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  4. Was Lord Shri Ram worshipped in Jagannath Puri earlier
Written By WD Feature Desk
Last Modified: शुक्रवार, 20 जून 2025 (11:55 IST)

क्या पहले होती थी जगन्नाथ पुरी में प्रभु श्रीराम की पूजा?

Jagannath Puri
हिंदू धर्म के चार धामों में से एक जगन्नाथ धाम में भगवान श्रीकृष्‍ण अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का साथ विराजमान है। श्रीकृष्‍ण द्वापर में हुए थे और यह मंदिर का स्थान सतयुग से है। मंदिर की कथा सतयुग के राजा इंद्रद्युम्न से जुड़ी है। पुरु क्षेत्र को पुरुषोत्तम क्षेत्र कहा गया है जो कि भगवान श्रीरम के नाम पर है। श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। इस मंदिर की एक कहानी श्रीराम से भी जुड़ी हुई है। 
 
पुरुषोत्तम क्षेत्र:
'गंगायां मंगला नाम विमला पुरुषोत्तमे।- मत्स्यपुराण-13/35
'गंगायां मंगला प्रोक्ता विमला पुरुषोत्तमे॥- श्रीमद्देवी भागवत-7/30/64
 
कुछ विद्वान इसको जगन्नाथ पुरी में भगवान श्री जगन्नाथजी के मंदिर के प्रांगण में स्थित भैरव जगन्नाथ को पीठ मानते हैं। जगन्नाथ को पुरुषोत्तम क्षेत्र मानते हैं। यहां की शक्ति विमला तथा भैरव जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं। ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु 'पुरुषोत्तम नीलमाधव' के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। हालांकि इसे पुरुषोत्तम क्षेत्र जरूर कहा गया है परंतु यहां पर प्रभु श्रीराम की पूजा होती थी इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता है।
 
कैसे बने विष्णु बने जगन्नाथ श्रीकृष्ण?
सबसे पहले यह क्षेत्र भगवान विष्णु का ही रहा है। यहां उनकी नीलमाधव नाम से पूजा की जाती थी। ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। बाद में पुरुषोत्तम हरि को यहां भगवान राम का रूप माना गया। फिर द्वापर युग में सतयुग के राजा इंद्रद्युम्न ने इसे श्रीकृष्‍ण के माधव स्वरूप को स्थापित करके उन्हें जगन्नाथ बनाया। सतयुग के राजा इंद्रद्युम्न ने किस तरह इस स्थान पर मंदिर बनवाया और ऐसे विष्णु के पूर्णावतार श्रीकृष्ण जग के नाथ जगन्नाथ बन गए इसको लेकर संपूर्ण कथा है। 
 
तुलसीदास जी ने रघुनाथ के रूप में पूजा:
कुछ लोग जगन्नाथ को विष्णु या कृष्ण के अवतार के रूप में भी देखते हैं। जगन्नाथ जी को भगवान राम का ही एक रूप माना जाता है, विशेषकर 16वीं शताब्दी में तुलसीदास द्वारा, जिन्होंने उन्हें रघुनाथ के रूप में पूजा था।
 
विभीषण वंदापना परंपरा:
स्थानीय मान्यता के अनुसार यहां की सबसे बड़ी शक्ति माता विमला देवी है, जो रावण की कुलदेवी मानी गई है। इन देवी की आज्ञा से ही सभी कार्य होते हैं। यह यहां की रक्षक देवी हैं। इन्हें योगमाया और परमेश्वरी कहा जाता है। दूसरी ओर रामायण के उत्तरकाण्ड के अनुसार भगवान राम ने रावण के भाई विभीषण को अपने इक्ष्वाकु वंश के कुल देवता भगवान जगन्नाथ की आराधना करने को कहा था। आज भी पुरी के श्री मंदिर में विभीषण वंदापना की परंपरा कायम है।