• Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Israel hamas, hizbullah and islamic zihad,
Written By BBC Hindi
Last Updated : बुधवार, 11 अक्टूबर 2023 (08:22 IST)

हमास, हिज़्बुल्लाह और इस्लामिक जिहाद: इसराइल के लिए कितनी बड़ी चुनौतियां

israel hamas war
राघवेंद्र राव, बीबीसी संवाददाता
बीते शनिवार हमास ने गाजा से इसराइल पर घातक हमला किया। इस हमले के कुछ ही घंटों बाद रविवार को लेबनान के उग्रवादी संगठन हिज़्बुल्लाह ने दक्षिण लेबनान से इसराइल पर गोलीबारी की, जिसका जवाब इसराइल ने भी ज़बरदस्त गोलीबारी से दिया।
 
रविवार को ही हिज़्बुल्लाह ने कहा कि उसने फिलिस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए शीबा फार्म्स में तीन चौकियों पर रॉकेट और तोपें चलाई।
 
हिज़्बुल्लाह के वरिष्ठ अधिकारी हाशिम सफीदीन ने बेरूत के थोड़ा बाहर दाहिएह में फिलिस्तीनी लड़ाकों का समर्थन करते हुए कहा, "हमारा इतिहास, हमारी बंदूकें और हमारे रॉकेट आपके साथ हैं"।
 
हिज़्बुल्लाह के इस बयान के कुछ ही घंटों बाद सोमवार को फिलिस्तीनी संगठन इस्लामिक जिहाद ने दक्षिण लेबनान और उत्तरी इसराइल की सरहद पर कई इलाक़ों में बमबारी करने की ज़िम्मेदारी ली। जवाबी कार्रवाई करते हुए इसराइल ने भी इस इलाक़े में हवाई हमले किए।
 
ये बात किसी से छुपी हुई नहीं हैं कि ईरान हमास और हिज़्बुल्लाह जैसे चरमपंथी संगठनों को आर्थिक और सैन्य सहायता देता रहा है। इसलिए ये सवाल उठना जायज़ है कि क्या ईरान हमास, हिज़्बुल्लाह और इस्लामिक जिहाद जैसे संगठनों के ज़रिये इसराइल की घेराबंदी करने की कोशिश कर रहा है?
 
गाजा से इसराइल पर हमला होने के अगले ही दिन हिज़्बुल्लाह का दक्षिण लेबनान से इसराइल पर हमला करना हमास और हिज़्बुल्लाह की इसराइल को दो मोर्चों पर उलझाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
 
शिया कट्टरवाद पर आधारित हिज़्बुल्लाह की स्थापना 1982 में इस्लामिक देश लेबनान में हुई थी। अतीत में जारी किए गए घोषणापत्रों के मुताबिक़ हिज़्बुल्लाह का मक़सद सशस्त्र संघर्ष के ज़रिये इसराइल को ख़त्म करना और 'अमेरिकी आधिपत्य और क्रूर पूंजीवादी ताक़तों के ख़िलाफ़ लड़ना' है।
 
इसराइल के मुताबिक़ हिज़्बुल्लाह में क़रीब 45,000 लड़ाके हैं, जिसमें से 20,000 सक्रीय रहते हैं और 25,000 रिज़र्व में।
 
इसराइली डिफेंस फोर्सेज का कहना है कि हर साल हिज़्बुल्लाह को क़रीब 70।0 करोड़ डॉलर से ज़यादा धन मिलता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा ईरान से आता है। साथ ही इसराइल के मुताबिक़ ईरान हिज़्बुल्लाह को हथियार, प्रशिक्षण और खुफ़िया मदद देता है।
 
इसराइल का कहना है कि हिज़्बुल्लाह के शस्त्रागार में 120,000 से 130,000 मिसाइलें मौजूद हैं, जिनमें लंबी दूरी की मिसाइलें शामिल हैं जो पूरे इसराइल तक पहुंचने में सक्षम हैं।
 
साथ ही हिज़्बुल्लाह के पास एंटी-टैंक हथियार, दर्जनों मानव रहित हवाई वाहन, उन्नत एंटी-शिप मिसाइलें, उन्नत एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइलें और हवाई रक्षा प्रणालियाँ भी मौजूद हैं।
 
