#OneYearofDemonetisation नोटबंदी का एक साल, क्या आपको भी याद आते हैं हजार, पांच सौ के नोट...
मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी लागू किए एक साल हो गया लेकिन आज भी हर खास आम को वह दिन याद आता है। दिवाली गई ही थी कि मोदी सरकार ने अचानक रात में हजार और पांच सौ के नोट बंद करने की घोषणा की थी। देखते ही देखते ही लोग सोना चांदी खरीदने के लिए उमड़ पड़े और इसके दाम आसमान पर पहुंच गए। इसके बाद बैंकों में पुराने नोट बदलवाने के लिए जो आपाधापी हुई, उस मंजर को न तो आम जनता भूल पाई और न ही बैंककर्मी।
दो माह तक तो बैंकों के बाहर लगी कतारें कम ही नहीं हुई। ऊपर से सरकार के नित नए आदेश। गरीबों की अमीरी दिखाने वाली मोदी सरकार ने उन दिनों अमीरों की गरीबी भी दिखा दी। हर किसी को अपने पास जमा नोट बदलवाने की चिंता थी। अब बाजार में बड़े नोट बंद हो गए थे और छोटे नोट गायब।
सरकार ने उस समय दो हजार और पांच के नए नोट जारी किए। अभी यह दोनों ही नोट बाजार में आए ही थे कि दो हजार के नोटों के बंद होने की अफवाह उड़ने लगी। यह कहा जाने लगा कि दो हजार के नोटों को जमा न करें रिजर्व बैंक इन्हें भी बंद करने की तैयारी कर रहा है।
सब काम ठप, पैसों की तंगी और डिजिटल लेन-देन को बढ़ावे की वजह से मानों करोड़ों लोगों के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया। किसी के घर शादी थी, तो कही बीमारी हर तरफ परेशानी ही परेशानी थी। इस वजह से देश में कारोबारियों को बड़ा नुकसान हुआ।
कुछ लोगों ने नोटबंदी के अवसर का भरपूर फायदा उठाया। उन्होंने जुगाड़ कर अपने काले धन को सफेद कर लिया। तो कुछ लोगों अपने सफेद धन को भी नहीं बदलवा सके। रातों रात लोगों के खातों में लक्ष्मीजी की कृपा हो गई और ढूंढ-ढूंढकर उन्हें हजार पांच सौ के बड़े नोट थमा दिए गए। बड़ी संख्या में पुराने नोटों की जब्ती की गई। मोदी ने भी लोगों से अपील की कि जो भी उन्हें पैसे देने आए लेले और फिर उन्हें वापस न लौटाए। हालांकि अभी भी कई लोगों के पास हजार, पांच सौ पुराने नोट है। वह इसे बदलवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं।
मोदी सरकार ने नोटबंदी को सफल करार दिया। यह भी दावा किया गया कि इस कदम से आतंकवाद, भ्रष्टाचार और काले धन पर लगाम कसी गई। लेकिन रघुराम राजन जैसे सरकार से जुड़े कई अर्थशास्त्रियों ने इस पर सवाल उठाए। विपक्ष ने भी मौके का पूरा फायदा उठाया और सरकार को इस पर घेरने का प्रयास किया।
बहरहाल नोटबंदी के बाद जीएसटी ने भी लोगों को बड़ा झटका दिया। इस पर वैश्विक और घरेलू रेटिंग एजेंसियों का कहना है कि नोटबंदी का भारतीय अर्थव्यस्था पर नकारात्मक असर अल्पकालिक है। सरकार की तरफ से भी यह कहा गया कि दीर्घावधि में अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर इससे अच्छे परिणाम आएंगे। हाल ही में विश्व बैंक की रिपोर्ट में भी इस बात के संकेत मिले।
नोटबंदी का एक फायदा यह भी रहा कि इससे देश में ऑनलाइन लेन-देन बढ़ गया। सूचना प्रोद्यौगिकी मंत्रालय के मुताबिक इस साल अक्टूबर तक डिजिटल ट्रांजैक्शन की वैल्यू 1000 करोड़ रही, जोकि पिछले वित्तीय वर्ष यानी 2016-17 की कुल राशि के बराबर रही।
भाजपा और सरकार अब नोटबंदी के एक साल पर जश्न की तैयारी कर रही है। इसके माध्यम से लोगों तक यह बात पहुंचाई जाएगी कि नोटबंदी से देश को बहुत फायदा हुआ। अब देखना यह है कि उस दौर में भारी परेशानियां झेलने वाले सरकार के इस तर्क से सहमत होंगे। नोटबंदी के जश्न के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहकर लोगों की दुखती रगों पर भी हाथ रख दिया है कि नोटबंदी से वहीं दुखी है जिनके पास बोरे भरकर पैसे रखे थे।
गुजरात चुनाव से पहले जिस तरह से नोटबंदी के जश्न की तैयारी की जा रही है उससे साफ है कि मोदीजी और अमित शाह इस मामले को जनता की अदालत में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं। लोकतंत्र में जनता का फैसला ही अंतिम होता है।