Guru Har Krishan Singh : सिख समुदाय द्वारा हर साल श्री गुरु हर किशन जी या या हरकृष्ण साहिब जी की पुण्यतिथि उनकी मृत्युतिथि की याद में मनाई जाती है। सिख धर्म में गुरु हर किशन जी का स्थान अद्वितीय है। आइये जानते हैं उनके बारे में...
गुरु हर किशन जी के बारे में: गुरु हर किशन सिखों के आठवें गुरु थे। उन्हें 'बाल गुरु' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने केवल 5 वर्ष की आयु में गुरु गद्दी संभाली थी। उनका कार्यकाल सबसे छोटा रहा, जो लगभग 2 साल, 5 महीने और 24 दिन था।
उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें: जन्म और परिवार: गुरु हर किशन जी का जन्म 7 जुलाई 1656 को कीरतपुर साहिब में हुआ था। वे सातवें गुरु, गुरु हर राय जी और माता किशन कौर के छोटे पुत्र थे। तिथिनुसार उनका जन्म श्रावण कृष्ण नवमी तिथि को हुआ था।
बुद्धि और आध्यात्मिक ज्ञान: छोटी उम्र के बावजूद, गुरु हर किशन जी असाधारण बुद्धि और आध्यात्मिक ज्ञान के धनी थे। कहा जाता है कि उन्होंने कम उम्र में ही पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब की गूढ़ बातों को समझाया था। गुरु हरि किशन जी बचपन से ही बहुत ही गंभीर और सहनशील थे और मात्र 5 वर्ष की उम्र में भी आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे। अकसर उनके गुरु हरि राय जी हर किशन जी के बड़े भाई राम राय और उनकी कठीन परीक्षा लेते रहते थे।
मानवता की सेवा: गुरु हर किशन जी ने जाति और धर्म के भेदभाव के बिना बीमार लोगों की निस्वार्थ सेवा की। उनकी इस सेवा से प्रभावित होकर, दिल्ली के लोग उन्हें 'बाला पीर' या बाल संत कहने लगे थे।
गुरु गद्दी: गुरु हर राय जी ने अपने बड़े पुत्र राम राय की बजाय गुरु हर किशन जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, जिससे राम राय मुगल बादशाह औरंगजेब से शिकायत करने दिल्ली चले गए। उनके पिता गुरु हरि राय जी ने उन्हें हर तरह से योग्य मानते हुए सन् 1661 में गुरुगद्दी सौंपी। उस समय उनकी आयु मात्र पांच वर्ष की थी। अत: उन्हें बाल गुरु कहा गया है।
उत्तराधिकारी का चुनाव: अपनी मृत्यु से पहले, जब उनसे उनके उत्तराधिकारी के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने केवल 'बाबा बाकला' कहा, जिसका अर्थ था कि अगले गुरु को बाकला गांव में खोजा जाए। इसके बाद नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी की पहचान हुई।
गुरुद्वारा बंगला साहिब: दिल्ली में जिस स्थान पर गुरु हर किशन जी रुके थे और जहां उन्होंने बीमारों की सेवा की थी, वहां अब प्रसिद्ध गुरुद्वारा बंगला साहिब स्थित है।
दिल्ली यात्रा और ज्योति जोत : औरंगजेब ने गुरु हर किशन जी को दिल्ली बुलाया। हालांकि, गुरु जी ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया। दिल्ली में उनके प्रवास के दौरान, वहां चेचक और हैजा की महामारी फैली हुई थी। लोगों की सेवा करते हुए, गुरु हर किशन जी स्वयं भी चेचक से पीड़ित हो गए और उन्होंने दिल्ली में सन् 1664 ई. में मात्र 8 वर्ष की उम्र में अपने प्राण त्याग दिए। उस दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष चौदस/ चतुर्दशी तिथि थी।
अपने अंतिम समय में गुरु हरि किशन सिंह जी 'वाहेगुरु' शबद् का उच्चारण करते हुए ज्योति-जोत में समा गए। गुरु हर किशन जी को उनकी कम उम्र, आध्यात्मिक ज्ञान और निस्वार्थ सेवा के लिए हमेशा याद किया जाता है। उनकी पुण्यतिथि हमें उनकी शिक्षाओं और करुणा भाव को स्मरण करने का अवसर देती है।
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