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  4. What is the history of Jagannath Temple
Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 21 जून 2025 (17:39 IST)

जगन्नाथ रथयात्रा 2025: क्या है जगन्नाथ मंदिर का इतिहास, कितना प्राचीन है यह मंदिर?

History of Jagannath Puri
Jagannath Rath yatra 2024 : 27 जून 2025 से उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा का प्रारंभ होगा। जगन्नाथ मंदिर धाम को हिंदुओं के चार धामों में से एक माना जाता है। इसे वैकुंठ लोक कहा गया है। हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक उड़ीसा के पुरी नगर की गणना सप्तपुरियों में भी की जाती है। इसे श्रीक्षेत्र, श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। पुराण के अनुसार नीलगिरि में पुरुषोत्तम हरि की पूजा की जाती है। ओडिशा के निवासियों की मान्यता के अनुसार यह स्थान नीलमाधव के रूप में भगवान विष्णु की लीला का स्थान रहा है। बाद में यह श्री कृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा का मुख्य स्थान बन गया है। पुरी को मोक्ष देने वाला स्थान कहा गया है।ALSO READ: क्या भविष्य मालिका की भविष्यवाणी जुड़ी है जगन्नाथ मंदिर के 10 संकेतों से?
 
1. पुरी के पुजारियों के अनुसार प्राचीन काल में ओडिशा को उद्र देश और पुरी को शंख क्षेत्र कहा जाता था। यह स्थान भगवान विष्णु का प्राचीन स्थान है जिसे बैकुंठ भी कहा जाता है। 
 
2. ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु 'पुरुषोत्तम नीलमाधव' के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। सबसे प्राचीन मत्स्य पुराण में लिखा है कि पुरुषोत्तम क्षेत्र की देवी विमला है और यहां उनकी पूजा होती है। बाली ने जब रावण को बंधक बना लिया था तब रावण ने इसी पुरुषोत्तम क्षेत्र में मां विमला की साधना की थी। मां विमला ने ही लंका में लंकेश्वरी के रूप में रहकर लंका को सुरक्षित रखा था
 
3. इस स्थान का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है ऐसा कहा जाता है। रामायण के उत्तरकाण्ड के अनुसार भगवान राम ने रावण के भाई विभीषण को अपने इक्ष्वाकु वंश के कुलदेवता भगवान नीलमाधव की आराधना करने को कहा था। आज भी पुरी के श्री मंदिर में विभीषण वंदापना की परंपरा कायम है।
 
4. स्थान के बाद यहां मंदिर के होने का सबसे पहला प्रमाण महाभारत के वनपर्व में मिलता है। कहा जाता है कि सबसे पहले सबर आदिवासी विश्ववसु ने नीलमाधव के रूप में इनकी पूजा की थी। आज भी पुरी के मंदिरों में कई सेवक हैं जिन्हें दैतापति के नाम से जाना जाता है।
 
5. इस मंदिर को सतयुग के सम्राट इंद्रद्युम्न ने सबसे पहले बनवाया था। सम्राट इंद्रद्युम्न चक्रवर्ती सम्राट थे जिनकी राजधानी उज्जैन में थी। कहते हैं कि सम्राट इंद्रद्युम्न का बनवाया गया मंदिर रेत में दब गया था जिसे द्वार के अंत में निकाला गया और तब यहां पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करके उन्हें जग के नाथ जगन्नाथ कहा जाने लगा।
 
6. वर्तमान में जो मंदिर है वह 7वीं सदी में बनवाया था। हालांकि इस मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व 2 में भी हुआ था। 
7. गंग वंश में मिले ताम्र पत्रों के मुताबिक वर्तमान मंदिर के निर्माण कार्य को कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने शुरु करवाया था। मंदिर के जगमोहन और विमान भाग इनके शासन काल 1078-1148 के दौरान बने थे। इसका उल्लेख उनके वंशज नरसिंहदेव द्वितीय और मातृपक्ष के राजेंद्र चोल के केंदुपटना ताम्रपत्र शिलालेख में वर्णित है। 
 
8.  अनंतवर्मन मूल रूप से शैव थे, और 1112 ई. में उत्कल क्षेत्र पर विजय प्राप्त करने के कुछ समय बाद वे वैष्णव बन गए थे। 1134-1135 ई. के एक शिलालेख में मंदिर को उनके दान का उल्लेख है। 
 
9. यहां स्थित मंदिर 3 बार टूट चुका है। इसके बाद ओडिशा राज्य के शासक अनंग भीम ने सन 1197 में इस मंदिर को वर्तमान रूप दिया था। मुख्य मंदिर के आसपास लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर स्थापित हैं।
 
10. सन् 1558 यहां पूजा अर्चना होती रही लेकिन अचानक इसी वर्ष अफगान जनरल काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला किया और मूर्तियां तथा मंदिर के ऊपर हमले के बाद पूजा बंद करा दी गई थी। 
 
11. विग्रहों को चिल्का झील में स्थित एक द्वीप में गुप्त रूप से सुरक्षित रखा गया था। इसके बाद रामचंद्र देब के खुर्दा में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया तब मंदिर और इसकी मूर्तियों की पुन:स्थापना हुई।
 
12. कई लोग इसके पूर्व में बौद्ध मंदिर होने का दावा करते हैं लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता है। बौद्ध मंदिर स्तूप की तरह बनते थे जबकि जगन्नाथ मंदिर कलिंग शैली में बनवाया गया है। इस पर उकेरे गए चित्र और मूर्ति को देखकर भी यह कहा जा सकता है कि यह प्राचीन काल से ही एक हिंदू मंदिर रहा है।