अमेरिका, ब्रिटेन, अरब लीग, कनाडा, अर्जेंटीना, बहरीन, कोलंबिया, जर्मनी, खाड़ी सहयोग परिषद, होंडुरास, इज़राइल, नीदरलैंड और पराग्वे पूरे हिज़्बुल्लाह को आतंकवादी समूह मानते हैं। वहीं दूसरी तरफ़ ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ और न्यूजीलैंड हिज़्बुल्लाह की सैन्य शाखा को एक आतंकवादी समूह मानते हैं।
 
ईरान की परछाई
फिलिस्तीनी मुद्दे को समर्थन देना ईरान की विदेश नीति का एक ज़रूरी पहलू रहा है और ख़बरों की मानें तो शनिवार को गाजा से इसराइल पर हुए हमलों के बाद ईरान में जश्न का माहौल था। लेकिन इसके बावजूद सोमवार को ईरान ने उन आरोपों को ख़ारिज कर दिया, जिनमें कहा गया था कि ग़ज़ा से हुए हमलों में उसकी भूमिका थी।
 
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी ने कहा, "ईरानी भूमिका के आरोप।।। राजनीतिक उद्देश्यों पर आधारित हैं।" उन्होंने कहा कि ईरान फिलिस्तीन या किसी और देश के फ़ैसलों में दख़ल नहीं देता है। साथ ही ईरान ने इसराइल को धमकी दी कि अगर उसने ईरान पर हमला किया तो उसका जवाब विनाशकारी होगा।
 
संयुक्त राष्ट्र में भी ईरान ने ग़ज़ा से हुए हमलों में किसी भूमिका से इनकार किया है।
 
समाचार एजेंसी एएफपी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन ने सितंबर की शुरुआत में लेबनान की यात्रा के दौरान लेबनानी हिज़्बुल्लाह, हमास और फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद के अधिकारियों से मुलाक़ात की और "रेज़िस्टेंस" या प्रतिरोध के लिए ईरान के मज़बूत समर्थन की बात की।
 
वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक हालिया रिपोर्ट में हमास और हिज़्बुल्लाह के वरिष्ठ सदस्यों का हवाला देते हुए कहा गया है कि ईरानी सुरक्षा अधिकारियों ने इसराइल पर शनिवार को हमास के अचानक हमले की योजना बनाने में मदद की और पिछले सोमवार को बेरूत में एक बैठक में हमले के लिए हरी झंडी दी गई थी।
 
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि अमेरिका ने इन हमलों में ईरान का हाथ होने का अभी तक कोई सबूत नहीं देखा है।
 
ये मानते हुए कि ईरान हमास को धन और हथियार मुहैया करवाता रहा है, व्हाइट हाउस भी कह चुका है कि ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि ईरान इन हमलों में सीधे तौर पर शामिल था।
 
इसराइल का कहना है कि ईरान के इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड की कुद्स फोर्स और उनके क्षेत्रीय प्रतिनिधियों का सबसे बड़ा मक़सद इसराइल का अतिक्रमण और विनाश है।
 
इसराइल के मुताबिक़ इस मक़सद को हासिल करने के लिए ईरानी शासन ने इसराइल की सीमाओं पर हिज़्बुल्लाह, हमास, इस्लामिक जिहाद और शिया मिलिशिया जैसे आतंकी संगठनों को स्थापित करने की कोशिशों में अरबों डॉलर खर्च किए हैं।
 
इसराइल के लिए अमेरिकी सैन्य मदद
हमास, हिज़्बुल्लाह और इस्लामिक जिहाद जैसे आतंकी संगठनों से बढ़े हुए ख़तरे से निपटने के लिए इसराइल को अपने मित्र देश अमेरिका से भी मदद मिल रही जो आने वाले वक़्त में बढ़ती जाएगी।
 
अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा है कि अमेरिका इसराइल के लिए अपना समर्थन दिखाने के लिए कई सैन्य जहाज और विमान भेज रहा है।
 
