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Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 9 जनवरी 2022 (08:20 IST)

चुनावी रैलियों पर 15 जनवरी तक रोक, यूपी में किसे हो सकता है फायदा?

चुनावी रैलियों पर 15 जनवरी तक रोक, यूपी में किसे हो सकता है फायदा? - ban on election rallies in Uttar Pradesh
निर्वाचन आयोग ने उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनावों के लिए चुनावी कार्यक्रम घोषित कर दिया है। उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब और गोवा में कुल 7 चरणों में चुनाव होंगे।
 
उत्तर प्रदेश में 403 सीटों, पंजाब में 117 सीटों, गोवा में 40 सीटों, उत्तराखंड में 70 सीटों और मणिपुर में 60 सीटों पर सैकड़ों उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमाएंगे। पहला चरण 10 फ़रवरी से शुरु होगा। अंतिम चरण में 7 मार्च को मतदान होगा। चुनावों के नतीजे 10 मार्च 2020 को आएंगे।
 
ये महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव भारत में कोरोना महामारी की तीसरी लहर के बीच हो रहे हैं। कोरोना के नए ओमिक्रॉन वैरिएंट के आने के बाद से देश में कोरोना संक्रिमतों की संख्या लगातार बढ़ रही है। भारत में अब रोज़ाना एक लाख से अधिक संक्रमण के मामले आ रहे हैं।
 
महामारी का असर चुनावों पर भी रहेगा। चुनाव आयोग ने कहा कि 15 जनवरी तक किसी भी तरह के रोड शो, रैली, पद यात्रा, साइकिल और स्कूटर रैली की इजाज़त नहीं होगी। राजनीतिक दलों को वर्चुअल रैली के ज़रिए ही चुनाव प्रचार करना होगा। जीत के बाद किसी तरह के विजय जुलूस भी नहीं निकलेगा। 5 जनवरी के बाद आयोग अपने इस आदेश की समीक्षा करेगा और परिस्थितियों के हिसाब से दिशानिर्देश जारी करेगा।
 
चुनाव आयोग के इन नियमों का मतलब ये है कि अगले एक सप्ताह तक चुनावी रैलियां और सभाएं नहीं हो सकेंगी, सिर्फ़ वर्चुअल प्रचार ही किया जा सकेगा।
 
कोरोना महामारी के बीच चुनावों को आगे बढ़ाने का प्रश्न भी उठा था लेकिन चुनाव आयोग ने तय समय पर चुनाव कराने का निर्णय लिया है।
 
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि चुनाव आयोग के नए नियमों से सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को फ़ायदा पहुंच सकता है। अब तक बीजेपी ने धुआंधार चुनाव प्रचार किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही प्रदेश में पिछले 48 दिनों में 13 बड़ी रैलियां कर चुके हैं।
 
जिस रफ़्तार से बीजेपी ने चुनाव प्रचार किया है उसके मुक़ाबले बाकी दल काफ़ी पीछे रहे हैं। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दल बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने अभी तक कोई बड़ी रैली नहीं की है।
 
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, "मुझे लगता है कि चुनाव आयोग जल्दी चुनाव करा रहा है। जहां तक नियमों का सवाल है उनसे स्पष्ट है कि बीजेपी को फ़ायदा मिलेगा। चुनाव आयोग ने अभी रैलियां रोक दी हैं और डिजीटल रैलियों को अनुमति दी है। लेकिन जहां तक बीजेपी का सवाल है तो प्रधानमंत्री की तो अधिकतर रैलियां हो चुकी हैं। चुनाव आयोग को रैलियों को सीमित करना चाहिए था ना कि पूरी तरह रोक लगानी चाहिए थी। घर-घर जाकर प्रचार करने को भी सीमित किया गया है, सिर्फ़ पांच लोग ही जा सकते हैं।"
 
