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Last Modified: बुधवार, 14 अगस्त 2019 (15:28 IST)

इमरान ख़ान को भारतीय मुसलमानों की चिंता क्यों- नज़रिया

इमरान ख़ान को भारतीय मुसलमानों की चिंता क्यों- नज़रिया - Why Imran Khan in worried about Indian Muslims
हारुन रशीद, पाकिस्तान से
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने पिछले दिनों कश्मीर को लेकर बेहद सख़्त शब्दों का इस्तेमाल किया था। ईद के मौक़े पर नाज़ी और हिटलर को याद करना क्रिकेट की तरह विरोधियों के ख़िलाफ़ इमरान की आक्रामक रणनीति है या कुछ और?
 
खेल और राजनीति दोनों में इमरान ख़ान की एक ही रणनीति दिखाई देती है कि दुश्मन पर इतने वार करो और ऐसे वार करो कि उसे एक मिनट का भी आराम नसीब न हो। वो जम न सके और सिर धुनते हुए कोई ऐसा काम कर डाले कि आउट हो जाए। अब यही रणनीति विदेशी मामलों में भी पिछले दिनों के ट्वीट से साबित होती दिखाई देती है।
 
देश के अंदर भी उन्होंने हर भाषण में और सोशल मीडिया पर विपक्ष नेताओं का वो हश्र किया है कि लोग कानों को हाथ लगाते हैं। इमरान ख़ान की इस बात के लिए आलोचना होती है कि वो न मौक़ा देखते हैं और न माहौल, बस विपक्ष की क्लास लेना शुरू कर देते हैं। अमेरिका में पाकिस्तानियों की सभा को संबोधित करते हुए भी उन्होंने ऐसा ही किया था।
 
इमरान ख़ान ने पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों समेत कई विपक्षी नेताओं को चोर, डाकू, अली बाबा चालीस चोर और भ्रष्ट के अलावा कौन-कौन से उपनामों से नहीं नवाज़ा। इनके मंत्री और सलाहकार भी इनकी पॉलिसी को अपनाते हुए यही भाषा हर दिन इस्तेमाल करते नज़र आते हैं।
 
इमरान का निशाना : ईद के दिन अपने आधिकारिक ट्विवर अकाउंट से तीन ट्वीट्स में उन्होंने सख़्त भाषा का इस्तेमाल किया। इस बार उनके तीरों का निशाना 'आंतरिक दुश्मन' नहीं बल्कि पड़ोसी देश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी थी। उन्होंने आरएसएस को भारतीय जनता पार्टी की वैचारिक जड़ क़रार देते हुए इसकी तुलना जर्मन तानाशाह हिटलर के तौर तरीक़ों से की।
 
20वीं सदी की शुरुआत में हिटलर के सत्ता में आने के बाद से भौगोलिक विस्तार का ये नज़रिया नाज़ी जर्मनी का पूर्वी और केंद्रीय यूरोप में फैलाव का आधार बना था।
 
इमरान ख़ान ने कहा कि बीजेपी की कोशिशें सिर्फ़ भारत प्रशासित कश्मीर तक सीमित नहीं रहेंगी बल्कि अगला निशाना भारतीय मुसलमान और फिर पाकिस्तान होगा।
 
ख़तरे और जज़्बात : पहली बात ये कि इमरान ख़ान ने कहा कि भारत के कट्टर हिंदू पाकिस्तान की स्थापना से कभी भी ख़ुश नहीं थे और इसके ख़ात्मे के ख़्वाहिशमंद हैं। इस सिलसिले में वो 1971 में बांग्लादेश की स्थापना में भारत की भूमिका को एक बड़ी ठोस मिसाल के तौर पर पेश करते हैं।
 
लेकिन वो 1999 में बीजेपी के ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लाहौर दौरे, ख़ास तौर पर मीनारे पाकिस्तान आने और पाकिस्तान को एक हक़ीक़त के रूप में स्वीकार करने जैसे उनके बयानों को भी पूरी तरह स्वीकार करने को कभी तैयार नहीं हुए।
 
भारतीय जनता पार्टी के कश्मीर पर पाँच अगस्त के फ़ैसले ने एक बार फिर पाकिस्तान सरकार की चिंताओं को ताजा कर दिया है। इमरान ख़ान ने उन्हीं जज़्बातों को ज़ाहिर किया है।
 
भारतीय मुसलमानों की चिंता क्यों : जहां तक बात भारत में बसने वाले मुसलमानों की है, तो पाकिस्तान के सरकारी मीडिया और किसी हद तक निजी मीडिया ने भी सरकारी दबाव के तहत भारत में बसने वाले मुसलमानों को 'मज़लूम और पिसी हुई आबादी' के तौर पर दिखाया गया है।
 
गाय काटने का मामला कहीं भी आए, पाकिस्तानी मीडिया में उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। कुछ विश्लेषक उन्हें मुसलमानों को पाकिस्तान के फर्स्ट लाइन ऑफ़ डिफेंस बनाने का भी प्रस्ताव देते हैं।
 
