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Written By WD Feature Desk
Last Modified: गुरुवार, 3 जुलाई 2025 (18:14 IST)

क्या महिलाएं भी कर सकती हैं कांवड़ यात्रा? जानिए इस यात्रा पर जाने वाले कांवड़ियों का इतिहास, कौन कौन कर सकता है ये यात्रा

kawad yatra 2025 in hindi
kawad yatra par kaun ja sakta hai: भारत एक ऐसा देश है जहां धर्म, आस्था और परंपराएं जीवनशैली का एक अभिन्न हिस्सा हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक है "कावड़ यात्रा", एक ऐसी यात्रा जो न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि लाखों श्रद्धालुओं की आस्था, भक्ति और अनुशासन का प्रतीक भी बन चुकी है। साल 2025 में यह यात्रा विशेष महत्व रखती है क्योंकि यह समाज में एक नई ऊर्जा, भाईचारे और शिव भक्ति की भावना को और प्रबल करने जा रही है। 2025 में कांवड़ यात्रा की शुरुआत 11 जुलाई, शुक्रवार से होने जा रही है। इस बार श्रावण माह में कुल चार सोमवार आएंगे, जो शिवभक्तों के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं। परंपरा के अनुसार, कांवड़ यात्रा सावन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होकर कृष्ण चतुर्दशी, यानी सावन शिवरात्रि तक चलती है। इस बार की यात्रा कुल 13 दिनों तक चलेगी, जिसमें लाखों शिवभक्त गंगा जल लेकर शिवालयों की ओर प्रस्थान करेंगे। यह अवधि शिव उपासना, अनुशासन और श्रद्धा का अद्वितीय संगम मानी जा रही है।
चाहे आप युवा हों या वरिष्ठ नागरिक, इस यात्रा में भाग लेने की इच्छा और श्रद्धा ही सबसे बड़ा आधार है। लेकिन क्या हर कोई कांवड़ यात्रा पर जा सकता है?

आइए जानें इस यात्रा की परंपरा, इतिहास और इससे जुड़ी कुछ जरूरी बातें जो आपको तय करने में मदद करेंगी कि आप भी इस यात्रा पर निकल सकते हैं या नहीं।
 
कावड़ यात्रा की शुरुआत
कावड़ यात्रा का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है, जो सीधे-सीधे भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला था, तो पूरे ब्रह्मांड को बचाने के लिए भगवान शिव ने उस जहर को अपने कंठ में धारण कर लिया था। इस कारण उनका शरीर अत्यधिक गर्म हो गया था। तब सभी देवताओं और भक्तों ने गंगा जल लाकर उनके ऊपर चढ़ाया ताकि उनकी तपन शांत हो सके।
 
कहा जाता है कि भगवान शिव की तपन को शांत करने के लिए तब से हर सावन मास में भक्त गंगा नदी से जल लेकर पैदल यात्रा करते हैं और वह जल शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। यही परंपरा कालांतर में 'कावड़ यात्रा' के रूप में लोकप्रिय हुई, जिसमें भक्त कंधे पर कांवर (एक विशेष प्रकार की लकड़ी या बांस से बनी डंडी जिसमें दोनों तरफ कलश लटकाए जाते हैं) लेकर गंगा जल भरते हैं और अपने नजदीकी या किसी विशेष शिव मंदिर में जाकर उस जल को अर्पित करते हैं।
 
कौन-कौन जा सकता है कांवड़ यात्रा पर?
कांवड़ यात्रा पर जाने के लिए कोई धार्मिक या कानूनी प्रतिबंध नहीं है। हर आयु वर्ग का व्यक्ति इस यात्रा में भाग ले सकता है, बशर्ते उसकी शारीरिक और मानसिक तैयारी पूरी हो। यात्रा के लिए आपको विशेष प्रशिक्षण की जरूरत नहीं, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है। आपकी शारीरिक फिटनेस अच्छी होनी चाहिए क्योंकि यह यात्रा अधिकतर पैदल ही की जाती है और दूरी कई बार 100 से 300 किलोमीटर तक होती है। आप में धैर्य, अनुशासन और श्रद्धा होनी चाहिए क्योंकि यात्रा के दौरान कठिन मौसम, भीड़ और कष्ट का सामना करना पड़ सकता है। आप यात्रा के नियमों और मर्यादाओं का पालन कर सकें, जैसे कांवड़ को जमीन पर न रखना, मांस-मदिरा से दूर रहना, और सात्विक जीवनशैली अपनाना।
 
क्या महिलाएं भी कर सकती हैं कांवड़ यात्रा?
जी हां, समय के साथ-साथ कांवड़ यात्रा में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ी है। पहले यह यात्रा पुरुषों तक सीमित मानी जाती थी, लेकिन अब कई महिलाएं भी पूरी श्रद्धा और ऊर्जा के साथ इस यात्रा में भाग ले रही हैं। उन्हें भी वही नियमों का पालन करना होता है और उनके लिए अलग से सुविधाएं और सुरक्षा व्यवस्था भी की जाती है।
 
ऐतिहासिक साक्ष्य और सामाजिक प्रभाव
कावड़ यात्रा का जिक्र प्राचीन शास्त्रों और धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। इतिहासकारों का मानना है कि यह यात्रा पहले केवल हरिद्वार, गंगोत्री और गोमुख जैसे तीर्थस्थलों से शुरू होती थी और इसे करने वाले अधिकतर साधु-संत या तपस्वी हुआ करते थे। लेकिन समय के साथ-साथ इस यात्रा का स्वरूप भी बदला और अब आम घरों के लोग, युवा वर्ग, महिलाएं और बच्चे भी पूरे उत्साह से इसमें भाग लेने लगे हैं।
 
इस यात्रा ने केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक एकता का भी बड़ा संदेश दिया है। विभिन्न जाति, वर्ग और पृष्ठभूमि के लोग एक ही लक्ष्य, शिव भक्ति, जिसको लेकर जब एक साथ चल पड़ते हैं तो वह दृश्य अपने आप में अनुकरणीय होता है। कावड़ यात्रा ने गांव-गांव और शहर-शहर में सेवा भावना को बढ़ावा दिया है, जहां लोग 'कावड़ियों' के लिए निशुल्क भोजन, चिकित्सा और ठहरने की सुविधा प्रदान करते हैं।
 
कावड़ यात्रा का आध्यात्मिक महत्व
कावड़ यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, यह एक प्रकार की साधना है – तन, मन और आत्मा की। इसमें शरीर की सहनशक्ति, मन की स्थिरता और आत्मा की श्रद्धा का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। कई श्रद्धालु तो सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा नंगे पांव करते हैं, कुछ कावड़िए 'डाक कावड़' के रूप में दौड़ते हुए यात्रा पूरी करते हैं, जिससे यह यात्रा एक अनुशासित भक्ति रूप में बदल जाती है।
 
भक्तों का मानना है कि इस यात्रा से उन्हें शिव की कृपा, मानसिक शांति, और जीवन में सकारात्मकता मिलती है। यह यात्रा केवल भगवान शिव को जल चढ़ाने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि स्वयं के अंदर के नकारात्मक तत्वों को जलाकर, एक नए रूप में स्वयं को पुनः प्राप्त करने की साधना है।
 
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