किस पेड़ के नीचे से गुजरने के बाद कावड़िये नहीं चढ़ा सकते शिवलिंग पर जल, जानिए नियम
kanwad yatra ke niyam: सावन का महीना आते ही शिव भक्तों में एक अद्भुत उत्साह और भक्ति का संचार हो जाता है। चारों ओर 'बोल बम' के जयकारे गूँजते हैं और सड़कों पर भगवा वस्त्रधारी कांवड़ियों का सैलाब उमड़ पड़ता है। यह पवित्र कांवड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। भक्तजन पवित्र नदियों से गंगाजल भरकर, सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। कांवड़ यात्रा से जुड़ी कई मान्यताएं और नियम हैं, जिनका पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इनमें से अगर कोई भी नियम टूट जाए, तो कांवड़ियों की कांवड़ को खंडित माना जाता है। ऐसा ही एक नियम है गूलर के पेड़ के नीचे से न गुजरने का, जिसके बाद कांवड़िये जल नहीं चढ़ा सकते। आखिर क्यों है यह नियम और क्या है इसके पीछे का रहस्य? आइए जानते हैं।
शिव को अति प्रिय: सावन और कांवड़
सावन का महीना और कांवड़ यात्रा, दोनों ही भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। सावन में भगवान शिव पृथ्वी पर वास करते हैं और अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। कांवड़ यात्रा इस पवित्र माह में महादेव को प्रसन्न करने का एक कठिन लेकिन फलदायी माध्यम है। भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह यात्रा करते हैं। इस यात्रा की पवित्रता बनाए रखने के लिए कुछ कठोर नियमों का पालन किया जाता है।
क्या है गूलर के पेड़ का रहस्य:
कांवड़ यात्रा के दौरान गूलर के पेड़ के नीचे से न गुजरने का नियम एक गहरी पौराणिक और धार्मिक मान्यता पर आधारित है। इसके पीछे मुख्य रूप से दो कारण बताए जाते हैं:
1. गूलर में कीड़े का वास और अपवित्रता: पौराणिक मान्यताओं और लोक कथाओं के अनुसार, गूलर के फल में अक्सर छोटे-छोटे अदृश्य कीड़े होते हैं। यह माना जाता है कि ये कीड़े अपवित्र होते हैं, और यदि कोई कांवड़िया गूलर के पेड़ के नीचे से गुजरता है, तो ये कीड़े या उनके अंश गंगाजल में गिर सकते हैं। गंगाजल को अत्यंत पवित्र माना जाता है, और उसमें किसी भी प्रकार की अशुद्धि का प्रवेश वर्जित है। यदि गंगाजल अपवित्र हो जाए, तो उसे शिवलिंग पर अर्पित नहीं किया जा सकता, और कांवड़ यात्रा खंडित मानी जाती है। यह नियम गंगाजल की पवित्रता और शुद्धता को बनाए रखने के लिए बनाया गया है।
2. गूलर का पेड़ माना जाता है नकारात्मक: कुछ अन्य धार्मिक मान्यताओं में गूलर के पेड़ को कुछ हद तक नकारात्मक ऊर्जा या विशेष प्रकार की शक्तियों से जोड़ा जाता है। यह माना जाता है कि इसके नीचे से गुजरने पर कांवड़िये की पवित्रता भंग हो सकती है या उसकी यात्रा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, यह मान्यता उतनी प्रबल नहीं है जितनी कीड़े वाली मान्यता। मुख्य जोर गंगाजल की शुद्धता पर ही रहता है।
नियम टूटने पर क्या होता है?
यदि कोई कांवड़िया अनजाने में भी गूलर के पेड़ के नीचे से गुजर जाता है, तो उसकी कांवड़ में भरा गंगाजल खंडित माना जाता है। ऐसी स्थिति में, वह उस जल को शिवलिंग पर अर्पित नहीं कर सकता। उसे या तो नया गंगाजल भरकर यात्रा फिर से शुरू करनी पड़ती है, या फिर उस जल को किसी पवित्र स्थान पर विसर्जित करके किसी अन्य पवित्र जल से अभिषेक करना पड़ता है। यह नियम कांवड़ यात्रा की पवित्रता और उसके प्रति भक्तों की निष्ठा को दर्शाता है।
कांवड़ यात्रा के अन्य महत्वपूर्ण नियम:
गूलर के पेड़ के अलावा भी कांवड़ यात्रा के कुछ अन्य महत्वपूर्ण नियम हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य माना जाता है:
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सात्विक जीवन: यात्रा के दौरान कांवड़िया को शुद्ध और सात्विक जीवन जीना चाहिए। मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज, और किसी भी प्रकार के नशे का सेवन वर्जित होता है।
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कांवड़ को जमीन पर न रखें: गंगाजल से भरी कांवड़ को यात्रा के दौरान कभी भी सीधे जमीन पर नहीं रखा जाता है। विश्राम के लिए इसे किसी साफ ऊंचे स्थान या लकड़ी के स्टैंड पर रखा जाता है।
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पैदल यात्रा: कांवड़ यात्रा पूरी तरह से पैदल ही की जाती है। किसी भी प्रकार के वाहन का प्रयोग वर्जित होता है।
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ब्रह्मचर्य और शांति: यात्रा के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना और मन को शांत रखना अनिवार्य माना गया है।
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बिना जूते-चप्पल के: कई कांवड़िये पूरी यात्रा बिना जूते-चप्पल के ही करते हैं, जो उनकी तपस्या का प्रतीक है।
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