शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Punjab election : Channi vs Bhagwant mann
Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 19 जनवरी 2022 (08:37 IST)

पंजाब में भगवंत मान क्या चरणजीत सिंह चन्नी की काट बन पाएंगे?

पंजाब में भगवंत मान क्या चरणजीत सिंह चन्नी की काट बन पाएंगे? - Punjab election : Channi vs Bhagwant mann
सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता
पंजाब चुनाव को लेकर सियासी हलचल एक बार फिर तेज़ है। आम आदमी पार्टी ने मंगलवार को अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर भगवंत मान के नाम की घोषणा कर दी है। वहीं कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से एक दिन पहले एक वीडियो ट्वीट किया गया।
 
वीडियो में अभिनेता सोनू सूद पंजाब का सीएम कैसा हो, ये कहते दिखाई दे रहे हैं और आख़िर में सोनू सूद की आवाज़ के ऊपर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का वीडियो रोल करने लगता है। इस वीडियो को पंजाब कांग्रेस ने भी री-ट्वीट किया है। इसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि पंजाब में कांग्रेस का सीएम चेहरा चन्नी ही होंगे। हालांकि आधिकारिक तौर पर कांग्रेस की तरफ़ से इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है।
 
लेकिन जिस हिसाब से कांग्रेस ने पिछले साल कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम की कुर्सी पर बिठाया था और उनके दलित होने को एक बड़ा 'यूएसपी' करार दिया था, उससे इस कयास को सिरे से ख़ारिज भी नहीं किया जा सकता है।
 
पंजाब चुनाव क्या 'चन्नी बनाम मान' होगा?
ऐसे में पंजाब चुनाव अगर 'चन्नी बनाम मान' हुआ तो क्या बातें होंगी जो मायने रखेंगी? इस सवाल का जवाब जानने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि इस बार पंजाब चुनाव में कौन से बड़े प्लेयर हैं जो मैदान में हैं?
 
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के अलावा, बीजेपी से नाता तोड़ कर अकाली दल और बीएसपी गठबंधन मैदान में है। वही पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया है। इतना ही नहीं किसान आंदोलन में शामिल रहे 22 संगठनों ने भी संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम) के बैनर तले चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है।
 
इस आधार पर पंजाब के इंस्टीट्यूट ऑफ़ डेवलपमेंट एंड कम्यूनिकेशन के निदेशक डॉक्टर प्रमोद कुमार कहते हैं कि इस बार विधानसभा चुनाव में पाँच पार्टियों की लड़ाई है। अकाली दल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तो पिछला चुनाव भी लड़े थे, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह और किसानों की पार्टी ने मुक़ाबले को और पेचीदा बना दिया है।
 
डॉक्टर प्रमोद कुमार ये भी कहते हैं कि हाल के दिनों में आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता कम हुई है क्योंकि भगवंत मान को मुख्यमंत्री बनाने के लिए महज़ 21 लाख लोगों ने वोट डाले जबकि पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए 36 लाख लोगों ने वोट किया था। अगर उनकी लोकप्रियता बढ़ी होती तो 36 लाख से ज़्यादा लोगों को मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगाने के लिए हुए वोट में हिस्सा लेना चाहिए था।
 
वहीं पंजाब यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर डॉक्टर आशुतोष कुमार मानते हैं कि पंजाब में मुक़ाबला दो पार्टियों, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच है। बीजेपी और कैप्टन अमरिंदर सिंह के गठबंधन या फिर अकाली दल को वह रेस में नहीं मानते।
 
अकाली दल के बारे में वह कहते हैं कि पंजाब की जनता के बीच अब एक भाव है कि अकाली दल एक ही परिवार की पार्टी बन कर रह गई है। वहाँ नेतृत्व की दिक़्क़त है। लेकिन साथ में इतना ज़रूर जोड़ते हैं कि कुछ सीटों पर संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम) आम आदमी पार्टी का खेल बिगाड़ सकता है। पिछली विधानसभा में कई ऐसी सीटें थीं जहाँ जीत का अंतर 500-1000 वोट का था। इसलिए वह इस चुनाव को 'चन्नी बनाम मान' मान रहे हैं।
 
कांग्रेस के दलित कार्ड का विपक्षी पार्टियों के पास क्या है जवाब?
पंजाब में वैसे तो दलित वोट 32-34 फ़ीसद के आसपास है। जबकि जाट सिखों की आबादी 25 फ़ीसद के आसपास की ही है। चरणजीत सिंह चन्नी की पहचान दलित सिख की है और भगवंत मान की जाट सिख की। इन आँकड़ों के लिहाज से एक नज़र में लगता है कि चन्नी, मान पर भारी पड़ सकते हैं। लेकिन पंजाब की राजनीति इतनी आसान नहीं है।
 
डॉक्टर प्रमोद कुमार और प्रोफ़ेसर आशुतोष दोनों का मानना है कि धर्म और जाति के आधार पर पंजाब वोट नहीं करता। यहां की राजनीति उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति से अलग है।
 
पंजाब की दलित पॉलिटिक्स पर बात करते हुए डॉक्टर प्रमोद कुमार कहते हैं, "पंजाब में दलित, एक एक्सक्लूसिव वोट बैंक नहीं हैं। इसके दो बड़े कारण हैं। पहली वजह ये कि सिख धर्म जिसने दलित को जाति के तौर पर कमज़ोर किया, और दूसरी वजह है आर्य समाज जिसने पंजाब के हिंदुओं में भी कास्ट सिस्टम को कमज़ोर किया। इस वजह से पंजाब में दलित वोट बैंक के तौर पर एकजुट नहीं हो पाए। हर विधानसभा चुनाव में दलितों का वोट लगभग हर पार्टी को मिलता है।"
 