ऑस्टिन ने एक बयान में कहा कि उन्होंने यूएसएस गेराल्ड आर। फोर्ड कैरियर स्ट्राइक ग्रुप को पूर्वी भूमध्य सागर में इसराइल के नज़दीक ले जाने का आदेश दिया है। इस स्ट्राइक ग्रुप में एयरक्राफ्ट कैरियर, एक निर्देशित मिसाइल क्रूज़र और चार निर्देशित मिसाइल विध्वंसक शामिल हैं।
 
ऑस्टिन ने यह भी कहा कि अमेरिका ने क्षेत्र में अमेरिकी वायु सेना के एफ-35, एफ-15, एफ-16 और ए-10 लड़ाकू विमान स्क्वाड्रन को बढ़ाने के लिए भी कदम उठाए हैं। साथ ही उन्होंने कहा है कि अमेरिका इसराइल को युद्ध सामग्री मुहैया करवाएगा।
 
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रविवार को इसराइली प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से कहा कि इसराइली रक्षा बलों के लिए अतिरिक्त सहायता भेजी जा रही है और आने वाले दिनों में और भी सहायता दी जाएगी।
 
'गाजा से निपटना बड़ी चुनौती'
एके महापात्रा दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर वेस्ट एशियन स्टडीज़ में प्रोफेसर हैं।
वे कहते हैं, "लेबनान से हिज़्बुल्लाह के हमलों से निपटना इसराइल की सेना के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। इसराइल की सेना लेबनान में हवाई हमले कर सकती है। इसराइल अभी गाजा में ज़मीनी हमला शुरू करेगा और हमास की सरकार को वहां से हटाएगा। ये इसराइल का दीर्घकालिक उद्देश्य है। इसराइल चाहेगा की ग़ज़ा में कोई ऐसी सरकार बैठा दी जाए जो उनका समर्थन करती हो।"
 
महापात्रा मानते हैं कि अभी के हालात इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। वो कहते हैं, "ईरान हर तरह से हमास की मदद करता है चाहे वो पैसे से हो या आधुनिक हथियारों से। लेकिन इसराइल और ईरान के बीच हालात एकदम से नहीं बिगड़ेंगे। ईरान भी नहीं चाहेगा की वो सीधे तौर पर किसी युद्ध में शामिल हो। ईरान के आतंरिक हालात ठीक नहीं हैं। उनके पास संसाधन भी नहीं हैं और उन पर सैंक्शंस भी लगे हुए हैं। इस स्थिति में दूसरे देश भी एकदम से शामिल नहीं होंगे। हमास भी जानता है कि मुस्लिम देशों का समर्थन उसे नहीं मिल रहा है। चाहे वो सऊदी अरब हो या संयुक्त अरब अमीरात हो या बहरीन हो।"
 
सवाल ये भी है कि इस हमले के पीछे हमास की मंशा क्या थी? प्रोफेसर महापात्रा कहते हैं कि ईरान ने हमास का इस्तेमाल किया है। ईरान पहले ही लेबनान और सीरिया जैसे देशों में हिज़्बुल्लाह को इस्तेमाल कर अपना प्रभाव बना चुका है। तो शायद उन्होंने सोचा कि हमास जैसा आतंकी संगठन जो इस्लाम के नाम पर लड़ता है उसका इस्तेमाल इसराइल के ख़िलाफ़ किया जा सकता है ताकि इसराइल ईरान के लिए मुश्किलें न खड़ी कर सके।
 
उनका कहना है कि इस हमले का मक़सद "दूसरे फिलिस्तीनी गुटों और मुसलमानों को लामबंद करना" भी रहा होगा। वे कहते हैं, "पर ऐसा होगा नहीं क्यूंकि मुसलमान देश बंटे हुए हैं।"
 
'ईरान सीधा टकराव नहीं चाहेगा'
रक्षा और रणनीतिक विशेषज्ञ क़मर आग़ा कहते हैं कि इसराइल के लिए जो बड़ी मुश्किल है वो ऑक्युपायिड टेरिटरी (कब्ज़ा किया हुआ इलाक़ा) से ही जुड़ी है। वे कहते हैं, "हमास तो है ही लेकिन हिज़्बुल्लाह भी मैदान में उतर सकता है।"
 
