जुगल आर. पुरोहित (बीबीसी संवाददाता)
वायुसेना प्रमुख मुस्कुरा रहे थे, नौसेना प्रमुख सिर हिला रहे थे और थलसेना प्रमुख स्थिर थे। यह दृश्य तब देखने को मिला, जब 15 अगस्त को लाल क़िले से प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय सैन्य ढांचे के सर्वोच्च पद के लिए चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टॉफ़ (सीडीएस) की नियुक्ति की घोषणा की। उन्होंने इसे आधुनिक समय की ज़रूरत बताते हुए कहा कि सीडीएस न केवल तीनों सेनाओं की निगरानी करते हुए नेतृत्व करेंगे बल्कि वे सैन्य सुधारों को भी आगे बढ़ाने का काम करेंगे।
सीडीएस यानी चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टॉफ़ क्या है?
सीडीएस यानी थलसेना, नौसेना और वायुसेना इन तीनों सेना के प्रमुखों का बॉस। ये सैन्य मामलों में सरकार के इकलौते सलाहकार हो सकते हैं। कई लोग ये पूछ सकते हैं- क्या यह काम रक्षा सचिव का नहीं है, जो अमूमन एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी होते हैं? इसका जवाब है नहीं।
हालांकि सीडीएस कैसे नियुक्त होगा, कैसे काम करेगा और उसकी ज़िम्मेदारी क्या होगी? इसको लेकर अभी स्पष्टता नहीं है। विश्लेषकों का मानना है कि यह पद थलसेना, नौसेना और वायुसेना के किसी वरिष्ठ अधिकारी को मिल सकता है।
माना जा रहा है कि सेना के ही किसी अधिकारी को प्रमोट किए जाने से उन्हें सैन्य मामलों की जानकारी रहेगी, हालांकि रक्षा सचिव की नियुक्ति के लिए किसी सैन्य सेवा के अनुभव की ज़रूरत नहीं होती है।
क्या मोदी की घोषणा चौंकाने वाली है?
मोदी की घोषणा चौंकाने वाली एकदम नहीं है। यह ऐसा फ़ैसला है जिसे पहले ही हो जाना चाहिए था। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से प्रधानमंत्री मोदी इसका ज़िक्र कई बार कर चुके थे। दिसंबर, 2015 में नौसेना के विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य पर सवार होकर उन्होंने कंबाइंड कमांडर्स कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया था।
इसमें उन्होंने कहा था कि संयुक्त रूप से शीर्ष अधिकारी की ज़रूरत लंबे समय से बनी हुई है। सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को तीनों सेनाओं के कमांड का अनुभव होना चाहिए। हमें वरिष्ठ सैन्य प्रबंधन में सुधार की भी ज़रूरत है। अतीत में दिए गए कई सैन्य सुधार के प्रस्तावों को लागू नहीं किया जा सका है, यह दुखद है। मेरे लिए यह प्राथमिकता का विषय है।
इस मामले में पहले की सरकारों ने भी काम करने की इच्छा दिखाई थी लेकिन फिर ज़्यादा कुछ हुआ नहीं। दरअसल, सरकार के लिए सिंगल प्वॉइंट सैन्य सलाहकार की ज़रूरत कारगिल युद्ध के बाद से ही महसूस की जाने लगी थी।
अभी कैसे काम होता है?
अभी थलसेना, नौसेना और वायुसेना अपने-अपने स्वतंत्र कमांड के अधीन काम करता है। हालांकि इनको एकीकृत किए जाने पर ज़ोर दिया जाता रहा लेकिन हर सेना अपनी योजना और अभ्यास के लिए अपने-अपने मुख्यालयों के अधीन काम करती है। अंडमान और निकोबार कमांड और रणनीतिक फोर्सेज कमांड (एसएफसी)- भारत के आणविक हथियारों की देखरेख करती है। ये दोनों पूरी तरह एकीकृत कमांड है जिसमें तीनों सेना के अधिकारी और जवान शामिल होते हैं।
सीडीएस से क्या बदलेगा?
