त और निष्पक्ष चुनाव के ख़िलाफ़ काम करने वालों पर पाबंदी लगाई जाएगी। इस पाबंदी के दायरे में पुलिस, न्यायाधीश और सिविल सोसाइटी तक सब क्षेत्र शामिल हैं।
 
दूसरी ओर, सत्तारूढ़ पार्टी चुनाव के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय दबाव को ख़ास तवज्जो देने के लिए तैयार नहीं है। अवामी लीग ने संविधान के मुताबिक़ चुनाव आयोजित करने पर भी सख्त रुख़ अपनाया है। अवामी लीग के नेता महबूब-उल-आलम हनफी ने दावा किया कि मुक्त और निष्पक्ष चुनाव के बारे में उनके विचार विभिन्न देशों के विचारों से मिलते-जुलते हैं। वह कहते हैं, 'माननीय प्रधानमंत्री शेख़ हसीना तो ख़ुद बार-बार कहती रही हैं कि आगामी संसद चुनाव मुक्त, निष्पक्ष और तटस्थ होंगे। हम इसके लिए कृतसंकल्प हैं।'(Photo Courtesy: BBC)
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