नोटबंदी का एक साल पूरा हो गया है। सरकार इसे कालेधन के खिलाफ जीत का अवसर मान रही है तो विपक्ष काला दिवस। इन दोलों दलों से इतर आम हिंदुस्तानी अब भी इस पर अपनी कोई राय कायम नहीं कर पाया है। सरकार के इस बड़े अभियान से क्या फायदा हुआ है और क्या नुकसान, यह सवाल तो उठ ही रहे हैं पर आम आदमी को अपने अंदर घुमड़ रहे कई सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले हैं।
नोटबंदी के बाद जनता को सबसे ज्यादा परेशान किया नोट बंद होने संबंधी अफवाहों ने। सरकार ने 2000 और पांच सौ का नया नोट क्या जारी किया, आम आदमी की परेशानी में इजाफा ही हुआ। सालभर में लगभग हर माह कई बार इसके बंद होने संबंधी अफवाहें उड़ीं। कहा गया कि यह नोट धीरे-धीरे बंद हो जाएंगे। सोशल मीडिया पर तो लोगों ने ज्यादा नोट (2000 और 500) अपने पास नहीं रखने की भी सलाह दे दी। कई जगहों से 2000 के नकली नोट मिलने की बात भी सामने आई तो कई स्थानों पर ठगों ने इस नोट की रंगीन फोटोकॉपी से ही ठगी कर ली।
अभी इस समस्या से लोग निपट ही रहे थे कि 10 के सिक्के बंद होने की अफवाह सामने आ गई। लोगों में हड़कंप मच गया। देखते ही देखते बाजार सिक्कों से पट गए। लोगों ने यह सिक्के लेना बंद करना शुरू कर दिया और खुल्ले पैसों का संकट खड़ा हो गया। सरकार को इस पर सख्त रुख अख्तियार करना पड़ा। कई जिलों में प्रशासन के सिक्के न लेने पर व्यापारियों के खिलाफ कार्रवाई करने संबंधी खबरें भी आईं।
यह मामला अभी थमा ही था कि पांच के नोट बंद होने संबंधी अफवाहें उड़ने लगीं। देखते ही देखते लोगों ने पांच के नोट लेना बंद कर दिया। जो नोट पहले बाजार में कभी अनायास ही दिखाई देता था लोग उसे दुकान-दुकान लेकर भटकते देखे गए।
एक ओर लोग नोट बंद होने की अफवाह से परेशान रहे तो दूसरी तरफ नए नोट 200, 100 और 50 के नए जारी होने संबंधी खबरें भी सोशल मीडिया पर छाई रही। सरकार ने 200 और 50 के नए नोट जारी भी किए। यह नोट जारी करते समय दलील दी गई थी कि इससे नकदी का संकट खत्म हो जाएगा।
हालांकि इसमें एक पेंच भी था। इसे एटीएम के माध्यम से नहीं दिया गया। नतीजा यह रहा है कि देश के कई इलाकों में तो
अब तक यह नोट पहुंचे ही नहीं। कई जगह दावा किया गया कि 200 का नया नोट 230 रुपए में बिक रहा है। 50 रुपए के
नए नोट भी जिसके हाथ लगे उन्होंने उसे घर में ही रख लिया।
अब तक यह नोट पहुंचे ही नहीं। कई जगह दावा किया गया कि 200 का नया नोट 230 रुपए में बिक रहा है। 50 रुपए के
नए नोट भी जिसके हाथ लगे उन्होंने उसे घर में ही रख लिया।
बहरहाल नोटबंदी का एक साल पूरा होने पर यह सवाल उठना भी लाजमी है कि इस साल 2000, 500, 200 और 50 के नए नोट जारी किए गए। हजार और पांच सौ का नोट बंद हुआ। सरकारी खजाना तो भर गया लेकिन आम आदमी तो नए, पुराने
और बंद नोटों के चक्कर में ही उलझ गया।
और बंद नोटों के चक्कर में ही उलझ गया।
नोट के इस खेल में देश का कितना फायदा हुआ? कितना कालाधन व्यवस्था में आया? आर्थिक सुधार के मौर्चो पर उसका क्या असर हुआ? यह सवाल तो अब भी बने ही हुए हैं लेकिन आम आदमी की परेशानी बढ़ी और जीएसटी ने इस परेशानी को और बढ़ाया ही। सरकार द्वारा इसमें निरंतर सुधार का दावा किया जा रहा है, लेकिन क्या यह भी इसी बात का संकेत नहीं कि परेशानी अभी कम नहीं हुई है और इसमें सुधार की काफी गुंजाइश है।