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Last Modified: शनिवार, 1 अक्टूबर 2022 (20:16 IST)

कैसे 6ठी बार सफाई का सिरमोर बना Indore? पढ़िए क्या है सफलता के पीछे की कहानी

कैसे 6ठी बार सफाई का सिरमोर बना Indore? पढ़िए क्या है सफलता के पीछे की कहानी - Indore retains cleanest city tag for 6th time in government survey
इंदौर। केंद्र सरकार के स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर के लगातार छठी बार देश भर में अव्वल रहने की सिलसिलेवार कामयाबी हर रोज औसतन 1,900 टन कचरे को हर दरवाजे से 6 श्रेणियों में अलग-अलग जमा करने और इसका सुरक्षित निपटान के मजबूत मॉडल पर टिकी है।
 
2022 के इस सर्वेक्षण में अलग-अलग श्रेणियों में कुल 4,355 शहरों के बीच टक्कर थी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मौजूदगी में दिल्ली में शनिवार को आयोजित कार्यक्रम में इंदौर को 1 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की श्रेणी में फिर सिरमौर घोषित किया गया।
 
कचरे से करोड़ों की कमाई : इंदौर नगर निगम (आईएमसी) के अधिकारियों ने बताया कि अपशिष्ट की प्राथमिक स्रोत पर ही सुव्यवस्थित छंटाई से मध्यप्रदेश का यह सबसे बड़ा शहर न केवल स्वच्छ बना रहता है और आबो-हवा सुरक्षित रहती है, बल्कि यह 'कीमती' कचरा शहरी निकाय को करोड़ों रुपये की कमाई भी करा रहा है।
 
उन्होंने बताया कि ‘कचरा पेटी मुक्त शहर' की 35 लाख की आबादी औसत आधार पर हर रोज तकरीबन 1,200 टन सूखा कचरा और 700 टन गीला कचरा उत्पन्न करती है।
 
आईएमसी की स्वच्छता इकाई के अधीक्षण इंजीनियर महेश शर्मा ने बताया कि शहर भर में लगातार चलने वाली 850 गाड़ियों की मदद से हम लगभग हर घर एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान के दरवाजे से गीला और सूखा कचरा छह श्रेणियों में अलग-अलग जमा करते हैं। इन गाड़ियों में बनाए गए विशेष कम्पार्टमेंट में डायपर और सैनिटरी नैपकिन जैसे जैव अपशिष्ट भी अलग से एकत्र किए जाते हैं।
 
उन्होंने कहा कि प्राथमिक स्रोत पर ही कचरे को अलग-अलग जमा करने से प्रसंस्करण के लिए इसकी गुणवत्ता उत्तम रहती है।
 
कचरे से सीएनजी : शर्मा ने बताया कि शहरी क्षेत्र से निकलने वाले गीले कचरे से बायो-सीएनजी बनाने का एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र लगाने के बाद इंदौर ने देश के अन्य शहरों को सफाई के मुकाबले में काफी पीछे छोड़ दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 फरवरी को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए आयोजित कार्यक्रम में 150 करोड़ रुपये की लागत से बने इस ‘गोबर-धन’ संयंत्र को लोकार्पित किया था और विश्व बैंक भी इस इकाई का अध्ययन कर रहा है।
 
अधिकारियों ने बताया कि शहर के देवगुराड़िया ट्रेंचिंग ग्राउंड पर 15 एकड़ पर सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के आधार पर एक कम्पनी द्वारा चलाया जा रहा संयंत्र हर दिन 550 टन गीले कचरे (फल-सब्जियों और कच्चे मांस का अपशिष्ट, बचा या बासी भोजन, पेड़-पौधों की हरी पत्तियों, ताजा फूलों का कचरा आदि) से 17,000 से 18,000 किलोग्राम बायो-सीएनजी और 100 टन जैविक खाद बना सकता है।
 
अधिकारियों के मुताबिक इस संयंत्र में बनी बायो-सीएनजी से 150 सिटी बसें चलाई जा रही हैं जो निजी कम्पनी द्वारा शहरी निकाय को सामान्य सीएनजी की प्रचलित बाजार दर से पांच रुपये प्रति किलोग्राम कम दाम पर बेची जाती है। इस बीच कचरे से होने वाली कमाई से आईएमसी का खजाना लगातार बढ़ रहा है।
आईएमसी के अधीक्षण अभियंता महेश शर्मा ने बताया कि पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 में शहरी निकाय को कचरे से अलग-अलग स्रोतों से करीब 14.50 करोड़ रुपये की आय हुई थी। शर्मा के मुताबिक इस आय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कार्बन क्रेडिट बेचने से मिले 8.5 करोड़ रुपये और बायो-सीएनजी संयंत्र को कचरा मुहैया कराने के बदले शहरी निकाय को निजी कम्पनी द्वारा दिया जाने वाला 2.52 करोड़ रुपए का सालाना प्रीमियम शामिल है।
 
अधीक्षण अभियंता ने बताया कि जारी वित्तीय वर्ष में कचरे से आईएमसी की कमाई बढ़कर 20 करोड़ रुपये पहुंच सकती है। उन्होंने बताया कि लगभग 8,500 'सफाई मित्र' (सफाई कर्मी) तीन पालियों में सुबह छह बजे से तड़के चार बजे तक लगातार काम करते हुए शहर को चकाचक रखते हैं।
 
आईएमसी के उद्यान अधिकारी चेतन पाटिल ने बताया कि शहर में निकलने वाले गंदे पानी का विशेष संयंत्रों में उपचार किया जाता है और इसका 200 सार्वजनिक बगीचों के साथ ही खेतों और निर्माण गतिविधियों में दोबारा इस्तेमाल किया जा रहा है। (भाषा) (Edited by Sudhir Sharma) 
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