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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : मंगलवार, 21 मार्च 2023 (19:24 IST)

Cover Story: बाबाओं को राजनीति पसंद है, नेताओं को धर्म की राजनीति पसंद है!

बागेश्वर धाम सरकार की नई हुंकार, हिंदू राष्ट्र के लिए बयानबाजी नहीं कुछ करके बताना होगा

Cover Story: बाबाओं को राजनीति पसंद है, नेताओं को धर्म की राजनीति पसंद है! - Cover Story: A cocktail of religion and politics in India
कब तक हिंदू राष्ट्र को लेकर बयानबाजी करेंगे। कब तक हम बोलेंगे, कब तक यह चलेगा कि हिंदू राष्ट्र हो। अब घर से निकलकर भारतीय हिंदूओं को बताना पड़ेगा, घर से बाहर निकलना पड़ेगा, कुछ करके बताना पड़ेगा तभी कुछ काम होगा। अब हम इसी उदेश्य पर आ गए है कि हम कुछ करके बताएंगे।
यह किसी नेता का चुनाव भाषण नहीं बल्कि लाखों लोगों को आस्था के केंद्र और भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मुहिम छेड़ने वाले बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का रविवार को मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में दिया गया बयान है। अब तक अपने मंच से हिंदू राष्ट्र को लेकर बयान देने वाले पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री अब भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए इशारों ही इशारों में सड़क पर उतरने का एलान कर रहे है।

दरअसल इन दिनों आस्था के केंद्र में रहने वाले पीठाधीश्वर,धर्मगुरु और कथावाचक धर्म-संस्कृति से अधिक राजनीति में दिलचस्पी ले रहे है। कहना गलत नहीं होगा कि आज धर्म के सहारे करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र में रहने वाले पीठाधीश्वर, धर्म से अधिक राजनीति के रंग में नजर आ रहे है। आज भारतीय संविधान में उल्लेखित धर्मनिरपेक्ष (पंथनिरपेक्ष) की अवधारणा को ताक पर रखकर डंके की चोट पर धार्मिक मंचों से हिंदू राष्ट्र बनाने की मुहिम चल रही है।

भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मुहिम में सनातन धर्म का झंड़ा उठाने वाले पंडित धीरेंद्र शास्त्री सिर्फ एक अकेला नाम नहीं है। मशूहर कथावाचक राजन महाराज भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मुहिम का समर्थन करते हुए कहते हैं कि हिंदुस्तान हिंदू राष्ट्र नहीं बनेगा तो क्या पकिस्तान बनेगा। वहीं मशूहर कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा और पंडोखर सरकार भी भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मुहिम का समर्थन करते है।  

भारत के इतिहास में धर्म और राजनीति दोनों सदियों से व्यक्ति और समाज पर गहरा प्रभाव डालते आए है। आजादी के बाद के अगर इतिहास के पन्नों को पलटे तो साफ पता चलता है कि धार्मिक केंद्र राजनीतिक सत्ता के केंद्रों के तौर पर कार्य करते आए है। वहीं आज जहां एक ओर देश में एक ओर दक्षिण से लेकर उत्तर के कई राज्यों में मठ-मंदिर सत्ता के शक्तिशाली केंद्र के रूप में नजर आते है तो दूसरी ओर इनके पीठाधीश्वर को राजनीति में खूब पंसद आ रही है।   

भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मुहिम भले ही इन दिनों धर्मगुरु चलाते हुए दिख रहे हो लेकिन भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) का एक प्रमुख एजेंडा रहा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत कहते हैं कि सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र है और अगले 15-20 में अखंड भारत बनेगा।  

धर्म और राजनीति का कॉकटेल!-ऐसे में आज जब धर्म और राजनीति दोनों में गिरावट का संक्रमण काल चल रहा है, तब जहां राजनीतिक दल के नेता धर्मगुरु के दर पर मात्था ठेकने पुहंच रहे है वहीं बाबा और कथावचक भी खुले मंच से नेताओं का गुणगान कर रहे है। पिछले दिनों बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने जिस तरह से अपने मंच से मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार की योजना का बखान करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपने अंदाज में थैंक्यू बोला, वह इसकी एक बानगी है।

अगर देखा जाए तो धर्म में राजनीति की गुंजाइश नहीं होती है लेकिन आज के दौर में जिस तरह से धार्मिक मंचों का उपयोग राजनीतिक दल के नेता अपनी सियासत चमकाने के लिए कर रहे है वह किसी से छिपा नहीं है। दरअसल धर्मिक मंचों से राजनीति कर नेता सीधे तौर पर वोटरों को प्रभावित कर रहे है और धर्म के सहारे सत्ता को हासिल करने के साथ सत्ता अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखना चाह रहे है।

पिछले दिनों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ दोनों ही बागेश्वर धाम पहुंचे है बागेश्वर धाम का आशीर्वाद लिया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंच से अपनी सरकार की चुनाव साल में की लाड़ली बहना योजना का खूब प्रचार-प्रसार किया।

धर्म और धर्म से जुड़े मामलों में राजनीतिक दलों के बढ़ते दखल को शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद गलत बताते है। वह कहते हैं कि राजनीतिक दल और उसके नेता धर्म के नाम पर राजनीति कर रहे हैं जो गलत है। राजनीतिक दलों को केवल राजनीतिक मुद्दों पर बयानबाजी करनी चाहिए न कि धर्म पर।

भारत के सियासी इतिहास में 90 के दशक से राजनीतिक सत्ता पर धर्मिक सत्ता के हावी होने का जो प्रभाव देखा गया था वह आज अपने चरम काल पर है। चुनाव में धर्म के सहारे राजनीतिक दल वोटरों के ध्रुवीकरण कर सत्ता पर काबिज होने की पूरी कोशिश कर रहे है। यहीं कारण है कि चुनाव से पहले कथाओं और अनुष्ठानों पर लाखों-करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे है। आज राजनीति के भीतर धर्म के बढ़ते दखल ने धर्म और राजनीति दोनों को मूल्यों में गिरावट ला दी है।