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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 18 अगस्त 2023 (07:54 IST)

चंद्रयान 3 बनाम लूना-25: इसे 'अंतरिक्ष की मिनी रेस' कहना कितना सही?

Lander Module separated from Propulsion Module
गीता पांडेय ,बीबीसी न्यूज, दिल्ली
Chandrayaan 3 vs Luna 25 : भारत का तीसरा चंद्र मिशन 'चंद्रयान-3' अब धीरे-धीरे अपने लक्ष्य के क़रीब पहुंच रहा है। चंद्रयान-3 चांद के उस दक्षिणी ध्रुव के नज़दीक बढ़ रहा है, जहां अब तक किसी भी देश की पहुंच नहीं बन पाई है।
 
गुरुवार को 'चंद्रयान 3' का लैंडर अपने प्रोपल्शन सिस्टम से अलग हो गया जिसका मतलब है कि अब वह धीरे-धीरे चांद की सतह की ओर बढ़ेगा। आगामी 23 अगस्त के क़रीब चंद्रयान-3 का लैंडर और रोवर चांद की सतह पर उतरेगा।
 
हालांकि, अगर इससे पहले रूसी मिशन सफल हो जाता है तो चंद्रयान-3 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला मिशन नहीं बन पाएगा।
 
पिछले हफ़्ते लॉन्च हुए रूसी मिशन 'लूना-25' के यहां एक या दो दिन पहले लैंड करने की उम्मीद है। साल 1976 या कहें पांच दशक के लंबे अंतराल के बाद लॉन्च किए गए अपने पहले चंद्रमा मिशन में अगर रूसी अंतरिक्ष यान सफल होता है और आने वाली 21 या 22 अगस्त को सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंड कर जाता है, तो चंद्रयान-3 को दूसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ेगा।
 
luna 25
लूना-25 बनाम चंद्रयान-3
हालांकि भारत अभी भी अमेरिका, पूर्व सोवितय यूनियन और चीन के बाद चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग हासिल करने वाला चौथा देश होगा।
 
रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने घोषणा की कि रूस ने 10 अगस्त को लूना-25 लॉन्च किया था, लेकिन अधिक शक्तिशाली सोयुज रॉकेट से संचालित होने के कारण इसने कुछ ही समय में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को भेद दिया और बुधवार को चंद्र कक्षा में पहुंच गया। जबकि चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च किया गया था।
 
5 अगस्त को चंद्रमा के कक्ष में प्रवेश करने से पहले इसने पृथ्वी के कुछ चक्कर लगाए और लैंडिंग की तैयारी करते हुए, अंतरिक्ष यान तब से चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है।
 
अंतरिक्ष की मिनी रेस
दोनों ही देशों के इस चंद्रमा मिशन को कई लोग 'मिनी अंतरिक्ष रेस' के रूप में वर्णित कर रहे हैं। हालांकि, इसरो ने बीबीसी को जो बताया उसके मुताबिक़ यह कोई रेस नहीं है और दोनों ही देशों का अब चंद्रमा पर एक नया 'मीटिंग प्वॉइंट' होगा।
 
इसरो के एक प्रवक्ता ने बताया, "इसरो 1960 के दशक में अपनी स्थापना के पहले दिन से ही कभी किसी रेस में शामिल नहीं हुआ है।"
 
"हमने इस मिशन की योजना अंतरिक्ष यान की तैयारी और चंद्रमा के अनछुए हिस्से तक पहुंचने के लिए उपलब्ध तकनीकी ज़रूरतों के आधार पर बनाई है।"
 
उन्होंने कहा, "लूना-25 भी एक मिशन है जिसकी योजना बहुत पहले बनाई गई थी। उन्होंने भी कुछ तकनीकी पहलुओं के मद्देनज़र इसकी तैयारी की होगी, जिसके बारे में हम नहीं जानते।"
 