हाल के सालों में डिजिटल माध्यम के ज़रिए प्रचार चुनावी अभियानों का अहम हिस्सा बना है। पार्टियां डिजिटल दुनिया में अपनी स्थिति को मज़बूत कर रही हैं और कई पार्टियों ने अपने विशेष आईटी सेल भी बनाए हैं। लेकिन बाकी दलों की तुलना में डिजिटल पहुंच के मामले में बीजेपी काफ़ी आगे है।
 
शरत प्रधान कहते हैं, "जहां तक डिजिटल प्रचार और वर्चुअल रैलियों का सवाल है, बीजेपी के पास बाकी दलों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा क्षमता हैं। इस मामले में असमानता बहुत ज़्यादा है। बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है और सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों में बहुत मज़बूत है। बीजेपी के पास व्हाट्सऐप पर भी एक बहुत बड़ा नेटवर्क है जिसे पिछले सालों में विकसित किया गया है।"
 
शरत प्रधान कहते हैं, "बीजेपी के पास ब्लॉक स्तर तक आईटी सेल हैं जिनसे लाखों लोग जुड़े हैं। ऐसा भी प्रतीत होता है कि बीजेपी को ये अंदाज़ा होगा कि ऐसा होने जा रहे है, इसलिए ही चुनाव आयोग की घोषणाओं से पहले बीजेपी के बड़े नेताओं ने अधिकतर रैलियां कर ली हैं।"
 
वो कहते हैं, "ये साबित करना तो संभव नहीं है, लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि चुनाव आयोग की घोषणाएं बीजेपी के पक्ष में हैं। क्योंकि बीजेपी के पास जितना बड़ा डिजिटल नेटवर्क है उतना किसी और के पास नहीं है।"
 
वहीं चुनाव आयोग की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी प्रवक्ता गोविंद शुक्ला कहते हैं, "चुनाव आयोग ने मौजूदा परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया है, बीजेपी उनका सम्मान करती है और उनका पूरी तरह पालन करेगी।"
 
सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर बीजेपी के बाकी दलों के मुक़ाबले अधिक मज़बूत होने के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में गोविंद शुक्ला ने कहा, "भारतीय जनता पार्टी हमेशा से कार्यकर्ताओं के माध्यम से काम करती रही है। बीजेपी के पास अपने कार्यकर्ता हैं जो प्रशिक्षित भी हैं। हम परिस्थितियों के हिसाब से अपने आपको ढालते हैं। हम अपने काम को लोगों तक पहुंचा रहे हैं। हमें विश्वास है कि लोग हमारे काम का आकलन करेंगे और उसी के आधार पर हमें वोट देंगे।"
 
वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अब्दुल हफ़ीज़ गांधी कहते हैं, "निर्वाचन आयोग ने जो भी आचार संहिता लगाई है, समाजवादी पार्टी उसका पालन करेगी। लेकिन हम ये भी कहना चाहेंगे कि वर्चुअल रैली करने के लिए हर पार्टी उतना तैयार नहीं है।"
 
अब्दुल हफ़ीज़ गांधी कहते हैं, "हम सिर्फ़ सपा की बात नहीं कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में बहुत से दल ऐसे हैं जिनके पास ना तो उतने संसाधन हैं और ना ही तैयारी। चुनाव आयोग को सभी पार्टियों को बराबर मौक़ा देना चाहिए ताकि सभी दल अपनी बात को लोगों तक पहुंचा सकें। पार्टी की बात लोगों तक और लोगों की बात पार्टियों तक पहुंचेगी तो लोकतंत्र मज़बूत होगा।"
 
चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दल अपनी घोषणाओं को लोगों तक पहुंचाते हैं। इसके लिए बड़ी-बड़ी रैलियां की जाती हैं, चुनावी जुलूस निकाले जाते हैं और घर-घर जाकर वोट मांगे जाते हैं। लेकिन अभी प्रचार के दौरान ऐसा नहीं हो सकेगा।
 
