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Written By DW
Last Modified: रविवार, 27 अगस्त 2023 (08:04 IST)

बिहार: गवाहों पर भारी पड़ रहे अपराधी

बिहार: गवाहों पर भारी पड़ रहे अपराधी - Bihar: Criminals overshadowing witnesses
मनीष कुमार, पटना
मृतकों में एक पत्रकार विमल कुमार यादव भी हैं, जो अपने छोटे भाई व बलसारा पंचायत के सरपंच शशि भूषण उर्फ गब्बू की चार वर्ष पूर्व हुई हत्या के एकमात्र गवाह थे। विमल ने पत्नी से अपनी जान पर खतरा होने की बात साझा की थी। उन्हें कई मौकों पर भाई के हत्यारों के खिलाफ गवाही देने से रोका गया था। बात नहीं मानने पर अंजाम भुगतने की चेतावनी दी गई थी। धमकी के बावजूद उन्होंने गवाही दी।
 
17 अगस्त, 2023 को सुबह के करीब साढ़े पांच बजे अररिया जिले के रानीगंज में प्रेम नगर साधु आश्रम स्थित विमल के आवास का दरवाजा अपराधियों ने खटखटाया और उनके बाहर निकलते ही गोली मार दी। मौके पर ही उनकी मौत हो गई। 21 अगस्त को शशिभूषण की हत्या मामले में सुनवाई होनी थी।
 
इस घटना के 72 घंटे बाद बेगूसराय जिले के बछवाड़ा में एक रिटायर्ड शिक्षक जवाहर चौधरी (75) को गोलियों से भून डाला गया। इनके छोटे पुत्र नीरज चौधरी को 10 फरवरी, 2021 को घर से बुला कर मौत के घाट उतार दिया गया था। गांव के ही पड़ोसी गोपाल चौधरी से भूमि विवाद में यह हत्या हुई थी। वे इसी कांड में चश्मदीद गवाह थे। केस ट्रायल फेज में था। आरोपित उन्हें इस मामले में पीछे हटने की धमकी दे रहे थे। लेकिन, वे इसके लिए तैयार नहीं थे। अगले दिन उन्हें गवाही देने जाना था। उसके पहले ही उनकी हत्या कर दी गई। केस उठाने के लिए धमकी मिलने की शिकायत करते हुए उन्होंने एसपी को आवेदन देकर सुरक्षा की गुहार भी लगाई थी।
 
तीसरी घटना सारण जिले के गौरा थाना क्षेत्र के अदल पट्टी गांव में हुई, जहां नंदकिशोर शर्मा की हत्या के गवाह सुरेंद्र शर्मा की गवाही के पहले ही हत्या कर दी गई। परिजनों का आरोप है कि उन्हें पहले जहर दिया गया और फिर उनके शव को नहर के किनारे फेंक दिया गया। नंदकिशोर की हत्या 2018 में कर दी गई थी। हत्या का आरोप तत्कालीन मुखिया अनिल सिंह पर लगाया गया था। इस मामले में 21 अगस्त को सुरेंद्र शर्मा की गवाही होनी थी। परिजनों का कहना है कि उन्हें मामले से हटने के लिए पैसे का प्रलोभन भी दिया गया था, जिससे उन्होंने इन्कार कर दिया था। इसी वजह से गवाही के पहले ही उनकी हत्या कर दी गई।
 
गवाह की हत्या केस कमजोर करने की कोशिश
पटना व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता राजेश कुमार कहते हैं, ‘‘गवाह किसी भी मुकदमे की महत्वपूर्ण कड़ी है। किसी भी आरोपी को सजा दिलाना काफी हद तक उसकी गवाही पर निर्भर करता है। केस कमजोर करने के उद्देश्य से गवाहों को डराया-धमकाया जाता है। यहां तक कि उनकी हत्या तक कर दिए जाने के मामले सामने आए हैं। यही वजह है कि गवाही देने से लोग कतराने लगे हैं। इसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय भी चिंता जाहिर कर चुका है।''
 
गवाह को धमकी की बात अगर कोर्ट तक पहुंचती है तो अदालत के निर्देश पर उन्हें सुरक्षा भी मुहैया कराई जाती है। इसलिए उनका भी दायित्व बनता है कि अगर ऐसी स्थिति उनके समक्ष आती है तो वे संबंधित कोर्ट को अवश्य सूचित करें। इसमें लापरवाही उचित नहीं है।
 
बीजेपी नेता के गवाह की भी कर दी गई थी हत्या
12 फरवरी, 2016 को भोजपुर जिले में बीजेपी के वरिष्ठ नेता व तत्कालीन प्रदेश उपाध्यक्ष विशेश्वर ओझा की हत्या उस समय कर दी गई थी, जब वे कारनामेपुर ओपी क्षेत्र के सोनवर्षा बाजार में एक शादी समारोह में भाग लेने गए थे। 40 वर्षीय कमल किशोर मिश्र इस हत्याकांड के गवाह थे। 28 सितंबर, 2018 की अलसुबह कारनामेपुर ओपी क्षेत्र के सोनवर्षा गांव में उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया गया, जब वे मवेशी के लिए चारा लेकर अपने खेत से घर लौट रहे थे। उन्हें चार महीने पहले धमकी दी गई थी।
 
बिहार में हरेक साल ऐसी कई घटनाएं होती हैं, जिनमें मारा गया व्यक्ति या तो कोई चश्मदीद होता है या फिर केस की अहम कड़ी।
 
बदनाम छवि वाली बिहार पुलिस
गवाह के अदालती संघर्ष की कहानी सिवान के चंदा बाबू की चर्चा किए बिना अधूरी है। चंदा बाबू के एक बेटे की हत्या इसलिए कर दी गई थी कि वह अपने ही दो भाइयों की हत्या का गवाह था। बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन के आदेश पर उसके गुर्गों ने चंदा बाबू के दो बेटों की जान एसिड से नहला कर ले ली थी।
 
तीसरा बेटा राजीव रोशन इस तेजाब कांड का एकमात्र गवाह था। उसकी भी बाद में हत्या कर दी गई। इसका आरोप शहाबुद्दीन पर ही लगा। चंदा बाबू इसमें गवाह थे। उन्होंने कोर्ट में शहाबुद्दीन के खिलाफ गवाही दी। उन्हें लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। इसमें उन्होंने अपना पूरा परिवार खो दिया। अंतत: शहाबुद्दीन को सजा हुई और जेल जाना पड़ा। अब इस दुनिया में न चंदा बाबू हैं और न शहाबुद्दीन।
 
बिहार पुलिस के एक अधिकारी बताते हैं, ‘‘गवाहों द्वारा सुरक्षा की मांग पर आवश्यक कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद उन्हें सुरक्षा मुहैया कराई जाती है। कई मामलों में अदालत भी पुलिस को दिशा-निर्देश देती है। कोर्ट आने-जाने के दौरान भी उन्हें प्रोटेक्शन मिलता है। लेकिन, इन सबके बावजूद गवाह को धमकियों से बेफिक्र नहीं रहना चाहिए। इसकी सूचना तुरंत स्थानीय पुलिस को देनी चाहिए।''
 
जाहिर है, ये घटनाएं राज्य सरकार, पुलिस-प्रशासन या फिर न्यायपालिका, सभी के लिए बड़ी चुनौती हैं। जब गवाही ही नहीं होगी तो न्यायिक प्रक्रिया पूर्ण कैसे होगी, अपराधियों को सजा कैसे मिलेगी। गवाहों की हत्या हर हाल में रोकनी ही होगी।
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