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Last Modified: गुरुवार, 18 अगस्त 2022 (21:24 IST)

केरल में यौन उत्पीड़न मामले में न्यायाधीश का एक और विवादित आदेश

केरल में यौन उत्पीड़न मामले में न्यायाधीश का एक और विवादित आदेश - Another controversial order of the judge in the sexual harassment case in Kerala
कोझिकोड (केरल)। महिला के 'उत्तेजक पोशाक' पहने होने का जिक्र करते हुए आरोपी के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला नहीं बनने की टिप्पणी करने वाले एक सत्र अदालत के न्यायाधीश का पूर्व में दिया एक और आदेश गुरुवार को सामने आया। इस बीच, अदालत के 12 अगस्त के आदेश को लेकर पूरे राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों से आलोचनाओं का दौर जारी है।

न्यायाधीश ने दो अगस्त को एक आदेश में 74 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक सिविक चंद्रन को अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट) के तहत दर्ज एक मामले में जमानत दी थी। साथ ही, कहा था कि इस विधान के तहत प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ मामला नहीं बनता है क्योंकि वह जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।

न्यायाधीश ने 12 अगस्त को इसी आरोपी को यौन उत्पीड़न के एक मामले में जमानत देते हुए अपनी टिप्पणी में कहा था कि चूंकि महिला ने उत्तेजक पोशाक पहन रखी थी इसलिए प्रथम दृष्टया यौन उत्पीड़न का मामला नहीं बनता है।

कोझिकोड सत्र अदालत ने टिप्पणी की थी कि जमानत अर्जी के साथ आरोपी द्वारा पेश की गई शिकायतकर्ता की तस्वीर यह स्पष्ट करेगी कि उसने उत्तेजक पोशाक पहन रखी थी और यह मानना असंभव है कि 74 वर्षीय दिव्यांग व्यक्ति शिकायतकर्ता को जबरन अपनी गोद में बिठा सकता है और उसका यौन उत्पीड़न किया।

इस बीच, अदालत के 12 अगस्त के आदेश को लेकर पूरे राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों से आलोचनाओं का दौर जारी है। राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की अध्यक्ष रेखा शर्मा एवं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) पोलित ब्यूरो की वरिष्ठ सदस्य बृंदा करात ने सत्र न्यायाधीश की टिप्पणी की कड़ी निंदा की है।

शर्मा ने ट्वीट किया, यौन उत्पीड़न के मामले में जमानत देते समय शिकायतकर्ता के वस्त्र के संबंध में कोझिकोड सत्र अदालत की टिप्पणियां बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं और एनसीडब्ल्यू इसकी कड़ी निंदा करती है। अदालत ने इस तरह के आदेश के दूरगामी परिणामों की अनदेखी की है।

करात ने दिल्ली में मीडियाकर्मियों से कहा, उच्चतर न्यायपालिका को इन टिप्पणियों (केरल सत्र अदालत की) पर ध्यान देना चाहिए और आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने सवाल किया, क्या उच्चतर न्यायपालिका अदालतों में उन महिलाओं के विश्वास की बहाली के लिए कोई उपाय करेगी, जो यौन उत्पीड़न की शिकार हुई हैं।

केरल की महिला एवं बाल विकास मंत्री वीना जॉर्ज ने भी सत्र न्यायाधीश के आदेश की आलोचना करते हुए इसे 'दुर्भाग्यपूर्ण' करार दिया। मीडिया से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि इस तरह के आदेशों और टिप्पणियों से जनता का न्यायपालिका पर से भरोसा उठ सकता है, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए।

माकपा की एक अन्य वरिष्ठ नेता और पोलित ब्यूरो सदस्य, सुभाषिनी अली ने भी इसी तरह के विचार प्रकट किए। उन्होंने दिल्ली में कहा कि इस तरह के आदेश, फैसले और टिप्पणियां हमारे समाज में महिलाओं की सिर्फ असुरक्षा बढ़ाएंगी और उनके खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देंगी।(भाषा)
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