देहरादून। अंकिता हत्याकांड की जांच पूरी कर 500 पेज की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की गई है। चार्जशीट दाखिल होने और हाईकोर्ट के सीबीआई जांच की मांग ख़ारिज करने के बाद भी अंकिता हत्याकांड की जांच में हीलाहवाली का मामला शांत हो नहीं रहा।राजनीतिक दलों ने इसकी उच्चस्तरीय जांच की मांग करनी अभी नहीं छोड़ी।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री जरूर इस कांड की उच्चस्तरीय मांग खारिज करने के हाईकोर्ट के आदेश से राहत में हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसकी मांग को लेकर बीते सोमवार को धरना दिया। दाखिल चार्जशीट में कहा गया है कि इस पूरे प्रकरण में 3 ही आरोपी हैं। ये हैं भाजपा के तत्कालीन नेता और पूर्व दायित्वधारी राज्यमंत्री विनोद आर्य का बेटा व रिजॉर्ट का मालिक पुलकित आर्य, उसका दोस्त रिजॉर्ट का सहायक प्रबंधक सूरज नगर ज्वालापुर हरिद्वार का सौरभ भास्कर, पुत्र शक्ति भास्कर और ज्वालापुर का ही अंकित उर्फ पुलकित गुप्ता।
तीनों पहले से ही गिरफ्तार हैं।तीनों का पहले से आपराधिक इतिहास रहा है। उन पर गैंगस्टर एक्ट और धारा 420 जैसे मुकदमे दर्ज हैं। इन तीनों के अलावा किसी का कोई हाथ इस केस में नहीं है। इस पूरी जांच और 500 पेज की चार्जशीट का कुल जमा निचोड़ ये था कि इस पूरे प्रकरण में कोई वीआईपी शामिल ही नहीं था। हालांकि नार्को टेस्ट को लेकर अब इंवेस्टिगेशन जारी रहने की बात भी कही गई है।नार्को टेस्ट से तीनों आरोपी मुकर रहे हैं, मामला अदालत की सुनवाई में है।
उत्तराखंड महिला मंच की पहल पर अंकिता भंडारी हत्याकांड की तह तक पहुंचने के लिए देशभर में प्रमुख महिलावादी संगठनों की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पिछले दिनों इस मामले में सभी घटनास्थलों पर जाकर फैक्ट कलेक्ट कर कहा कि एसआईटी की जांच संदिग्ध है, यह जांच सिर्फ लीपापोती है, इसलिए उच्चस्तरीय जांच जरूरी है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बहुचर्चित अंकिता हत्याकांड की सीबीआई जांच कराने की मांग को लेकर बीते सोमवार को देहरादून के गांधी पार्क में धरना दिया।
हरीश रावत ने कहा कि सरकार की ओर से वीआईपी को लेकर दिया गया बयान भविष्य में संबंधित मुकदमे और दंड प्रक्रिया में बाधा बन सकता है। हरीश रावत ने कहा कि वनंतरा प्रकरण में बेटी को न्याय मिलना चाहिए। वनंतरा रिसॉर्ट में वीआईपी को लेकर सरकार के मंत्री का जो बयान आगे आया है वह भविष्य में मुकदमे को प्रभावित कर सकता है।
वनंतरा रिसॉर्ट की कर्मचारी के रूप में तैनात रही अंकिता ने अपनी वाट्सएप चेटिंग में साफ कहा है कि उस पर वीआईपी को स्पेशल सर्विस देने के लिए दबाव था। इस प्रकरण को लेकर उत्तराखंड की जनता में अभी भी कई तरह के संदेह हैं। इसमें वीआईपी की उपस्थिति गंभीर मामला है।इसका पता लगाना अंकिता को न्याय देने को जरूरी है। हरीश रावत का आरोप है कि इस पूरे मामले में सरकार लापरवाही बरत रही है।
ऋषिकेश के गंगा भोगपुर स्थित पूर्व भाजपा नेता और दायित्वधारी के वनंतरा रिजॉर्ट में अंकिता भंडारी रिसेप्शनिस्ट थी।रिजॉर्ट के मालिक पुलकित आर्य और उसके अन्य 2 साथियों ने 18 सितंबर की रात चीला नहर में फेंककर अंकिता भंडारी की हत्या इसलिए कर कर दी थी क्योंकि वह रिजॉर्ट में आने वाले किसी ख़ास मेहमान को विशेष सेवा देने को राजी नहीं हुई थी। रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट अंकिता की हत्या की इस घटना ने पूरे उत्तराखंड को हिलाकर रख दिया था।
इस पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराए जाने की मांग उठती रही। कुछ लोग हाईकोर्ट उत्तराखंड में भी इस मांग को लेकर याचिका के साथ गए, लेकिन हाईकोर्ट ने एसटीएफ की जांच पर भरोसा जताते हुए इसे खारिज कर दिया। लेकिन राज्य के तमाम राजनीतिक दल अब भी इस मामले को लेकर सरकार पर हमलावर हैं और निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं।