अक़ील नदीम पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हैं। हाल ही में प्रकाशित लेख में वो कश्मीर की बदलती सूरतेहाल में पाकिस्तान के ऑप्शन के बारे में लिखते हैं कि एक रास्ता भारत में मुसलमानों को एकजुट करना भी हो सकता है कि वो भारतीय क़दम के ख़िलाफ़ उठ खड़े हों।
 
पाकिस्तान सरकार यक़ीनन तमाम रास्तों पर ग़ौर कर रही है। कुछ का वो सरेआम ज़िक्र कर रही है और कुछ सार्वजनिक करने के लायक़ नहीं होंगे। पाकिस्तान सरकार सिवाय अटल बिहारी वाजपेयी के संक्षिप्त दौर के बीजेपी से दोस्ताना संबंध नहीं रख पाई है।
 
पाकिस्तान सरकार कांग्रेस को हमेशा अधिक संतुलित मानती रही है। लेकिन भारतीय आम चुनाव से पहले इमरान ख़ान की तरफ़ से उस बयान को बीजेपी के पक्ष में इशारे के तौर पर देखा गया कि वो अगर कामयाब रही तो कश्मीर का मसला हल कर पाएगी।
 
भारत के इतिहास में कोई भी सरकार कश्मीर की हैसियत को तब्दील करने के बारे में सिर्फ़ सोच ही सकती थी, लेकिन मोदी के बीजेपी ने इसे हक़ीक़त का रूप देने की कोशिश की है, ऐसे में पाकिस्तान के तोपों का रुख़ इस तरफ़ होना स्वाभाविक प्रतिक्रिया है।
 
ये पाकिस्तानी अधिकारियों के पास दुर्लभ अवसर है, बीजेपी को 'असल दुश्मन' साबित करने का। इसके पास ये अहम मौक़ा है दो राष्ट्रीय विचारधारा की पुष्टि का कि हिन्दू और मुसलमान अलग-अलग क़ौमें हैं (जिसे आधार बनाकर पाकिस्तान बनाया गया था)।
 
इमरान ख़ान के आक्रामक रवैए के मुक़ाबले भारतीय जनता पार्टी की भी विदेशी और सुरक्षा पॉलिसी आक्रामक रही है। सवाल ये है कि दोनों आक्रामक खिलाड़ी इस ख़तरे को अमन और तरक़्क़ी का मौक़ा बनाते हैं या नहीं।
 
आरएसएस निशाने पर क्यूं : यूं तो पाकिस्तान में पहले भी दबे शब्दों में हिंदू कौम परस्त तहरीक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ज़िक्र तो भारत के साथ आता रहा है। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ख़ास तौर से इसका ज़िक्र किया।
 
इसकी वजह है आरएसएस को पाकिस्तान में बिना किसी शक के सत्तारूढ़ बीजेपी की वैचारिक बुनियाद माना जाता है। पाकिस्तान को लगता है कि बीजेपी के सभी नीतियां आरएसएस की कोख से जन्म लेती हैं।
 
वरिष्ठ पत्रकार ज़ाहिद हुसैन ने एक अख़बार में लिखा है- आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को एक हिंदू राष्ट्र में बदल कर धार्मिक अल्पसंख्यकों को दबाना चाहते हैं। हुसैन के अनुसार ग़ैर-हिंदुओं को बीजेपी हिंदुत्व के लिए ख़तरा मानती हैं।
 
पाकिस्तान के एक और लोकप्रिय टीवी ऐंकर और पत्रकार नुसरत जावेद ने तो इस साल मई में आरएसएस को ही बीजेपी की मां बताते हुए लिखा था कि ये आरएसएस ही था जिसके दवाब में आकर इमरान ख़ान को शपथ समारोह में नहीं बुलाया गया था। उनका कहना था कि आरएसएस कई थिंकटैंक भी चलाता है। उनमें से कुछ नामी-गिरामी उद्योगपति और व्यापार जगत से जुड़े लोगों के पैसों से चलते हैं
 
इनके लिए काम करने वाले बुद्धिजीवियों ने एकमत हो कर दवाब डाला कि इमरान ख़ान शपथ समारोह में बुलाना उन लोगों से ज़्यादती होगी जिन्होंने मोदी को अपने मुल्क का चौकीदार बनाते हुए, सत्ता में लौटाया है। वरिष्ठ पत्रकारों और टीवी ऐंकरों के अलावा पाकिस्तान में जानकारों का भी मानना है कि ख़ुद भारतीय इतिहासकार भी आरएसएस को नकारात्मक नज़र से देखते हैं।
 
पाकिस्तान में कुछ लोग ये सोचते हैं कि मोदी के शपथ समारोह में इमरान को न बुलाने के लिए अगर आरएसएस ज़िम्मेदार है तो इस संस्था के ख़िलाफ़ सरकारी नफ़रत शायद बेवजह नहीं। इन्हीं वजहों से इमरान का आएसएस को निशाना बनाना हैरान करने वाली बात नहीं है।
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