शुभज्योति घोष, बीबीसी न्यूज बांग्ला, दिल्ली
20 जुलाई 1969 को चांद पर कदम रखने वाले पहले अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग ने वहां उतरते ही कहा था, "यह इंसान के लिए छोटा कदम हो सकता है, लेकिन मानव जाति के लिए एक लंबी छलांग है।" विश्व के अंतरिक्ष इतिहास में यह वाक्य लगभग कहावत में बदल गया है। उस घटना की आधी सदी से भी ज़्यादा समय के बाद भारत का चंद्रयान-3 बुधवार शाम को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा है।
उसके बाद विक्रम लैंडर की ढलाननुमा सीढ़ी से उतर कर मून रोवर 'प्रज्ञान' ने भी धीरे-धीरे चांद की सतह पर अपनी यात्रा शुरू कर दी है।
'प्रज्ञान' संभवतः प्रति सेकेंड हद से हद एक सेंटीमीटर ही आगे बढ़ पा रहा है, लेकिन पर्यवेक्षकों को इस बात पर रत्ती भर भी संदेह नहीं है कि चांद के सीने पर यह छोटा क़दम भू-राजनीति और चांद आधारित अर्थव्यवस्था (लूनर इकोनॉमी) में एक लंबी छलांग है।
अंतरराष्ट्रीय सामयिकी फॉरेन पालिसी ने लिखा, "भारत का मून लैंडिंग दरअसल एक विशाल जियो-पॉलिटिकल स्टेप है।"
दुनिया के तमाम देश इस समय अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में नई-नई इबारत लिखने की कोशिश कर रहे हैं और इसके लिए भारी-भरकम रक़म ख़र्च कर रहे हैं।
भारत के अलावा रूस, चीन या अमेरिका—तमाम देश खासकर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अभियान चलाने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। माना जा रहा है कि मौजूदा पृष्ठभूमि में भारत की यह बेमिसाल कामयाबी उसके लिए नई-नई संभावनाओं के दरवाज़े खोल देगी।
भारत का स्पेस सेक्टर एक ट्रिलियन डॉलर का होगा!
भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने तो अभी से पूर्वानुमान लगा रखा है कि आगामी कुछ वर्षों के दौरान ही भारत स्पेस सेक्टर या अंतरिक्ष क्षेत्र में एक ट्रिलियन (एक लाख करोड़ ) डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
इस क्षेत्र के ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि चंद्रयान-3 की अभूतपूर्व कामयाबी के बाद भारत के लिए ऐसा करना कोई असंभव नहीं है।
तक्षशिला इंस्टीट्यूट में अंतरिक्ष और भूराजनीति के शोधकर्ता आदित्य रामनाथन मानते हैं कि यह कामयाबी भारत की युवा पीढ़ी के एक बड़े हिस्से को अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रति प्रोत्साहित करेगी और वह लोग इसे पेशे को तौर पर भी अपनाना चाहेंगे।
रामनाथन ने टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे अपने एक लेख में कहा है, "चंद्रयान की इस कामयाबी के आधार पर भारत को अब खुद को लूनर जियोपॉलिटिक्स के लिए भी तैयार करना होगा।"
चांद पर विपुल मात्रा में मूल्यवान खनिज या भारी तादाद में ईंधन का स्रोत भी मिल सकता है, इस संभावना ने भी हाल में बहुत से देशों को चांद पर अभियान के लिए प्रेरित किया है।
मौजूदा पृष्ठभूमि में माना जा रहा है कि अंतरिक्ष यान चंद्रयान-3 की कामयाबी भारत को पैनल पोजिशन में ले आएगी यानी अंतरराष्ट्रीय दौड़ में आगे बनाए रखेगी।
चांद के दक्षिणी ध्रुप पर उतरने की होड़
पूर्व सोवियत संघ और अमेरिका में चांद पर सबसे पहले पहुंचने की मशहूर होड़ के करीब छह दशकों बाद अब चांद के मुद्दे पर नए सिरे से प्रतियोगिता शुरू हुई है। इस बार आकर्षण का केंद्र है चांद का दक्षिणी ध्रुव, जहां वैज्ञानिकों को पानी या बर्फ मौजूद होने के सबूत मिले हैं।
रूस ने करीब 47 वर्षों बाद इसी महीने अपना पहला लूनर मिशन लांच किया था। हालांकि बीते रविवार (20 अगस्त) को वह लूना-25 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने में नाकाम रहा। उसके तीन दिन बाद ही वहां भारत का चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक उतर गया।
अमेरिका ने वर्ष 2025 के भीतर ही उस इलाके में पहली बार अंतरिक्ष यात्रियों को उतारने की योजना बनाई है। उसने इसकी तैयारियां भी शुरू कर दी हैं।
चीन ने भी इस दशक के खत्म होने से पहले ही चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अंतरिक्ष यात्री रहित और अंतरिक्ष यात्री समेत अंतरिक्ष यान उतारने की योजना बनाई है।
इसके अलावा इसराइल, जापान और संयुक्त अरब अमीरात जैसे कई देशों ने भी हाल में चांद पर अभियान की दिशा में पहल की है। हालांकि ऐसे तमाम प्रयास पहले चरण में ही नाकाम रहे हैं।
दक्षिण ध्रुव के प्रति इस बढ़ते आकर्षण की मूल वजह यह है कि वहां सचमुच पानी मिलने की स्थिति में उसे रॉकेट के ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