बड़ा सवाल ये है कि ईरान के समर्थन से हमास और हिज़्बुल्लाह इसराइल के लिए कितनी मुश्किल खड़ी कर सकते हैं।
 
क़मर आग़ा कहते हैं, "इसराइल आर्थिक और सैन्य रूप से मज़बूत देश है। वहीं दूसरी तरह ईरान किसी देश के साथ कोई सीधा टकराव चाहता ही नहीं है। वो सिर्फ़ शिया मिलिशिया का समर्थन करता है और खुल कर करता है। और इसराइल और अमेरिका की जो नीतियां हैं उनके वो ख़िलाफ़ है। लेकिन वो जंग नहीं चाहता क्यूंकि वो जानता है कि जंग होगी तो उनका सारा इंफ्रास्ट्रक्चर बर्बाद हो जाएगा।"
 
आग़ा के मुताबिक़ ईरान युद्ध भले ही न चाहे लेकिन साथ ही साथ तैयारी भी करता रहता है। वे कहते हैं, "ईरान बहुत से क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होने की कोशिश कर रहा है और काफ़ी कुछ हासिल भी कर चुका है--उन्होंने बहुत सारी टेक्नोलॉजी विकसित कर ली है, उनका स्पेस और न्यूक्लियर प्रोग्राम है।"
 
क़मर आग़ा कहते हैं कि "ख़तरा उन देशों में ज़्यादा है जो अमेरिका के मित्र राष्ट्र हैं और जिनके इसराइल से अच्छे रिश्ते हैं"। "वहां पर पॉपुलर मूवमेंट खड़े हो सकते हैं अगर वो इस वक़्त फिलिस्तीन का समर्थन नहीं करते हैं। हर जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। इस्तानबुल और कई शहरों में हज़ारों लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। कुवैत में प्रदर्शन हुए। सऊदी अरब में प्रदर्शन तो नहीं हुए लेकिन वहां लोगों में गुस्सा है।"
 
'फिलिस्तीन का मुद्दा फिर सुर्ख़ियों में'
जानकारों का मानना है कि हमास के हमले की वजह से फिलिस्तीन का मुद्दा फिर से एक बार वैश्विक मंच पर आ गया है।
 
प्रोफेसर महापात्रा कहते हैं, "हमास के हमले ने ये सुनिश्चित कर दिया है कि फिलिस्तीन का मुद्दा दोबारा फोकस में आ गया है। सऊदी अरब, यूएई, बहरीन जैसे देश चीज़ों को सामान्य करने की कोशिश करेंगे। आई2यू2 (इंडिया, इसराइल, यूएई, यूएसए) समूह बनने के बाद से तनाव शुरू हो गया था। चिंताएं उठ रही थी की क्या दुनिया के देश इसराइल के साथ सम्बन्ध सामान्य कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमास ये सोचता होगा कि अगर कई मुस्लिम देश इसराइल के दोस्त बन गए तो फिर फिलिस्तीन का मुद्दा कौन उठाएगा।"
 
महापात्रा कहते हैं कि मिस्र एक ज़माने में फिलिस्तीन के लिए लड़ता था पर इसराइल के साथ कैंप डेविड एकॉर्ड कर उसने फिलिस्तीन के मुद्दे से खुद को दूर कर लिया। वे कहते हैं कि इराक-ईरान युद्ध हुआ, यमन युद्ध हुआ, सीरिया में गृहयुद्ध हुआ तो लोग धीरे-धीरे फिलिस्तीन के मुद्दे को भूल गए। ये भी एक मक़सद हो सकता है कि फिलिस्तीन का मुद्दे को फिर से केंद्र में लाने के बारे में हमास ने सोचा हो।
 
क़मर आग़ा भी मानते हैं कि "हमास ने फिलिस्तीन के मुद्दे को दोबारा से अंतर्राष्ट्रीय पटल पर रख दिया है"। वे कहते हैं, "हमास बिल्कुल जानता था कि जवाबी कार्रवाई होगी। हमास की और भी योजनाएं होंगी जिनके बारे में फ़िलहाल कोई नहीं जानता। उनका कोई प्लान बी भी हो सकता है।"
ये भी पढ़ें
भारत ने कहा, इसराइल में फंसे नागरिकों को सुरक्षित लाएंगे