शुक्रवार, 29 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. प्रादेशिक
  4. Controversy erupts over renaming of Jim Corbett
Written By एन. पांडेय
Last Updated : बुधवार, 13 अक्टूबर 2021 (17:08 IST)

कार्बेट पार्क में केंद्रीय मंत्री अपने दौरे से नामांतरण विवाद को हवा दे गए

कार्बेट पार्क में केंद्रीय मंत्री अपने दौरे से नामांतरण विवाद को हवा दे गए - Controversy erupts over renaming of Jim Corbett
नैनीताल। राज्य सरकार हालांकि जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का नाम बदलने की केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री अश्विनी चौबे की मंशा से सहमत नहीं है। लेकिन इसके बावजूद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री कह रहे हैं कि पार्क का नाम बदलने की इच्छा स्थानीय लोगों की है। मंत्री महोदय के अनुसार बाघ अभयारण्य को पहले रामगंगा राष्ट्रीय उद्यान के रूप में जाना जाता था।

 
जब मैंने 3 अक्टूबर को पार्क के दौरे के दौरान लोगों से पूछा कि रामगंगा क्या है तो उन्होंने कहा कि रिजर्व के अंदर एक जलाशय है, जहां जानवर अपनी प्यास बुझाते हैं। चौबे ने यह भी कहा कि हम नहीं जानते कि रामगंगा से टाइगर रिजर्व का नाम कैसे बदल गया। जिम कॉर्बेट एक महान शिकारी और एक अच्छे इंसान थे। वह जो थे, उसके लिए उन्हें उचित सम्मान दिया गया है। उन्हें एक राजदूत बनाया जा सकता था लेकिन हम निश्चित रूप से राष्ट्रीय उद्यान को रामगंगा कह सकते हैं। यह स्थानीय लोगों की इच्छा है।

 
एक बार जब राज्य सरकार हमें प्रस्ताव भेज देगी तो हम पार्क का नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू कर देंगे। इस बाबत अगर केंद्र राज्य के मंत्री की मंशा के मुताबिक अगर पार्क के नाम को बदलने का प्रयास जारी रखा गया तो इसको लेकर विवाद बढना तय है। नैनीताल जिले के कालाढूंगी में जिम कॉर्बेट संग्रहालय आज भी देश विदेश के वन्य जीव प्रेमियों को कॉर्बेट के बारे में जानने समझने का मौका देता है। जिम, क्रिस्टोफर व मेरी जेन कॉर्बेट की 8वीं संतान एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट जिन्हें दुनिया जिम कॉर्बेट के नाम से जानती है, का जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में हुआ था। कॉर्बेट सर्दियों का मौसम कालाढूंगी में तथा गर्मियां नैनीताल में बिताते थे। अपनी उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद जिम ने पहले रेल विभाग में और उसके बाद सेना में काम किया। उसके बाद जिम पुन: नैनीताल व कालाढूंगी लौट आए।


 
नैनीताल जिले के छोटे से कस्बे कालाढूंगी में स्थित जिम कॉर्बेट संग्रहालय में आज भी उनके संग्रहालय को विजिट करने देश-दुनिया से लोग आते हैं। इस संग्रहालय में जिम कॉर्बेट के जीवन से जुड़ी वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। वन्य जीवन की गहरी समझ उन्हें इसी कालाढूंगी में मिली, जहां उनका बचपन भी बीता था। उनके पिता पोस्टमास्टर थे और कालाढूंगी में 40 एकड़ की भूमि उन्हें ब्रिटिश सरकार से ग्रांट में मिली थी। उन्होंने उत्तराखंड की तराई और भावर के सघन जंगलों का चप्पा-चप्पा छाना। जिम कॉर्बेट के कालाढूंगी वाले जिस घर को अब संग्रहालय में तब्दील किया गया है उसके परिसर के एक कोने में उनके कुत्तों- रोबिन और रोसीना की भी कब्रें हैं।
 
कॉर्बेट अपने साथ अपने कुत्तों- रोबिन और रोसीना को भी ले जाया करते। कॉर्बेट ने बाघों के नरभक्षी हो जाने के कारणों पर गहरा अध्ययन किया था। उन्होंने चम्पावत की नरभक्षी बाघिन का शिकार के बाद मुआयना किया, उन्होंने पाया कि कुछ साल पहले किसी की गोली उसके मुंह पर लगी थी जिसकी वजह से वह सामान्य तरीके से शिकार करने में असमर्थ हो गई।


 
बाघों के साथ ही जीवन बिता देने के दौरान उनके शोधों से उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि वन्य जीवन का व्यवस्थित संरक्षण बहुत जरूरी है। उनके प्रयासों का ही ये प्रतिफल था कि 1936 में भारत के पहले वन्यजीव अभ्यारण्य की स्थापना हो सकी। 
1947 में भारत में 3 से 4 हजार तक बाघ होने का उनका अनुमान था। इसके आधार पर उन्होंने यह संदेह जाहिर किया था कि अगले 10-15 सालों में वे भारत से अदृश्य हो जाएंगे। देश-विदेश से सैलानी कॉर्बेट के गांव छोटी हल्द्वानी घूमने के लिए आते हैं।
 
कालाढूंगी में स्थित अपने घर को कॉर्बेट अपने मित्र चिरंजीलाल साह को दे गए थे। लेकिन जब 1965 में चौधरी चरण सिंह वन मंत्री बने तो उन्होंने इस ऐतिहासिक बंगले को आने वाली नस्लों को जिम कॉर्बेट के महान व्यक्तित्व को परिचित कराने के लिए चिरंजीलाल शाह से 20 हजार रुपए देकर खरीद लिया। एक धरोहर के रूप में वन विभाग के सुपुर्द कर इसमें कॉर्बेट म्यूजियम स्थापित किया। कॉर्बेट का नाम एक ब्रांड बन चुका है। कॉर्बेट का नाम इतना प्रसिद्ध हो चला है कि कई लोगों ने अपने छोटे-बड़े प्रतिष्ठानों के नाम कॉर्बेट के नाम से ही रखे हैं।