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Written By DW
Last Updated : सोमवार, 10 जनवरी 2022 (08:25 IST)

प्राकृतिक गैस पर्यावरण के लिहाज से ठीक है या नहीं

प्राकृतिक गैस पर्यावरण के लिहाज से ठीक है या नहीं - Is natural gas good for the environment?
रिपोर्ट : स्टुअर्ट ब्राउन
 
सरकार और जीवाश्म ईंधन कंपनियां लंबे समय से यह बात कह रही हैं कि प्राकृतिक गैस स्वच्छ ऊर्जा वाले भविष्य में जाने का 'ब्रिज' है। लेकिन सवाल यह है कि क्या गैस वाकई में स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत है? हम खाना पकाने के लिए लंबे समय से गैस का इस्तेमाल कर रहे हैं। साथ ही इसके इस्तेमाल से हम घरों को गर्म भी कर रहे हैं। बिजली के उत्पादन के लिए भी इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए अमेरिका में 2020 में कुल ऊर्जा की खपत में 34 फीसदी हिस्सेदारी प्राकृतिक गैस की थी। यह बिजली उत्पादन का भी प्रमुख स्रोत था।
 
हाल के समय में जिस तरह से कोयले से चलने वाले बिजलीघरों को चरणबद्ध तरीके से बंद किया जा रहा है, उस स्थिति में जीवाश्म गैस 3 अक्षर (GAS) वाले जलवायु हीरो के तौर पर तेजी से उभर रहा है। लेकिन क्या यह वाकई में जलवायु हीरो है? जवाब है, नहीं। यह जलवायु हीरो नहीं है।
 
यूरोपीय आयोग ने पिछले हफ्ते प्राकृतिक गैस और परमाणु ऊर्जा को 'जलवायु के अनुकूल स्वच्छ ईंधन' के तौर पर वर्गीकृत करने का प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव का मकसद गैस से पैदा होने वाली ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देना है।
 
प्रस्ताव के समर्थकों का कहना है कि गैस कोयले जैसे अन्य विकल्पों की तुलना में काफी 'स्वच्छ' है। परमाणु ऊर्जा से भी जीरो कार्बन उत्सर्जन होता है। वहीं, आलोचकों का कहना है कि यह प्रस्ताव सिर्फ दिखने में जलवायु के अनुकूल लगता है, लेकिन हकीकत में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का प्रयास है। आलोचकों ने परमाणु ऊर्जा को भी टिकाऊ बताने की बात को 'गलत' बताया और कहा कि इससे निकलने वाले कचरे लंबे समय तक पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
 
यह सच बात है कि बिजली के उत्पादन में गैस का इस्तेमाल करने पर कोयले की तुलना में 50 फीसदी कम कार्बन उत्सर्जन होता है। हालांकि, पिछले एक दशक में प्राकृतिक गैस धरती को गर्म करने वाले CO2 के उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत साबित हुआ है। यूरोपीय संघ में कोयले के बाद सबसे ज्यादा CO2 का उत्सर्जन करने वाला स्रोत प्राकृतिक गैस है। दुनियाभर में कार्बन उत्सर्जन में 22 फीसदी हिस्सेदारी प्राकृतिक गैस की है।
 
'नया कोयला' है प्राकृतिक गैस
 
हमें यह लंबे समय से बताया जा रहा है कि स्वच्छ ऊर्जा के भविष्य के लिए प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल को बढ़ावा देना होगा। सैद्धांतिक रूप से यह बात इसलिए कही जा रही है कि यह दूसरे जीवाश्म ईंधन की तुलना में स्वच्छ है। इसलिए गैस के इस्तेमाल से कोयले से पैदा होने वाली ऊर्जा की जरूरतें पूरी करने में मदद मिल सकती है।
 
हालांकि, वास्तविकता यह है कि जीवाश्म ईंधन के तौर पर, प्राकृतिक गैस जलवायु परिवर्तन का कारण बनती है। इसी बात को आधार बनाते हुए, यूरोपीय ग्रीन पार्टी गैस को टिकाऊ और स्वच्छ ऊर्जा के रूप में वर्गीकृत करने को लेकर यूरोपीय आयोग को अदालत में घसीट सकती है। सार ये है कि गैस को पहले से ही 'नया कोयला' बताया जा रहा है।
 
प्राकृतिक गैस ज्वलनशील हाइड्रोकार्बन है जो ज्यादातर मीथेन से बनी होती है। मीथेन CO2 की तुलना में लगभग 28 गुना अधिक प्रदूषणकारी होती है। गैस को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने वाली पाइप लाइन और इसके भंडारण वाली जगहों से रिसाव की संभावना बनी रहती है।
 
प्राकृतिक गैस गैर-नवीकरणीय जीवाश्म ईंधन है जो शेल और चट्टान के बीच गहरे जमीन में पायी जाती है। यह अक्सर उस जगह मिलती है, जहां पेट्रोलियम के भंडार होते हैं। इसका ज्यादातर इस्तेमाल ऊर्जा के रूप में होता है। हालांकि, उर्वरक और प्लास्टिक बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है।
 
जिस तेजी से प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल हो रहा है वैसे में अगले 50 वर्षों में इसका भंडार समाप्त हो सकता है। ऐसी स्थिति में क्या यह कहना सही है कि स्वच्छ ऊर्जा भविष्य के लिए, गैस का इस्तेमाल 'ब्रिज' का काम करेगा?
 