अमेरिका को चीन से आशंका
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वहां पानी की पर्याप्त सप्लाई सुनिश्चित होने की स्थिति में चांद पर एक स्थायी स्टेशन (परमानेंट बेस) बनाया जा सकता है। या फिर मंगल ग्रह या उससे भी दूर के अंतरिक्ष अभियान के लिए लॉन्च पैड स्थापित किया जा सकता है।
नासा के शीर्ष अधिकारी बिल नेल्सन ने भी हाल में एक इंटरव्यू में कहा है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सचमुच पानी मिलने की स्थिति में भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों या अंतरिक्ष यानों को काफी मदद मिलेगी।
लेकिन उन्होंने आशंका जताई है कि अगर चीन उस इलाके में सबसे पहले अपने किसी अंतरिक्ष यात्री को उतार देता है तो वह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपना दावा करना चाहेगा।
ऐसी प्रतियोगिता निकट भविष्य में ही शुरू हो सकती है, इसी आशंका से अमेरिका ने वर्ष 2020 में आर्टेमिस समझौता किया था।
इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने अंतरिक्ष अनुसंधान के मामले में तय नीतियों का पालन करने और संसाधनों के समान इस्तेमाल पर सहमति दी है।
दुनिया के कई देश इस समझौते में शामिल हैं। बीते जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान भारत ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन दो बड़ी अंतरिक्ष ताकतों-रूस और चीन ने अब तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिणी ध्रुव पर उतरने में चंद्रयान-3 की कामयाबी चांद को लेकर इस नई स्पेस रेस को और तेज़ करेगी और फर्स्ट एचीवर के तौर पर भारत ज़रूर कुछ फ़ायदे की स्थिति में रहेगा।
भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी परिपक्व हुई
विल्सन सेंटर में साउथ एशिया सेंटर के निदेशक माइक कुगेलमैन का मानना है कि भारत के इस सफल चंद्र अभियान से उसके साथ ही वृहत्तर विश्व को भी कई तरह की सुविधाएं मुहैया करा सकता है।
उन्होंने फ़ॉरेन पालिसी में लिखा है, "जो मौजूदा अंतरिक्ष अनुसंधान कम्युनिकेशन डेवलपमेंट एंड रिमोट सेंसिंग में काफी मदद कर रहा है, उसका अब और विस्तार होगा।"
उन्होंने ठोस उदाहरण के साथ बताया कि अतीत में भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान से भूगर्भीय जल के स्तर निगरानी करने और दुनिया के मौसम की प्रकृति (वेदर पैटर्न) का पूर्वानुमान लगाने में काफ़ी मदद मिली है।
उन्होंने याद दिलाया है कि ख़ासकर जो देश जलवायु परिवर्तन के कारण ख़तरे की आशंका से जूझ रहे हैं, उनके लिए यह तमाम आंकड़े काफ़ी उपयोगी होंगे।
भारत के स्ट्रेटेजिक थिंक टैंक 'ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन' के शोधकर्ता डॉ. राजी राजागोपालन ने भी बीबीसी से कहा है कि भारत की यह कामयाबी विभिन्न पहलुओं से दुनिया के अंतरिक्ष अनुसंधान पर सकारात्मक प्रभाव डालेगी।
डॉ. राजागोपालन कहते हैं, "इस अभियान ने यह साबित कर दिया है कि भारत की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पहले के मुकाबले काफी आधुनिक, विकसित और परिपक्व हो गई है।"
चांद पर हीलियम-3 का भंडार
वह मानते हैं कि बेहद कम खर्च (आनुमानिक 7.5 करोड़ डॉलर) में भारत ने जिस तरह एक कामयाब अंतरिक्ष अभियान लांच किया है, वह उसे एक कम लागत वाली लेकिन भरोसेमंद अंतरिक्ष शक्ति के तौर पर स्थापित करेगा।
अंतरराष्ट्रीय सलाहकार फ़र्म प्राइस वॉटरहाउस कूपर्स ने एक रिपोर्ट में इस बात की विस्तार से व्याख्या की है कि लूनर इकोनॉमी का क्या मतलब है।
रिपोर्ट के अनुसार, चांद पर जितनी तरह के संसाधन हैं, उनका चांद पर, पृथ्वी पर और चांद की कक्षा में कामयाबी से इस्तेमाल ही अर्थव्यवस्था का सूचक है।
जैसे चांद पर हीलियम के एक आइसोटोप हीलियम-3 का विशाल भंडार है जो नवीकरणीय ऊर्जा का विशाल स्रोत हो सकता है।
लेकिन उस हीलियम-3 का पृथ्वी के हित में कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है, वही लूनर इकोनॉमी का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
उन्होंने यहां तक पूर्वानुमान लगाया कि एक दिन चांद पर रियल एस्टेट या ज़मीन के मुद्दे पर भी दुनिया के विभिन्न देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता शुरू हो सकती है।
कई विशेषज्ञ यह बात मानते हैं कि अगर किसी दिन सचमुच ऐसा हुआ तो दक्षिणी ध्रुव पर 'फर्स्ट मूवर' के तौर पर भारत का एक ठोस दावा रहेगा।