चंदन कुमार जजवाड़े, बीबीसी संवाददाता, दरभंगा, बिहार से
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ़्ते दावा किया कि देश में तमाम जगहों पर नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानों यानी एम्स अस्पताल खोले गए हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बयान में कहा था - “बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए असम के गुवाहाटी से लेकर पश्चिम बंगाल के कल्याणी तक, झारखंड के देवघर से लेकर बिहार में दरभंगा तक इस प्लानिंग के साथ नए-नए एम्स खोले गए हैं ताकि लोगों को इलाज के लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर न जाना पड़े।”
बिहार के दरभंगा ज़िले में एम्स की स्थापना को लेकर राजनीति गर्मा गयी है। राजद से लेकर जदयू और कांग्रेस ने पीएम मोदी पर ग़लत बयान देने का आरोप लगाया है।
बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर आरोप लगाया है कि देश प्रधानमंत्री से सत्य की अपेक्षा करता है लेकिन उन्होंने झूठ बोला है।
एम्स पर केंद्र सरकार की दलील
बीती 26 मई को केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने बिहार सरकार को एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें बताया गया था कि बिहार सरकार जिस जगह पर एम्स के लिए ज़मीन दे रही है, वह सही नहीं है।
इस पत्र में बताया गया था कि संबंधित ज़मीन सड़क से काफ़ी नीचे है जिसकी अच्छी तरह भराई करने के लिए गुणवत्ता वाली मिट्टी की ज़रूरत होगी जो संभवत: दरभंगा और उसके आसपास न मिले।
कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने इस मुद्दे पर ट्वीट करके लिखा है कि “आज फिर प्रधानमंत्री मोदी झूठ बोलते पकड़े गये। आज बोले दरभंगा में AIIMS खोल दिया है। पर असलियत में दरभंगा में एम्स है ही नहीं।”
तेजस्वी यादव के ट्वीट के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया प्रधानमंत्री मोदी के बयान के बचाव में बिहार सरकार पर लेट-लतीफ़ी का आरोप लगाते दिखे हैं।
हालांकि, दरभंगा में एम्स बनाए जाने की स्वीकृति 19 सितंबर, 2020 में मिली थी जिस वक़्त बिहार में एनडीए की सरकार थी जिसमें बीजेपी नेता मंगल पांडेय स्वास्थ्य मंत्री की भूमिका में थे।
मनसुख मांडविया ने आरोप लगाया है कि बिहार सरकार ने पहली बार 3 नवंबर 2021 को ज़मीन दी थी। संयोग से उस वक़्त भी बिहार में एनडीए की सरकार थी और मंगल पांडेय ही स्वास्थ्य मंत्री थे।
दरभंगा में एम्स को लेकर चल रही सियासत के बीच इसकी सच्चाई जानने के लिए हम उस जगह पर पहुंचे जहां एम्स के निर्माण के लिए बिहार सरकार ने ज़मीन देने का प्रस्ताव दिया था।
ज़मीनी हक़ीक़त क्या है?
यह जगह दरभंगा शहर से क़रीब 5 किलोमीटर दूर शोभन-भरौल बाइपास पर मौजूद है। इसके साथ ही यह ज़मीन दरभंगा के हवाई अड्डे से क़रीब 8 किलोमीटर दूर और चार लेन की मुख्य सड़क से क़रीब 3 किलोमीटर अंदर है।
यह ज़मीन बलिया मौजा के अंतर्गत आती है। यहां की ज़मीन सड़क से काफ़ी नीचे की तरफ़ है और बारिश की वजह से ज़मीन का ज़्यादातर हिस्सा पानी में डूबा हुआ है।
एम्स के लिए ज़मीन देने की पेशकश जिस पंचोभ गांव की पंचायत ने की थी, उसके मुखिया राजीव चौधरी ने इस बारे में बीबीसी से बात की है।
राजीव चौधरी का दावा है कि शोभन में एम्स बनाने का सुझाव गांव वालों ने ही राज्य सरकार को दिया था, क्योंकि यहां सरकार के पास बड़ी ज़मीन है और गांव वाले भी अपनी इच्छा से ज़मीन देने को तैयार हैं। इस ज़मीन का ही 151 एकड़ हिस्सा केंद्र सरकार को एम्स के लिए दिया गया था।
इसमें 131 एकड़ ज़मीन राज्य सरकार की है जबकि 20 एकड़ ज़मीन स्थानीय किसानों की है। यानि यहां ज़मीन अधिग्रहण को लेकर कोई समस्या नहीं थी।
