डीपफेक है Baby Doll Archi? AI इंजीनियर ने प्रेमिका से इंतकाम लेने के लिए बना दिया इंटरनेशनल पोर्न स्टार
is babydoll archie real or fake: सोशल मीडिया की दुनिया में हर दिन कुछ नया वायरल होता है, और इन दिनों 'बेबी डॉल आर्ची' नाम की एक इंफ्लूएंसर खूब चर्चा में है। अर्चिता फुकन नाम की इस ग्लैमरस बाला की तस्वीरें और ट्रांसफॉर्मेशनल वीडियो तेजी से लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। लेकिन, हाल ही में 'बेबी डॉल आर्ची की एक चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई है: 'बेबी डॉल आर्ची' असली नहीं, बल्कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से बनी एक मॉडल है। यह मामला डीपफेक तकनीक के बढ़ते खतरों, अपराधों और डिजिटल पहचान के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े करता है। आइए, इस पूरे माजरे को समझते हैं और जानते हैं कि डीपफेक कैसे तैयार होता है।
कौन है 'बेबी डॉल आर्ची' और क्या है यह विवाद?
'बेबी डॉल आर्ची' नाम का इंस्टाग्राम अकाउंट रातों-रात वायरल हो गया था, खासकर एक वीडियो के बाद जिसमें वह 'डेम अन ग्र्र' गाने पर लिप-सिंक कर रही थीं। इसके बाद अमेरिकी एडल्ट स्टार केंड्रा लस्ट के साथ उनकी एक तस्वीर भी वायरल हुई, जिससे उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई। दावा किया गया था कि 'बेबी डॉल आर्ची' का असली नाम अर्चिता फुकन है और वह असम से ताल्लुक रखती हैं। उनके अकाउंट पर 1.4 मिलियन से अधिक फॉलोअर्स हो गए थे।
लेकिन, जल्द ही यह खुलासा हुआ कि 'बेबी डॉल आर्ची' नाम की कोई असली व्यक्ति नहीं है। असम पुलिस ने इस मामले में एक व्यक्ति, प्रतीक बोरा को गिरफ्तार किया है, जिसने अपनी पूर्व प्रेमिका की एक तस्वीर का इस्तेमाल करके AI से 'बेबी डॉल आर्ची' की कई तस्वीरें और वीडियो बनाए थे। पुलिस के अनुसार, यह रिवेंज पोर्न और आर्थिक लाभ कमाने के इरादे से किया गया था। यानी, जो तस्वीरें और वीडियो इंटरनेट पर छाए हुए थे, वे सभी डीपफेक थे, और 'बेबी डॉल आर्ची' सिर्फ़ एक डिजिटल फैब्रिकेशन थी। बेबीडॉल आर्ची अकाउंट, अगस्त 2020 में बनाया गया था। इस पर 14 जुलाई तक 13 लाख से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स थे। यह अकाउंट अभी भी काम कर रहा है।
असम की इस लड़की की पहचान और प्राइवेसी को ध्यान में रखते हुए, वेबदुनिया उसके नाम का इस्तेमाल नहीं कर रहा है और तस्वीरों में चेहरो को ब्लर किया गया है।
डीपफेक क्या है और यह कैसे बनता है?
डीपफेक (Deepfake) एक ऐसी तकनीक है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, विशेष रूप से डीप लर्निंग (Deep Learning) का उपयोग करके वास्तविक दिखने वाले वीडियो, ऑडियो या तस्वीरें बनाती है, जिनमें व्यक्ति को कुछ ऐसा कहते या करते हुए दिखाया जाता है जो उसने वास्तव में नहीं किया होता। यह नाम 'डीप लर्निंग' और 'फेक' (नकली) शब्दों से मिलकर बना है।
डीपफेक बनाने के लिए मुख्य रूप से जेनरेटिव एडवरसैरियल नेटवर्क (GANs) नामक AI मॉडल का उपयोग किया जाता है। इसमें दो न्यूरल नेटवर्क होते हैं:
1. जनरेटर (Generator): यह नकली सामग्री (जैसे छवि या वीडियो) बनाता है।
2. डिस्क्रिमिनेटर (Discriminator): यह जनरेटर द्वारा बनाई गई सामग्री को असली और नकली के बीच अंतर करने की कोशिश करता है।
यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक जनरेटर इतनी यथार्थवादी सामग्री नहीं बना लेता जिसे डिस्क्रिमिनेटर भी असली से अलग नहीं कर पाता। 'बेबी डॉल आर्ची' के मामले में, आरोपी ने एक असली महिला की केवल एक तस्वीर का उपयोग करके AI सॉफ्टवेयर की मदद से उसकी morphed और AI-generated सामग्री बनाई। इसमें चेहरे की विशेषताओं, हाव-भाव और यहां तक कि आवाज को भी बदला जा सकता है, जिससे यह बेहद विश्वसनीय लगता है।
असली फोटो से AI मॉडल और खतरे
'बेबी डॉल आर्ची' का मामला इस बात का एक गंभीर उदाहरण है कि कैसे महिलाओं की असली तस्वीरों का दुरुपयोग करके AI मॉडल बनाए जा रहे हैं। यह तकनीक कई गंभीर खतरे पैदा करती है:
• निजता का उल्लंघन: बिना सहमति के किसी की तस्वीर का उपयोग करना निजता का घोर उल्लंघन है।
• मानहानि और उत्पीड़न: डीपफेक का उपयोग किसी व्यक्ति की छवि खराब करने, उसे परेशान करने या झूठी जानकारी फैलाने के लिए किया जा सकता है।
• रिवेंज पोर्न: यह तकनीक रिवेंज पोर्न बनाने में इस्तेमाल हो सकती है, जिससे पीड़ितों को गंभीर मनोवैज्ञानिक आघात पहुँचता है।
• पहचान का संकट: जब असली और नकली के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है, तो डिजिटल पहचान पर ही सवाल उठने लगते हैं।
यह समय है जब हम AI के चमत्कारों का स्वागत करते हुए भी उसके संभावित खतरों के प्रति जागरूक रहें। 'बेबी डॉल आर्ची' जैसी घटनाएँ हमें याद दिलाती हैं कि डिजिटल दुनिया में अपनी और दूसरों की पहचान की सुरक्षा करना कितना महत्वपूर्ण है।