नागपंचमी पर जानिए वासुकि, तक्षक और शेषनाग की कहानी
Nagapanchami 2025: नागपंचमी पर अष्टनागों की पूजा का विधान है। अष्टनाग में शेषनाग, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, पिंगला और कुलक कहे गए हैं। कुछ पुराणों में यह क्रम इस प्रकार है- वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय। अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है। आओ जानते हैं वासुकि, तक्षक और शेषनाग की संक्षिप्त कहानी।
1. शेषनाग: शेषनाग के बारे में कहा जाता है कि इन्हीं के फन पर धरती टिकी हुई है यह पाताल लोक में ही रहते है। चित्रों में अक्सर हिंदू देवता भगवान विष्णु को शेषनाग पर लेटे हुए चित्रित किया गया है। दरअसल, शेषनाग भगवान विष्णु के सेवक हैं। मान्यता है कि शेषनाग के हजार मस्तक हैं। इनका कही अंत नहीं है इसीलिए इन्हें 'अनंत' भी कहा गया है। शेष को ही अनंत कहा जाता है ये कश्यप ऋषि की पत्नीं कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी और प्रथम नागराज थे। कश्मीर के अनंतनाग जिला इनका गढ़ था।
ऋषि कश्यप की पत्नीं कद्रू के हजारों पुत्रों में सबसे बड़े और सबसे पराक्रमी शेष नाग ही थे। उनकी सांसारिक विरक्त का कारण उनकी मां, भाई और उनकी सौतेली माना विनता और गरूढ़ थे जिनमें आपसी द्वेष था। उन्होंने अपनी छली छली मां और भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने को ही श्रेष्ठ माना। ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया और उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया। इसके अलावा उन्होंने भगवान विष्णु का सेवक बनना ही अपना सबसे बड़ा पुण्य समझा। शेषनाग के पृथ्वी के नीचे जाते ही अर्थात जललोक में जाते ही उनके स्थान पर उनके छोटे भाई, वासुकि का राज्यतिलक कर दिया गया। राम के भाई लक्ष्मण और श्रीकृष्ण के भाई बलराम शेषनाग के ही अवतार हैं।
2. वासुकि: शेषनाग के भाई वासुकि को भगवान शिव के सेवक थे। नागों के दूसरे राजा वासुकि का इलाका कैलाश पर्वत के आसपास का क्षेत्र था। पुराणों अनुसार वासुकि नाग अत्यंत ही विशाल और लंबे शरीर वाले माने जाते हैं। समुद्र मंथन के दौरान देव और दानवों ने मंदराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी को ही नेती (रस्सी) बनाया था। त्रिपुरदाह के समय वह शिव के धनुष की डोर बने थे।
वासुकि को भविष्य ज्ञात था कि आने वाले समय में नागकुल का नाश किया जाएगा। ऐसे में उन्होंने नागवंश को बचाने के लिए उनकी बहन का विवाह जरत्कारू से कर दिया था क्योंकि वे जानते थे कि उनका पुत्र ही नागों के वंश को बचा सकता है। जरत्कारु के पुत्र आस्तीक ने जनमेजय के नागयज्ञ के समय सर्पों की रक्षा की थी।
3. तक्षक: आठ प्रमुख नागों में से एक कद्रू के पुत्र तक्षक भी पाताल में निवास करते हैं। पाश्चात्य इतिहासकारों के अनुसार तक्षक नाम की एक जाति थी जिसका जातीय चिन्ह सर्प था। उनका राजा परीक्षित के साथ भयंकर युद्ध हुआ था। जिसमें परीक्षित मारे गए थे। तब उनके पुत्र जनमेजय ने तक्षकों के साथ युद्ध कर उन्हें परास्त कर दिया था। हालांकि पुराणकारों ने नागों के इतिहास को मिथक बनाकर उन्हें नाग ही घोषित कर दिया।
तक्षक ने शमीक मुनि के शाप के आधार पर राजा परीक्षित को डंसा लिया था। उसके बाद राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नाग जाति का नाश करने के लिए नाग यज्ञ करवाया था। वेबदुनिया के शोधानुसार तक्षक का राज तक्षशिला में था। समुद्र के भीतर तक्षक नाम का एक नाग पाया जाता है जिसकी लंबाई लगभग 22 फुट की होती है और वह इतनी तेज गति से चलता है कि उसे कैमरे में कैद कर पाना मुश्किल है। यह सबसे भयानक सर्प होता है।