केंद्र ने ठुकराया प्रस्ताव
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने अपने जिस पत्र में एम्स के लिए सुझाई गई ज़मीन से जुड़ी समस्याओं का ज़िक्र किया था, उसी पत्र में ज़मीन भरने की लागत आदि पर भी बात की गयी थी।
भूषण ने लिखा था कि इस तरह की ज़मीन को भरने पर निर्माण की लागत काफ़ी ज़्यादा बढ़ जाएगी।
हालांकि, तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि बिहार सरकार ने न केवल 151 एकड़ ज़मीन मुफ़्त में देने का प्रस्ताव भेजा था बल्कि अपने ख़र्च पर ज़मीन भरने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी थी।
वहीं, राजीव चौधरी का दावा है कि केंद्र की जो टीम यहां आई थी, उसने शुरू में कहा था कि देश में जितने भी एम्स बन रहे हैं, उसमें सबसे अच्छी ज़मीन यही है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह हाइवे और एयरपोर्ट का पास होना था। यह ज़मीन खुले और हरे-भरे इलाक़े में भी है जहां निर्माण कार्य बेहतर और तेज़ी से किया जा सकता है। साथ ही इस इलाक़े में ट्रैफ़िक जाम जैसी समस्या नहीं है।
वो दलील देते हैं कि ऐसे ही निचले इलाक़े में मिट्टी भरकर बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज बना है। इसके अलावा कई निजी इमारतें और हॉस्पिटल ऐसी ही ज़मीन पर बने हैं।
दरभंगा के ही देकुली पंचायत के मुखिया श्यामनंदन प्रसाद कहते हैं कि निचला इलाक़ा होना कोई वजह नहीं है, यह काम केंद्र सरकार और राज्य सरकार की राजनीतिक खींचतान की वजह से नहीं हो पा रहा है।
राजीव चौधरी आरोप लगाते हैं कि केंद्र सरकार को लगता है कि यहां एम्स बना तो इसका श्रेय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ले जाएंगे।
इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दावा किया है कि बिहार सरकार हर जगह मेडिकल कॉलेज बनवा रही है। एम्स पटना और दरभंगा में ही बनना चाहिए, यह हमारी इच्छा है।
स्थानीय पंचायत गुढ़ियारी के मुखिया सुरेश प्रसाद सिंह भी यही आरोप लगाते हैं कि सरकारों की आपसी खींचतान की वजह से यहां का काम अटक गया है, जो सरासर ग़लत है।
पास के ही गुढ़इला पंचायत के मुखिया राम जी राम कहते हैं कि दरभंगा के पड़ोसी ज़िले मधुबनी, समस्तीपुर, मुज़फ़्फ़रपुर, सीतामढ़ी, शिवहर और नेपाल तक के मरीज़ों को यहां एम्स बनने से फ़ायदा होता।
एम्स पर सियासत
एम्स को लेकर प्रधानमंत्री के दावों के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इसे झूठ बताया है और ऐसी ख़बरों को शेयर किया है, जिसमें देशभर के एम्स में बड़ी संख्या में खाली पदों का ज़िक्र है।
हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी जगह पर एम्स के निर्माण को लेकर किए गए दावों पर सियासत हुई है।
इससे पहले तमिलनाडु के मदुरै में बन रहे एम्स पर भी काफ़ी राजनीतिक हंगामा हुआ था।
ख़बरों के मुताबिक़, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मदुरै में एक कार्यक्रम में पिछले साल ही दावा किया था कि मदुरै एम्स का 95 फ़ीसदी काम पूरा हो चुका है।
नड्डा के इस दावे के बाद सोशल मीडिया पर एक तस्वीर काफ़ी ज़्यादा शेयर की गई थी, जिसमें कांग्रेस और लेफ़्ट के सांसद मदुरै की उस खाली ज़मीन को दिखा रहे थे, जहां एम्स के 95 फ़ीसदी काम पूरा होने का दावा किया गया था।
यही नहीं पिछले हफ़्ते कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने भी केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के बयानों पर कहा कि उनका मदुरै एम्स पर दिया गया बयान सच से अलग है, मदुरै एम्स में कोई काम नहीं हो रहा है और इसकी संभावना बहुत कम है कि यह काम समय पर पूरा हो पाएगा।