पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने स्वीकार किया है कि पाकिस्तानी सेना और देश की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई ने चरमपंथी गुट अल-क़ायदा को ट्रेनिंग दी थी। इमरान ख़ान ने ये भी कहा कि पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत फ़ौज से लड़ने के लिए चरमपंथी गुटों को तैयार किया था। उन्होंने साथ ही कहा कि पाकिस्तान ने 9/11 के हमले के बाद अमेरिका का साथ देकर बहुत बड़ी ग़लती की।
इमरान ख़ान ने न्यूयॉर्क में एक थिंक टैंक काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशंस (सीएफ़आर) के एक कार्यक्रम में ये बातें कहीं। उनके इस कार्यक्रम में इमरान ख़ान के जवाबों के मुख्य अंश-
इस कार्यक्रम में इमरान ख़ान से अमेरिका के पूर्व रक्षामंत्री जिम मैटिस के एक संस्मरण में की गई उनकी एक टिप्पणी पर प्रतिक्रिया मांगी गई जिसमें जिम मैटिस ने कहा है कि जितने भी देशों से मेरा वास्ता पड़ा उनमें मैं पाकिस्तान को सबसे ख़तरनाक मानता हूं। इमरान ख़ान ने इसके जवाब में कहा कि पाकिस्तान में चरमपंथ इतना क्यों बढ़ा, इसको मैटिस पूरी तरह नहीं समझते होंगे।
उसके बाद इमरान ने 80 के दशक की परिस्थितियों की चर्चा करते हुए कहा, 1980 में सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण किया तो पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ मिलकर प्रतिरोध किया था। पाकिस्तान की आईएसआई ट्रेनिंग में दुनियाभर से बुलाए गए चरमपंथियों को ट्रेनिंग दी गई। इन लोगों को सोवियत संघ के ख़िलाफ़ जिहाद करने के लिए तैयार किया गया। इस तरह से हमने चरमपंथियों के समूह को तैयार किया।
उन्होंने कहा कि इसके बाद 1989 में जब सोवियत सेना अफ़ग़ानिस्तान से निकल गई और अमेरिका पाकिस्तान से चला गया तो पाकिस्तान में ये जिहादी गुट रह गए, और 9/11 के बाद पाकिस्तान ने एक बार फिर आतंक के विरुद्ध लड़ाई में अमेरिका का साथ दिया और इस बार जब अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान लौटा तो जिन्हें पाकिस्तान जिहादी गुट समझता था, वो आतंकवादी गुट बन चुके थे।
अमेरिका का साथ देकर ग़लती की : इमरान ने कहा, हमने पहले उन्हें जिहाद के लिए ट्रेनिंग दी और फिर उन्हीं लोगों से कहा कि ये आतंकवाद है। मुझे लगता है कि हमें तटस्थ रहना चाहिए था। पाकिस्तान ने 9/11 के बाद अमेरिका का साथ देकर बहुत बड़ी ग़लती की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को इस वजह से 150 से 200 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ और इससे उन्हें एक सबक़ मिला।
इमरान ख़ान ने कहा, मेरे विचार से पाकिस्तान सरकार को वह वादा नहीं लेना चाहिए जो वे पूरा नहीं कर सकते थे। वो कर भी कैसे सकते थे? वो गुट जो पाकिस्तानी सेना के क़रीब थे, अब सेना उन्हें ही ख़त्म करने की कोशिश कर रही थी।
कार्यक्रम में इमरान ख़ान से ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में पाए जाने के बारे में भी पूछा गया जिसके जवाब में इमरान ख़ान ने पाकिस्तानी सेना और ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई और अल-क़ायदा के संबंध का ज़िक्र किया।
अल-क़ायदा को दी ट्रेनिंग : इमरान ने कहा कि पाकिस्तानी सेना, आईएसआई ने अल-क़ायदा और दूसरे लोगों को अफ़ग़ानिस्तान में लड़ने के लिए ट्रेनिंग दी। तो इनके बीच हमेशा से संबंध थे, क्योंकि उन्होंने ही उनको ट्रेनिंग दी थी।
इमरान ख़ान ने इसके बाद यह भी कहा कि हमने जिहादियों को प्रशिक्षित किया और तब इसे महान काम बताया गया लेकिन अब इन्हीं समूहों को चरमपंथी कह रहे हैं। 1989 में सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान से निकल गया। अब अमेरिका पैकअप कर रहा है और अफ़ग़ानिस्तान से निकलने की तैयारी है। हमें इन समूहों के बीच रहना है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने इन बातों को कहते हुए कहा कि पाकिस्तान को इसलिए अमेरिका-अफ़ग़ानिस्तान युद्ध में न्यूट्रल रहना चाहिए। पाकिस्तान में चरमपंथ और चरमपंथियों पर अंकुश लगाने के लिए लगातार दबाव बढ़ रहा है। भारत और अफ़ग़ानिस्तान लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों से पाकिस्तान पर चरमपंथ को बढ़ावा देने का आरोप लगाते रहे हैं।
बहरहाल, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को यह बोलते हुए शायद ध्यान नहीं रहा होगा कि उनकी बातों से पाकिस्तान में चरमपंथियों की ट्रेनिंग मिलने के भारत और अफ़ग़ानिस्तान के आरोपों को बल मिलेगा।