Chandrayaan 3 launch
भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह तक कैसे पहुंचेगा?
चंद्रयान-3, भारत का तीसरा चंद्र मिशन है। भारत के पिछले दो मिशन सफल रहे हैं और चंद्रयान-3 के भी सफल होने की उम्मीद है। भारत ने साल 2008 में पहली बार चंद्रयान-1 उपग्रह को चांद पर भेजा था।
 
चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं के मौजूद होने के साक्ष्य जुटाए और इस तथ्य को स्थापित किया कि दिन के समय चंद्रमा में वातावरण होता है।
 
वहीं चंद्रयान-2, जिसमें एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर भी शामिल था, उसे जुलाई 2019 में लॉन्च किया गया लेकिन यह आंशिक रूप से ही सफल रहा।
 
इसका ऑर्बिटर आज भी चंद्रमा का चक्कर लगा रहा है और उसका अध्ययन कर रहा है, लेकिन लैंडर-रोवर सॉफ्ट लैंडिंग करने में विफल रहा और टचडाउन के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
 
इसरो प्रमुख श्रीधर पणिक्कर सोमनाथ ने कहा है कि भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ने इस दुर्घटना का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया और चंद्रयान -3 में गड़बड़ियों को एक-एक कर ठीक किए।

चंद्रयान-3 का वजन 3,900 किलोग्राम है और इसकी लागत क़रीब 615 करोड़ रुपये है। लैंडर मॉड्यूल, (जिसका नाम इसरो के संस्थापक विक्रम पर रखा गया है) का वजन लगभग 1,500 किलोग्राम है और इसके भीतर 26 किलोग्राम का रोवर है, जिसे प्रज्ञान नाम दिया गया है। संस्कृत में प्रज्ञान का अर्थ है ज्ञान।
 
एक बार जब यान चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा, तो वैज्ञानिक रॉकेट की गति को धीरे-धीरे कम करके इसे एक ऐसे बिंदु पर ले आएंगे, जिससे विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग हो सकेगी।
 
भारत के पहले चंद्रमा मिशन के प्रमुख मायलस्वामी अन्नादुराई ने बीबीसी को बताया कि गुरुवार को प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होने के बाद, लैंडर मॉड्यूल अगले कुछ दिनों में सावधानी से दो चीज़ें हासिल करेगा।
 
पहली कि यह धीरे-धीरे चंद्रमा के करीब पहुंचेगा और प्रतिदिन 100 किलोमीटर की यात्रा कर लैंडिंग से एक दिन पहले 30 किमी की कक्षा में पहुंच जाएगा।
 
उनका कहना है कि एक बार जब यह उतरेगा, तो इसे स्थापित होने में कुछ घंटे लगेंगे, जिसके बाद छह पहियों वाला रोवर रेंगकर चंद्रमा की सतह पर चट्टानों और गड्ढों के चारों ओर घूमेगा, महत्वपूर्ण डेटा और छवियां एकत्र करेगा, जिन्हें वापस विश्लेषण के लिए पृथ्वी पर भेजा जाएगा।
 
रोवर अपने साथ ऐसे उपकरण ले जा रहा है जो चंद्रमा की सतह की भौतिक विशेषताओं, सतह के करीब के वातावरण और सतह के नीचे क्या चल रहा है इसका अध्ययन करने के लिए टेक्टोनिक गतिविधि के बारे में पता लगाने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
 
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अभी भी काफी हद तक अनछुआ है और वैज्ञानिकों का कहना है कि स्थायी रूप से छाया वाले इस क्षेत्र में पानी होने की संभावना है।
 
चंद्रयान-3 और लूना-25 दोनों ही मिशनों का एक प्रमुख लक्ष्य पानी की बर्फ़ की खोज करना है, वैज्ञानिकों का कहना है कि यह भविष्य में चंद्रमा पर मानव कॉलोनियां बसाने में मदद कर सकता है।
 
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