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Last Modified: शुक्रवार, 17 मई 2019 (16:00 IST)

क्यों बेचैन हैं काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर के मुसलमान?

क्यों बेचैन हैं काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर के मुसलमान? - kashi vishwanath corridor
- नितिन श्रीवास्तव (वाराणसी से)
 
2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के बीच अगर किसी शहर की शक्ल में फ़र्क़ दिखता है तो उसमें बनारस भी एक है। काशी या वाराणसी की इस प्राचीन और ऐतिहासिक शहर का नवीनीकरण पिछले कुछ वर्षों से जारी है।
 
साथ ही जारी हैं नवीनीकरण से जुड़े विवाद जिनमें शीर्ष स्थान की होड़ में बहुचर्चित काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण शामिल है। जिसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का नाम दिया गया है। लक्ष्य है गंगा तट पर ललिता घाट से काशी विश्वनाथ मंदिर तक पहुंचने के मार्ग को चौड़ा कर सुंदर बनाना।
 
इस मुहीम में सैंकड़ों लोग इस बात से ख़ुश हैं कि काशी की संकरी गलियों में बसे उनके पुराने घरों का अधिग्रहण कर सरकार उन्हें क़ीमत से दोगुना मुआवज़ा दे रही है। वहीं तमाम ऐसे भी हैं जो इस फ़ैसले से आहत हैं और अपने पुराने काशी की गलियों वाले रहन-सहन और खान-पान की संस्कृति को नष्ट होता नहीं देख पा रहे हैं।
 
इसके अलावा काशी के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी हैं जो काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर के बनने से अहसज होते दिख रहे हैं। इनकी असहजता की वजह है काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई ज्ञानवापी मस्जिद। मंदिर-मस्जिद दोनों के आस-पास के क्षेत्र को लगभग ख़ाली सा कर दिया गया है।
 
मंदिर की गली में प्रवेश करने पर हमारी मुलाक़ात सुभाष चक्रवर्ती से हुई जो यहीं पर चूड़ियों का व्यापार करते हैं। उन्होंने कहा, "लोगों के दिमाग़ में दूसरी बातें आ रही हैं। जो सोच रहे हैं, वही कह रहे हैं। जैसे कभी बात होती है कि ये कॉरिडोर इसलिए बनाया जा रहा है कि यहाँ पब्लिक की भीड़ हो सके, कभी कुछ किया जा सके। इस तरह की लोगों की सोच है। अब क्या सच्चाई है, ये तो लोगों के मन में ही है, मंशा उनकी है। इससे जनता खुश नहीं है, बस।"
 
दरअसल इलाक़े में साढ़े पांच लाख वर्ग फ़ुट जगह ख़ाली होनी है। इस प्रक्रिया में क़रीब 300 घरों को ख़रीदा जाना है और अब तक 200 से ज़्यादा घर ख़रीदे जा चुके हैं। इन घरों को गिराने के बाद दूर सड़क से ज्ञानवापी मस्जिद की पूरी इमारत साफ़ दिखने लगी है और उसके सामने एक बड़ा मैदान निकल आया है जिसे एक पार्क में तब्दील होना है।
 
वाराणसी के मुस्लिम समुदाय की चिंता की वजह यही मैदान लगता है। शहर के पुराने बाशिंदे महफ़ूज़ आलम पेशे से वक़ील हैं और कहते हैं, "एक भी काशीवासी को सौंदर्यीकरण से दिक़्क़त नहीं है। लेकिन सभी पहलुओं पर ग़ौर करने के बाद ही होना चाहिए ये सब।"
 
उन्होंने कहा, "मुसलमानों के दिल में बैठ गया है कि आज नहीं तो कल ज्ञानवापी मस्जिद पर भी ख़तरा होगा। पहले वहाँ इतना बड़ा मैदान नहीं था कि जहाँ दस-पाँच हज़ार आदमी इकट्ठा हो सकते थे। आज की डेट में तो वहाँ मॉब भी बन सकती है, उस कंडीशन में तो सरकार अपनी लाचारी बयान कर देगी कि तमाम दुश्वारियाँ थीं। इसलिए पुख़्ता इन्तज़ाम करना चाहिए उसकी सुरक्षा को लेकर।"
 
महफ़ूज़ आलम का इशारा 1992 में अयोध्या में हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस की तरफ़ है। जब से काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना का काम शुरू हुआ है इलाक़े में किसी न किसी तरह का तनाव भी दिखता रहा है। बहस गर्म रही है कि घरों का अधिग्रहण कर उन्हें गिराने के साथ-साथ उनके भीतर बने मंदिरों को भी गिराया गया।
मुस्लिमों को घर गिराने की ख़बर झूठी
इसी बीच ऐसी फ़ेक न्यूज़ भी चर्चा में रही कि 'काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर प्रोजेक्ट' के लिए मोदी सरकार ने रास्ते में पड़ने वाले 80 मुस्लिम घरों को ख़रीद लिया है। इस प्रोजेक्ट के मुख्य कार्यपालक अधिकारी यानी सीईओ विशाल सिंह ने सभी दावों को ख़ारिज करते हुए कहा कि, "न तो एक भी मंदिर तोड़ा गया है और न ही किसी मूर्ति को कोई नुकसान हुआ है।"
 
