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Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 8 जुलाई 2025 (15:36 IST)

कन्याओं और सुहागिनों का प्रिय व्रत, जानिए जया पार्वती व्रत की कहानी

Jaya Parvati Vrat katha in Hindi
Vijaya Parvati Vrat Katha : आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय कौंडिल्य नगर में वामन नाम का एक योग्य ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सत्या था। उनके घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संतान नहीं होने से वे बहुत दुखी रहते थे। एक दिन नारद जी उनके घर पधारें। उन्होंने नारद की खूब सेवा की और अपनी समस्या का समाधान पूछा।ALSO READ: Jaya Parvati Vrat 2025: विवाह, प्रेम और सौभाग्य के लिए सबसे शुभ है जया पार्वती व्रत
 
तब नारद जी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे नगर के बाहर जो वन है, उसके दक्षिणी भाग में बिल्व वृक्ष के नीचे भगवान शिव माता पार्वती के साथ लिंगस्वरूप में विराजित हैं। उनकी पूजा करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूरी होगी। तब ब्राह्मण दंपत्ति ने उस शिवलिंग की ढूंढकर उसकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। 
 
इस प्रकार पूजा करने का क्रम चलता रहा और 5 वर्ष बीत गए। एक दिन जब वह ब्राह्मण पूजन के लिए फूल तोड़ रहा था तभी उसे सांप ने काट लिया और वह वहीं जंगल में गिर गया। ब्राह्मण जब काफी देर तक घर नहीं लौटा तो उसकी पत्नी उसे ढूंढने आई। पति को इस हालत में देख वह रोने लगी और वन देवता व माता पार्वती को स्मरण किया। 
 
ब्राह्मणी की पुकार सुनकर वन देवता और मां पार्वती चली आईं और ब्राह्मण के मुख में अमृत डाल दिया, जिससे ब्राह्मण उठ बैठा। तब ब्राह्मण दंपत्ति ने माता पार्वती का पूजन किया। माता पार्वती ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहा। तब दोनों ने संतान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की, फिर माता पार्वती ने उन्हें विजया पार्वती व्रत करने की बात कहीं।

आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन उस ब्राह्मण दंपत्ति ने विधिपूर्वक माता पार्वती का यह व्रत किया, तब उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। अत: यह व्रत बहुत अधिक महत्व का होने के कारण इस दिन व्रत करने वालों को संतान की प्राप्ति तथा अखंड सौभाग्य बना रहता है।
 
मान्यतानुसार तभी से इस व्रत को 'जया पार्वती व्रत' के नाम से जाना जाने लगा और यह माता पार्वती द्वारा 'जया' (विजय) का आशीर्वाद प्रदान करने का प्रतीक है, जिससे मनुष्य की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है तथा इस व्रत से कुंवारी कन्याओं को मनचाहे जीवनसाथी का आशीर्वाद दिलाता है।
 
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