क्या गैस का इस्तेमाल सुरक्षित है?
 
यूरोप अभी भी जीवाश्म ईंधन के लिए रूस पर बहुत अधिक निर्भर क्यों है? इसके पीछे की वजह यह है कि प्राकृतिक गैस को गहरे जमीन से निकाला जाता है और इसे लंबी दूरी तक भेजा जाता है। इसके लिए, बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जाता है। इसमें काफी लागत भी आती है और कार्बन का उत्सर्जन भी होता है।
 
दुनिया के अलग-अलग देशों के बीच होने वाली राजनीति भी एक बड़ी समस्या है। यूक्रेन में युद्ध के बढ़ते खतरों के बीच रूस और जर्मनी के बीच बिछने वाली नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइप से आपूर्ति में देरी हो रही है। यह पाइप लाइन तैयार है, लेकिन इससे गैस की सप्लाई नहीं हो रही है। आपूर्ति में कमी की वजह से यूरोप में गैस की कीमतें आसमान छू रही हैं।
 
जर्मनी खुद ईंधन और हीटिंग के लिए गैस पर इतना निर्भर है कि वह अमेरिका से गैस आयात करने के लिए तैयार है और लिक्विफाइड नैचुरल गैस (एलएनजी) के शिपमेंट के लिए नए टर्मिनल बनाने की योजना बना रहा है।
 
समस्या यह है कि इन आयातित गैसों में फ्रैक्ड गैस शामिल होगी। इसे रॉक एंड शेल से निकालने के लिए जहरीले रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। इस दौरान काफी मात्रा में मीथेन गैस भी निकलता है जो संभावित तौर पर कोयले की तुलना में जलवायु के लिए काफी ज्यादा खतरनाक साबित होता है। जर्मनी सहित कई अन्य यूरोपीय देशों ने अपने देश में गैस निकालने की इस प्रक्रिया पर रोक लगा दी है।
 
गैस का इस्तेमाल भी बंद होना चाहिए?
 
यूरोपीय संघ का मानना है कि हम ट्रैक के नीचे से हाइड्रोजन और बायोगैस जैसे "कम कार्बन" गैसों को निकालने के लिए, नए और मौजूदा गैस बुनियादी ढांचे को बेहतर बना सकते हैं। यूरोपीय आयोग के हाल के प्रस्ताव में इस बात का जिक्र किया गया है।
 
सैद्धांतिक रूप से यह बात ठीक लग सकती है, लेकिन इसका मतलब है कि कम समय में काफी ज्यादा हाइड्रोकार्बन को जलाना होगा। यही कारण है कि आलोचकों का कहना है कि ग्रीन गैस के इस्तेमाल की बात से जीवाश्म ईंधन कंपनियों को जलवायु के साथ खिलवाड़ करने का मौका मिल रहा है।
 
जलवायु से जुड़े मामलों की जानकारी रखने वाले एक विश्लेषक ने कहा कि प्राकृतिक गैस को भी कोयले की तरह माना जाना चाहिए। जितनी जल्दी हो सके, चरणबद्ध तरीके से इसके इस्तेमाल को भी बंद कर देना चाहिए।
 
विकल्प क्या है?
 
पिछले साल विशेषज्ञों ने बताया था कि सौर ऊर्जा अब तक के इतिहास की सबसे सस्ती ऊर्जा है। 2050 तक, सौर और पवन ऊर्जा दुनियाभर में ऊर्जा की कुल मांग से 100 गुना ज्यादा तक पूरा कर सकते हैं। इसलिएहमारे पास विकल्प है।
 
इसके बावजूद, ऑस्ट्रेलिया 'गैस से ऊर्जा पैदा करने' और यूरोप स्वच्छ ऊर्जा के भविष्य के लिए 'गैस ब्रिज' बनाने पर कड़ी मेहनत कर रहा है। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि गैस को इसलिए बढ़ावा दिया जा रहा है, क्योंकि यह 'कार्बन लॉक-इन' के लिए एक नुस्खा है। इससे ऊर्जा के दूसरे स्रोत के इस्तेमाल पर स्थानांतरण में देरी होगी।
 
वे यह भी कहते हैं कि गैस के इस्तेमाल के लिए बुनियादी ढांचे भी बनाए जाएंगे और जीवाश्म ईंधन निकाला जाना जारी रहेगा। इस बीच, इसी पैसे का इस्तेमाल अक्षय ऊर्जा के लिए भी किया जा सकता है जिससे कार्बन उत्सर्जन बिल्कुल ही नहीं होगा और यह ऊर्जा होगी जिसके साथ हम अभी भी खाना बना सकते हैं।
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