अब्दुल हफ़ीज़ गांधी कहते हैं, "राजनीतिक दलों का सबसे बड़ा मक़सद ये होता है कि उनका घोषणापत्र और उनकी घोषणाएं लोगों तक पहुंचे। चुनाव आयोग को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि सभी पार्टियां अपनी बात लोगों तक पहुंचा सकें। एक सच ये भी है कि भारत में अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों के बीच बड़ा डिजिटल डिवाइड भी है। सब लोगों तक डिजिटल माध्यमों की पहुंच बराबर नहीं है। हम चुनाव आयोग से ये आग्रह करेंगे कि वो निजी चैनलों, दूरदर्शन और रेडियो पर सभी राजनीतिक दलों को अपनी बात रखने का मौक़ा दे।"
 
गांधी कहते हैं, "जहां तक समाजवादी पार्टी का सवाल है, हम वर्चुअल रैलियां करेंगे और फ़ेसबुक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसे माध्यमों से जनता तक पहुंचेंगे। हमने इसके लिए तैयारियां भी की हैं।"
 
राजनीतिक दलों के लिए डिजिटल माध्यम से प्रचार करना और वर्चुअल रैलियां करना बहुत आसान नहीं है। इसमें तकनीक और तैयारी लगती है। जो दल इस मामले में पीछे हैं उनके लिए ऐसा कर पाना बहुत आसान नहीं होगा।
 
आम आदमी पार्टी के पूर्व सोशल मीडिया और आईटी प्रमुख और 'इंडिया सोशल' क़िताब के लेखक अंकित लाल इन दिनों राजनीतिक अभियान सलाहकार और रणनीतिकार के रूप में काम कर रहे हैं।
 
वो कहते हैं, "डिजिटल पर उपस्थिति बनाने के लिए कम से कम चार से छह महीनों का समय चाहिए होता है। लेकिन अगर आप ज़ीरो से शुरू कर रहे होते हैं तो आर्गेनिक नेटवर्क बनाने के लिए 18 महीनों तक का वक़्त लग जाता है। हालांकि इससे जो एसेट बनते हैं वो लंबे समय तक चलते हैं।"
 
लाल कहेत हैं, "डिजिटल अभियान का सबसे अहम पहलू होता है कंटेट क्रिएट करना और उसकी आर्गेनिक रीच यानी बिना पेड प्रोमोशन के उसे लोगों तक पहुंचाना। पैसे ख़र्च करके कंटेट को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है लेकिन उसका प्रभाव उतना नहीं होता जितना स्वयं लोगों के पास पहुंचे कंटेट का होता है।"
 
"राजनीतिक दल अपने कंटेंट को लोगों तक पहुंचाने के लिए पेड प्रोमोशन करते हैं। इससे ये दिखता है कि कंटेंट अधिक लोगों तक पहुंच रहा है।"
 
अंकित लाल कहते हैं, "अभी की स्थिति में डिजिटल उपस्थिति की बात की जाए तो सभी राजनीतिक दलों की स्थिति बराबर नहीं है। भारतीय जनता पार्टी इस क्षेत्र में पहले उतरी है और दूसरे दलों से आगे रही है। शुरुआत के सालों में बाकी पार्टियों ने डिजिटल उपस्थिति पर उतना ध्यान नहीं दिया जितना बीजेपी ने दिया था।"
 
वो कहते हैं "एक सच ये भी है कि भारतीय जनता पार्टी ने डिजिटल माध्यमों पर जितना संसाधन और पैसा ख़र्च किया है उतना अन्य दलों ने नहीं किया है। यही नहीं बीजेपी डिजिटल पर दूसरे दलों के मुक़ाबले अधिक संगठित भी है। बीजेपी के आईटी सेल में अधिक लोग हैं।"
 
"मुझे लगता है कि डिजिटल एड कैंपेन के मामले में भी बीजेपी दूसरे दलों से आगे है। हो सकता है भाजपा ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म से अपने लिए स्पेस ख़रीद लिया है और अपने विज्ञापन की दरें भी तय कर ली हों। बाकी दल अभी इसे लेकर योजना ही बना रहे हैं।"
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