वह आगे कहते हैं, "यही वजह है कि बहुजन समाज पार्टी जो पंजाब में दलित वोट बैंक अपने साथ करने आई थी वो कभी कामयाब नहीं हो पाई। पंजाब से जो पार्टी बनी उसे उत्तर प्रदेश में जाकर शरण लेनी पड़ी।"
 
पंजाब में बीएसपी का सबसे अच्छा प्रदर्शन 1992 में रहा था जब उन्हें 9 प्रतिशत वोट मिले थे। उसके बाद से उनका ग्राफ़ पंजाब में नीचे जाता रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें दो फ़ीसद से भी कम वोट मिले थे। पिछले चार विधानसभा चुनाव से बीएसपी, पंजाब में एक भी सीट नहीं जीत पाई है।
 
इस वजह से प्रमोद कुमार कहते हैं कि कांग्रेस अगर मुख्यमंत्री का चेहरा चरणजीत सिंह चन्नी को बनाती है, तो 'साइकोलॉजिकल स्पिन' हो सकता है, लेकिन 'दलित वोट बैंक' एजेंडा नहीं बन सकता।
 
प्रोफ़ेसर आशुतोष का कहना है, "पंजाब में सिख भी बंटे हुए हैं। सिख हिंदू भी हैं, सिख दलित भी हैं, सिख ईसाई भी हैं। इसके अलावा डेरा और जत्थे भी होते हैं। उनके बाबा और गुरुओं के अपने अनुयायी होते हैं। दलितों ने कभी एकजुट होकर दलित वोट बैंक के तौर पर वोट नहीं किया है।"
 
प्रोफ़ेसर आशुतोष मशहूर समाजशास्त्री पॉल ब्रास की बात को याद करते हैं जिन्होंने कहा था - 'पंजाब की राजनीति प्याज़ की तरह है, जिसमें कई परतें हैं'।
 
प्रोफ़ेसर आशुतोष 'लोक-नीति-सीएसडीएस' के सर्वे भी पंजाब में कराते आए हैं। उस सर्वे के आधार पर वह कहते हैं कि पंजाब के दलित सिख आमतौर पर अकाली दल के साथ नज़र आते हैं और हिंदू दलित कांग्रेस के साथ नज़र आते हैं। 2017 में भी इसी पैटर्न पर वोट हुआ था।

हालांकि 2012 में हिंदू दलितों ने अकालियों का साथ दिया था। इस वजह से माना जा रहा है कि चरणजीत सिंह चन्नी को अगर कांग्रेस आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करती है, तो उनको थोड़ा फ़ायदा मिल सकता है।
 
पंजाब वोट किस आधार पर करता है?
लेकिन किसी पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा दलित नहीं होगा तो क्या कोई ख़ास फ़र्क पड़ेगा? इस सवाल का जवाब जानने के लिए ये समझना ज़रूरी है कि आख़िर पंजाब की जनता वोट कैसे करती है?
 
प्रोफ़ेसर आशुतोष कहते हैं, पंजाब में वोटिंग के मुख्यत: दो आधार हैं। "पहला है, 'दिल माँगे मोर' का फ़ंडा। यानी हर पार्टी अपनी अपनी तरफ़ से मुफ़्त योजनाओं और वादों की झड़ी लगा देती है। जैसे इस बार आम आदमी पार्टी ने महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये देने का वादा किया है तो कांग्रेस ने 2000 रुपये देने का वादा कर दिया। दूसरा है, 'आइडेंटिटी पॉलिटिक्स'। पंजाब में जाटों का जितना दबदबा है, उतना कहीं नहीं है। यहां हिंदू या दलित होना अहम नहीं है, लेकिन जाट होना अहम है।"
 
इस खांचे में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार फ़िट बैठते हैं। चूंकि बाकी दलों ने अपने मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा नहीं की है, इसलिए उनके बारे में नहीं कहा जा सकता।
 
पंजाब के वोटिंग पैटर्न पर बात करते हुए डॉक्टर प्रमोद कुमार कहते हैं, "पंजाब में ना तो दलित, दलित की तरह वोट करता है और ना हिंदू, हिंदुत्व पर वोट करता है। अगर ऐसा होता तो अरुण जेटली कभी पंजाब से चुनाव नहीं हारते। बीजेपी अकेले भी जब पंजाब में लड़ती थी, तब भी वोट बैंक छह फ़ीसद से ज़्यादा नहीं ला पाई। पंजाब, भारत की सबसे सेक्युलर सोसाइटी में से एक है। यहां मुद्दों पर चुनाव लड़े जाते हैं, जहाँ बेरोज़गारी से लेकर खेती, किसानी और बेअदबी का मुद्दा भी बनता है, लेकिन जाति और धर्म मुख्य मुद्दे नहीं होते।"
 
हालांकि वह मानते हैं राजनीतिक दलों द्वारा जाति और धर्म को मुद्दा बनाने की कोशिश होती रहती है पर जनता में हिंदू बनाम सिख जैसा ध्रुवीकरण नहीं होता है।
ये भी पढ़ें
अखिलेश को बड़ा झटका, मुलायम की बहू अपर्णा यादव भाजपा में शामिल