ममता के भतीजे अभिषेक की राह आसान नहीं
डायमंड हार्बर। पश्चिम बंगाल की डायमंड हार्बर लोकसभा सीट पर मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक की राह आसान नहीं है।वर्ष 2011 में विजय रैली के दौरान उनका राजनीति में प्रवेश भले ही उनकी बुआ ने कराया था लेकिन लोकप्रिय पर्यटन स्थल डायमंड हार्बर में उन पर ‘बाहरी’ होने का ठप्पा लगा है।डायमंड हार्बर सीट पहले तृणमूल कांग्रेस के बागी नेता सोमेन मित्रा ने जीती थी, जो इस साल के शुरू में इस्तीफा दे कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे।ममता की ‘मां माटी मानुष’ वाली छवि का 26 वर्षीय अभिषेक से कोई मेल नहीं है लेकिन उन्हें ‘दीदी’ के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता है।अभिषेक के अलावा भाजपा के अभिजीत दास, माकपा के अबुल हसनात और कांग्रेस के मोहम्मद कमरुज्जमान कमर सहित कुल 16 प्रत्याशी हुगली नदी के पूर्वी तट की इस सीट से भाग्य आजमा रहे हैं। यहां मतदाताओं की संख्या 13 लाख से अधिक है।अपनी ‘पिशी’ (बुआ) ममता के अलावा तृणमूल के कुछ चर्चित चेहरों में से एक अभिषेक नवगठित तृणमूल युवा के अध्यक्ष भी हैं।तृणमूल कांग्रेस में अभिषेक के कद की उंचाई बढ़ने के साथ-साथ ममता की आलोचना भी बढ़ती गई। तृणमूल प्रमुख पर आरोप है कि वंशवाद की राजनीति की धुर आलोचक ममता अपने बड़े भाई अमित के बेटे को राजनीति में आगे बढ़ा रही हैं। हालांकि अभिषेक अपना पहला चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन उनकी राह आसान नहीं है। डायमंड हार्बर में उन पर ‘बाहरी’ होने का ठप्पा लगा है। अल्पसंख्यकों की करीब 30 फीसदी आबादी वाली इस सीट पर 12 मई को मतदान होगा।वर्ष 1967 से 2009 तक माकपा का गढ़ रही इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में बदलाव की हवा रंग लाई और तृणमूल के टिकट पर सोमेन मित्रा ने 4 बार माकपा के सांसद रहे सामिक लाहिरी को हराया। बहरहाल, इस साल के शुरू में तृणमूल से बगावत कर मित्रा ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए।डायमंड हार्बर सीट 24 परगना जिले में आती है और पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस जिले की विधानसभा सीटों में तृणमूल कांग्रेस की स्थिति लगातार मजबूत होती रही है।इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली सभी 7 विधानसभा सीटें वर्ष 2011 में हुए विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को मिलीं। पिछले साल संपन्न पंचायत चुनावों में भी पार्टी का विजय अभियान बरकरार रहा। (भाषा)