लेफ्टिनेंट जनरल अनिस चैत इंटीग्रेटेड डिफ़ेंस स्टॉफ के प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। यह संस्था कारगिल युद्ध के बाद बनी, हालांकि इसके प्रमुख को सीडीएस नहीं कहा जाता था।
अनिल चैत बताते हैं कि अभी प्रत्येक सेना अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए फंड चाहती है। सीडीएस के होने से एकीकृत क्षमता विकसित करने पर काम होगा। अभी किसी स्थिति से निपटने के लिए हर सेना अपने विकल्पों को देखती है और एक योजना के साथ आती है, ऐसे में 3 योजनाएं होती है। सीडीएस के होने से तीनों सेना के ऊपर एक प्रबंधन होगा। इस हिसाब से न्यूनतम संसाधनों से कारगर नतीजा हासिल किया जा सकता है।
हालांकि बजटीय अनुदान के कम होने के बारे में पूछे जाने पर जनरल चैत कहते हैं कि सीडीएस सेना के आधुनिकीकरण पर किफ़ायत के साथ ध्यान दे पाएंगे।
अब आगे क्या होगा?
एक बड़ा सवाल यह भी है कि सीडीएस क्या मौजूदा सेनाध्यक्षों की तरह 4 स्टार रैंक वाले अधिकारी होंगे या फिर वे 5 स्टार रैंक वाले अधिकारी होंगे? अभी इन सवालों के जवाब नहीं हैं। एक पूर्व वायुसेना प्रमुख ने गोपनीयता की शर्त के साथ कहा कि आने वाले दिनों में मुश्किलें सामने आएंगी।
सीडीएस के पद से मदद मिलेगी या फिर नुकसान होगा, यह कई बातों पर निर्भर करेगा। इस पूर्व वायुसेना प्रमुख ने कहा कि मौजूदा रक्षा सचिव को सीडीएस को रिपोर्ट करना चाहिए। सीडीएस की स्थिति वैसी होनी चाहिए, जो सबसे आगे हो। अहम नियुक्तियों और वरिष्ठ अधिकारियों के कामकाज के आकलन में उनका दखल होना चाहिए।
ऐसी स्थिति में सीडीएस को लेकर कई चुनौतियों भी होंगी। पूर्व वायुसेना प्रमुख ने बताया कि अधिकारों की लड़ाई का मसला तो होगा। सीडीएस के आने से कइयों के अधिकार में कटौती होगी। अब यह राजनीतिक वर्ग को देखना है कि नौकरशाही और सैन्य बल मिलकर इस पोस्ट के अधिकार को कमतर नहीं कर दें।
जनरल चैत ने कहा कि मेरे लिए इस बात का कोई मायने नहीं है कि सीडीएस 4 स्टार रैंक वाले अधिकारी होते हैं या फिर 5 स्टार वाले अधिकारी। उनके अधिकार और ताक़त की अहमियत होगी, क्योंकि उन पर अकेले ज़िम्मेदारियों को निभाने की जवाबदेही होगी।
कारगिल रिव्यू कमेटी के सबसे वरिष्ठ सदस्य लेफ्टिनेंट जनल केके हजारी (सेवानिवृत्त) अब 90 साल के हो चुके हैं। इस कमेटी की मुख्य अनुशंसाओं में सीडीएस जैसे पद की अनुशंसा भी शामिल थी।
हाल ही में हुए एक मुलाकात में उन्होंने कहा था कि भारत का राजनीतिक तबका ऐसी व्यवस्था के फायदे को बिलकुल नहीं जानता या फिर किसी एक आदमी के हाथों में सैन्य संसाधनों की कमान सौंपने को लेकर डरा हुआ है, हालांकि ये दोनों पूर्वाग्रह सही नहीं हैं।
बहरहाल, स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण के 39 सेकंड में इस मसले पर सरकार के संशय को ख़त्म कर दिया है।