अब जापान भेज रहा है चांद पर अपना मून स्नाइपर  
					
					
                                       
                  
				  				 
								 
				  
                  				  भारत के चंद्रयान-3 अभियान की कामयाबी पर जापान की भी करीबी नजर है। 28 अगस्त को वह चंद्रमा के लिए अपना अभियान 'मून स्नाइपर' लॉन्च करने जा रहा है। उसे उम्मीद है कि इसरो की तरह वो भी लगातार आ रही रुकावटों से उबर सकेगा।
				  																	
									  
	 
	पहले मून स्नाइपर 26 अगस्त को लॉन्च होना था। लेकिन खराब मौसम के कारण इसकी तारीख आगे खिसक गई। यह जानकारी जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जेएएक्सए) ने दी है। अभियान के अंतर्गत, रॉकेट 4 से 6 महीने में लैंडर को चांद की सतह पर पहुंचाएगा। लैंडर के अलावा एक एक्स-रे इमेजिंग सैटेलाइट भी भेजी जाएगी, जो कि ब्रह्मांड के क्रमिक विकास की छानबीन करेगी।
				  
	 
	पहले नाकाम हो चुका है जापान
	 
	इससे पहले नवंबर 2022 में चंद्रमा पर लैंडर उतारने की जापान की कोशिश नाकाम रही थी। ओमोतेनाशी नाम के उस लूनर प्रोब से संवाद टूट गया था। अभियान को दूसरा झटका जुलाई में लगा, जब नई लॉन्चिंग के लिए आजमाया जा रहा एक नए तरीके का रॉकेट जांच के दौरान फट गया।
				  						
						
																							
									  
	 
	जापान ने इसमें एप्सेलॉन एस रॉकेट को जांचा था, लेकिन इन्गिनशन के 50 सेकेंड बाद ही इसमें धमाका हो गया। इससे पहले भी जापान को लॉन्च रॉकेटों में दिक्कतें पेश आई थीं, जब मार्च में अगली पीढ़ी का H3 मॉडल नाकाम रहा था। चंद्रमा पर लैंडिंग से जुड़ी तकनीक आसान नहीं है। पहली कोशिश में इसरो को भी नाकामी मिली थी, लेकिन चंद्रयान-3 अभियान सफल रहा।
				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  
	 
	पता लगाएगा, चांद कैसे बना?
	 
	अब जेएएक्सए की उम्मीदें 'स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून' (एसएलआईएम) पर टिकी हैं। यह छोटा और हल्का है। करीब 2.4 फुट ऊंचा, 2.7 मीटर चौड़ा और 1.7 मीटर लंबे एसएलआईएम का वजन 700 किलो है। जेएएक्सए का लक्ष्य इसे चंद्रमा पर एक नियत जगह पर 100 मीटर की परिधि में उतारने का है। आमतौर पर निर्धारित जगह और लैंडिंग के बीच कई किलोमीटर का फासला होता है। लेकिन जापान को उम्मीद है कि एसएलआईएम की सटीकता के कारण यह लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा।
				  																	
									  
	 
	जापान का प्रोब मिशन, हथेली के माप वाला एक मिनी रोवर का इस्तेमाल करेगा, जो कि अपना आकार बदल सकता है। सतह के नीचे की परतों की पड़ताल करके चंद्रमा के बनने की प्रक्रिया का पता लगाया जाएगा। हालांकि अभी तो सबसे बड़ी चुनौती चंद्रमा पर उतरने की है। एसएलआईएम प्रोजेक्ट टीम में शामिल शिनिचिरो सकाई ने चंद्रयान-3 की कामयाबी पर भारत को बधाई देते हुए कहा, 'चांद पर उतरना अब भी बहुत मुश्किल तकनीक है।'
				  																	
									  
	 
	इसी साल अप्रैल में जापान की एक स्टार्ट-अप कंपनी इजस्पेस ने भी चंद्रमा पर लैंड कराने की कोशिश की। लेकिन संवाद टूटने के बाद रोवर की हार्ड लैंडिंग हुई। अगर यह कंपनी कामयाब हुई होती, तो चंद्रमा पर लैंडिंग कराने वाली पहली निजी कंपनी बन जाती।
				  																	
									  
	 
	-एसएम/ओएसजे (एएफपी)