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Last Modified: गुरुवार, 11 अप्रैल 2019 (23:15 IST)

पत्थरबाजी और कांग्रेस का बटन न दब पाने जैसी शिकायतों के बीच जम्मू-कश्मीर में पहले चरण का मतदान संपन्न

पत्थरबाजी और कांग्रेस का बटन न दब पाने जैसी शिकायतों के बीच जम्मू-कश्मीर में पहले चरण का मतदान संपन्न - Lok Sabha elections 2019 First phase voting Jammu and Kashmir
जम्मू। जम्मू कश्मीर के दो संसदीय क्षेत्रों -जम्मू तथा बारामुल्ला-में पत्थरबाजी की कुछ घटनाओं और कई स्थानों पर ईवीएम मशीनों में कांग्रेस के बटन न दब पाने की शिकायतों के बीच पहले चरण का मतदान संपन्न हो गया। हालांकि सबसे कम मतदान सोपोर में हुआ है। पत्थरबाजी में एक महिला भी घायल हो गई। जम्मू-कश्मीर की दो सीटों बारामूला और जम्मू पर मतदान शांतिपूर्ण रहा। जम्मू सीट पर 72.16 प्रतिशत और बारामूला पर 35.01 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया।
 
बारामुला जिले के पल्हालन गांव में मतदान बहिष्कार समर्थकों ने तांत्रे मुहल्ला में बने एक मतदान केंद्र पर पथराव किया। इसमें राजा बेगम पत्नी अब्दुल अजीज गनई नामक एक महिला जख्मी हो गई। उसे उपचार के लिए ट्रामा अस्पताल पट्टन में भर्ती कराया गया है। इस घटना के तुरंत बाद मतदान केंद्र में सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी कर दी गई है। जम्मू लोकसभा क्षेत्र के ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रों में उत्साही मतदाताओं की कतारें देखी गईं, वहीं बारामुल्ला में मतदान अपेक्षाकृत कम हुआ।
 
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर दावा किया कि पुंछ में पोलिंग बूथ पर ईवीएम में कांग्रेस का बटन नहीं दब रहा है। अब्दुल्ला के आरोपों पर पुंछ जिला के मतदान अधिकारी ने कहा कि शाहपुर में एक मशीन में कांग्रेस चिह्न वाला बटन काम नहीं कर रहा था, लेकिन हमारे अधिकारियों ने इस मशीन को तुरंत बदल दिया। एक अन्य पोलिंग बूथ पर बीजेपी का बटन काम नहीं कर रहा था, हमने इसे भी बदल दिया।
 
सीमा से सटे गांवों में शांतिपूर्ण मतदान : पाकिस्तान से सटी 264 किमी लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर व 814 किमी लम्बी एलओसी पर पिछले 15 साल से जारी सीजफायर का सही रूप आज देखने को मिला था। आज सीमा क्षेत्रों में अजीब सी खामोशी तथा निस्तब्दता थी। लेकिन इस खामोशी को पाक सेना की गोलियों के स्वर नहीं तोड़ते थे बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के दौरान मतदान करने वाले भारतीय लोग और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में हिस्सा लेने के लिए आए लोगों को देखती हुई पाकिस्तानी जनता का शोर तोड़ता था। पाकिस्तानी जनता की भीड़ कई स्थानों पर सीमा के उस पार पाकिस्तानी रेंजरों की निगरानी में इस प्रक्रिया को देख रही थी।
 
रणवीर सिंह पुरा, रामगढ़, सांबा आदि के सीमावर्ती गांवों में अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे मतदान केंद्रों पर इस बार खौफ और तनाव नहीं था लेकिन बावजूद इसके कि शत्रु पर भरोसा नहीं किया जा सकता था की सोच रखते हुए सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए थे।
 
हालांकि सीमावर्ती खेत खाली थे क्योंकि कड़ी धूप में भी लोग मतदान केंद्रों की ओर जाने के इच्छुक थे, परंतु कई को उस समय निराश ही लौटना पड़ता था जब वे मतदाता सूचियों में अपना नाम नहीं पाते थे। बिशनाह में सबसे अधिक समस्या यही थी कि लोगों के नाम मतदाता सूचियों में नहीं थे और हिन्दी व उर्दू की मतदाता सूचियां आपस में मेल नहीं खाती थीं।
 
सीमा पर बीएसएफ के जवान लगातार गश्त किए जा रहे थे क्योंकि सामने सीमा पार पाक रेंजरों की गतिविधियों पर नजर रखना आवश्यक था। सिर्फ सीमा पर ही नहीं बल्कि शहरों तथा अन्य गांवों में भी इन चुनावों के लिए तगड़ा सुरक्षा बंदोबस्त किया गया था। ऐसा बंदोबस्त पहली बार देखने को इसलिए मिला था क्योंकि आतंकी चुनाव प्रक्रिया को तहस-नहस करना चाहते थे। स्थान-स्थान पर वाहनों की जांच, सवारियों को वाहनों से उतर कर जांच प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ रहा था। जबकि मजेदार बात यह रही गांवों में किए गए सुरक्षा बंदोबस्त की कि कुछेक गांवों में मतदान का प्रतिशत कम होने से जवान आराम से सुस्ता रहे थे।
 
सुरक्षाबलों तथा सुरक्षा एजेंसियों का अधिक ध्यान और जोर सीमावर्ती क्षेत्रों में ही था क्योंकि वे आशंकित थे कि घुसपैठियों को इस ओर धकेल कर पाकिस्तान चुनावों को क्षति पहुंचा सकता है। यही कारण था कि सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रवेश के दौरान पत्रकारों को भी अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन सीमावर्ती क्षेत्रों के मतदाताओं को बेखौफ होकर मतदान करते हुए देखा गया जो इस बार सीजफायर के जारी रहने से उनका उत्साह बढ़ा हुआ था।
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