रही बात मुस्लिम घरों को ख़रीदने की ख़बर की तो वो फ़र्ज़ी ऐसे साबित हुई क्योंकि काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर वाले इलाक़े में मुस्लिम आबादी ही नहीं रहती है। लेकिन इलाक़े को ख़ाली करने की प्रक्रिया में विवाद तब उठा जब अक्तूबर, 2018 में काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए मस्जिद के पास वाले गेट नम्बर-4 पर एक छोटे चबूतरे को हटाया गया।
 
हालाiकि ये चबूतरा मस्जिद का हिस्सा नहीं था लेकिन ये सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड की ज़मीन पर था। इस घटना से इलाक़े में हंगामा मच गया जब अल्पसंख्यक समुदाय के सैंकड़ों लोग जमा हो गए और उनके समर्थन में कई ऐसे हिंदू संगठन भी पहुiच गए जो 'काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर प्रोजेक्ट' का विरोध कर रहे हैं।
 
ज़िला प्रशासन ने मामले की संजीदगी को ध्यान में रखते हुए इस चबूतरे का पुनर्निर्माण दोबारा कराया लेकिन इसके बाद से क्षेत्र के मुस्लिम समुदाय के बीच असहजता बढ़ी दिखती है।
 
क्या कहते हैं इमाम?
हमारी मुलाक़ात वाराणसी की उस्मानिया जामा मस्जिद के इमाम मुफ़्ती हारून रशीद नक्शबंदी से हुई। उन्होंने कहा, "मस्जिद जिस तरह से थी उसका स्वरूप ये बदलते चले जा रहे हैं। कल कुछ थी आज कुछ है। उसकी हिफ़ाज़त के इंतज़ामात थे, वो भी ये ख़त्म कर रहे हैं, तो आदमी बेचैन क्यों नहीं होगा। जहां पर कल फ़ौजी बैठ कर उसकी हिफ़ाज़त करते थे, आज उनकी जगह छीन ली गई है।"
 
कई मुस्लिमों का कहना है कि मस्जिद के इर्द-गिर्द बनी इमारतें उसकी हिफ़ाज़त भी करती थीं लेकिन अब वो सब ख़त्म हो चुका है। ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है जब कॉरिडोर निर्माण के विरोध में जितेंद्र नाथ व्यास (व्यास विश्वनाथ मंदिर) और अंजुमन इंतज़ामिया मस्जिद (जो ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करती है) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि मंदिर परिक्षेत्र में निर्माण से पहले उनकी इजाजत नहीं ली गई और भवनों को तोड़ने से असुरक्षा बढ़ी है।
 
आशंका के आधार पर विस्तारीकरण पर रोक नहीं: सुप्रीम कोर्ट
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका ख़ारिज करते हुआ कहा, "महज़ आशंका के आधार पर विश्‍वनाथ मंदिर के विस्‍तारीकरण पर रोक नहीं लगाई जा सकती।" अदालत ने ये भी कहा कि, "इस तरह की याचिका से वाराणसी की शांति में बाधा आ सकती है।"
 
काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी और प्रोजेक्ट के सीईओ विशाल सिंह भी इस बात को दोहराते हैं कि, "इस तरह की असुरक्षा की बात करने का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि किसी तरह का साम्प्रदायिक तनाव है ही नहीं।"
 
उन्होंने बताया, "ज्ञानवापी मस्जिद पूरी तरह सुरक्षित है। वो तीस फ़ीट ऊंचे और ढाई इंच मोटे बार से घेरा गया है, वहां चौबीसों घंटे तीन परतों की सुरक्षा है और वहां हथियारबंद केंद्रीय सुरक्षा बल तैनात हैं। उस इमारत के बीच से एक भी ईंट न हिलाई गई, न ऐसी योजना है। बल्कि उस स्थान को साफ़ करने से उसकी ख़ूबसूरती और बढ़ रही है।"
लेकिन वाराणसी में उर्दू भाषा के वरिष्ठ पत्रकार गुफ़रान अहमद को लगता है कि, "इस तरह के फ़ैसलों में अगर सभी सम्बंधित संस्थाओं या संगठनों को शामिल ही न किया जाए तो फिर इंसान को यक़ीन कैसे दिलाया जा सकता है।"
 
हालांकि इस प्रोजेक्ट को शुरू हुए अब कुछ समय हो गया लेकिन कुछ लोग हैं जो सिर्फ़ मुआवज़े से खुश नहीं। सौरभ कुमार काशी-विश्वनाथ गली में एक किराए की दुकान चलाते हैं और उन्होंने कहा, "मस्जिद या मंदिर की सुरक्षा या असुरक्षा का तो नहीं पता लेकिन हम लोग तो दुकानदार हैं, हमें दुकान के बदले दुकान चाहिए और कुछ नहीं चाहिए।"
 
हमारा आख़िरी पड़ाव था ख़ुद काशी विश्वनाथ मंदिर जहां मिलना था महंत कुलपति तिवारी से। जिस दौरान हमारी उनसे बात हो रही थी बग़ल की ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज़ पढ़ी जा रही थी।
 
महंत तिवारी ने अपने कमरे की एक खिड़की खोल कर मंदिर के आंगन और मस्जिद के गुम्बद की ओर देखते हुआ कहा, "कॉरिडोर का भूचाल आया, किसने लाया, क्यों लाया ये बाबा जाने, बाबा की मर्ज़ी जाने। करने वाला जाने, करवाने वाला जाने। अब जो हमारे मुसलमान भाई हैं उनको भय हो गया है कि ऐसा तो नहीं है कि अयोध्या की पुनरावृत्ति होने वाली है, बस इसीलिए थोड़ा भयभीत हैं।"
 
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