इसी कारण पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अपने तमाम समर्थकों के साथ राजधानी देहरादून के गांधी पार्क में धरने पर बैठकर कह रहे हैं कि महिला सुरक्षा में प्रदेश पूरी तरह से संतुलन खो चुका है। राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि अंकिता भंडारी हत्याकांड में साक्ष्यों को छुपाने की भी कोशिश की गई है जो जगजाहिर है।
हरीश रावत के इस धरने पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इसे लेकर न्यायालय के निर्देश के तहत काम किए जाने की दुहाई दे रहे हैं।बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट तो यहां तक कह रहे हैं कि हरीश रावत जैसे व्यक्ति को इस तरह से न्यायालय के खिलाफ धरना नहीं देना चाहिए। हरीश रावत वरिष्ठ नेता हैं और उनके पास कोई मुद्दा नहीं बचा है।
अंकिता मर्डर केस की जांच कर रही एसआईटी को इस मामले में किसी वीआईपी की संलिप्तता नहीं मिली। इस बात की आशंका कई आंदोलनकारी पहले ही व्यक्त कर रहे थे। एसआईटी उस वीआईपी का नाम नहीं मालूम कर पाई, जिसके लिए अंकिता को स्पेशल सर्विस देने के लिए कहा जा रहा था और अंकिता के मना करने पर उसकी हत्या कर दी गई थी।
इस मामले को लेकर उद्वेलित लोगों का कहना है कि एसआईटी ने इस बारे में भी जांच नहीं की कि जिस कमरे में अंकिता रहती थी, घटना के बाद उस कमरे पर बुलडोजर क्यों चलाया गया, एसआईटी ने संभवतः यह भी जांच नहीं कि अवैध रूप से चलने वाले इस रिजॉर्ट को साथ की जिस आयुर्वेदिक फैक्टरी की आड़ में चलाया जा रहा था, उसमें पुलिस के कड़े पहरे और वहां तक किसी की आवाजाही न होने के बावजूद आग कैसे लगी?
एसआईटी ने यह भी जांच नहीं की कि स्थानीय विधायक इस मामले में लगातार सबूत नष्ट करने का प्रयास क्यों कर रही थी? खैर, जब राज्य के कैबिनेट मंत्री खुद आरोपियों का जैसा बयान दे चुके हों कि वीआईपी कोई व्यक्ति नहीं कमरा है, तो फिर एसआईटी से कोई ज्यादा उम्मीद भी नहीं की जानी चाहिए।अंकिता की हत्या के तुरंत बाद जिस तरह से सबूत नष्ट करने का प्रयास किया गया और पुलिस ने कुछ नहीं किया।
जिस तरह से विनोद आर्य को मुकदमे में नामजद नहीं किया गया, उससे साफ हो गया था कि पुलिस इस मामले में लीपापोती ही करने वाली है। हालांकि एसआईटी का गठन कर मामले की जांच करने का भी उपक्रम किया गया, लेकिन पहाड़ का जनमानस पहले दिन से ही एसआईटी की जांच से संतुष्ट नहीं था। पहले दिन से लोगों के मन में यह आशंका घर कर गई थी कि साक्ष्य नष्ट करने में मदद करने वाली पुलिस जांच में लीपापोती करेगी।
इसीलिए पहले ही दिन से इस मामले में हाईकोर्ट के सीटिंग जज की देखरेख में सीबीआई जांच करवाने की मांग की जा रही थी। इस मांग को लेकर राज्यभर में धरने-प्रदर्शन और बंद भी हुआ था और अंकिता के माता-पिता इस मामले को लेकर हाईकोर्ट भी गए हैं। हाईकोर्ट ने पुलिस पर तल्ख टिप्पणियां भी की हैं।
लेकिन इस सबके बावजूद हाईकोर्ट ने इसकी सीबीआई से जांच के लिए की गई याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उत्तराखंड महिला मंच की पहल पर अंकिता भंडारी हत्याकांड की तह तक पहुंचने के लिए देशभर में प्रमुख महिलावादी संगठनों की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पिछले दिनों इस मामले में सभी घटनास्थलों में जाकर फैक्ट कलेक्ट कर कहा कि एसआईटी की जांच संदिग्ध है, यह जांच सिर्फ लीपापोती है, इसलिए उच्चस्तरीय जांच जरूरी है।
अंकिता मर्डर केस की जांच कर रही एसआईटी को इस मामले में किसी वीआईपी की संलिप्तता नहीं मिली। लेकिन इस सबके बावजूद भी हाईकोर्ट ने भी इसकी सीबीआई से जांच के लिए की गई याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि एसआईटी जांच ठीक ढंग से हो रही है। अंकिता भंडारी के पिता ने अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की शरण लेने की बात कही है।
Edited By : Chetan Gour