• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. China will have to bear the consequences of showing aggression
Written By
Last Updated : गुरुवार, 23 जुलाई 2020 (08:22 IST)

चीन को गलत जगहों पर अपनी आक्रामकता दिखाने का अंजाम भुगतना पड़ेगा

चीन को गलत जगहों पर अपनी आक्रामकता दिखाने का अंजाम भुगतना पड़ेगा - China will have to bear the consequences of showing aggression
नई दिल्ली। रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ सी. राजामोहन का मानना है कि चीन को पूर्वी लद्दाख और एशिया के अन्य हिस्सों जैसी गलत जगहों पर अपनी आक्रमकता दिखाने का अंजाम भुगतना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि चीन की दुस्साहसपूर्ण गतिविधियां उन पड़ोसी देशों में ‘राष्ट्रवादी जवाबी-प्रतिक्रिया’ पैदा कर सकती है, जो वर्चस्व स्थापित करने की किसी कोशिश को स्वीकार नहीं करेंगे।
 
सिंगापुर में एक प्रतिष्ठित अध्ययन संस्थान का नेतृत्व कर रहे प्रो. सी राजामोहन ने यह भी कहा कि पूर्वी लद्दाख में चीन की दुस्साहसपूर्ण गतिविधियों तथा कहीं अधिक जमीन हथियाने की उसकी अस्वीकार्य लालसा ने उसके साथ भारत के संबंधों को बुनियादी स्तर पर नए सिरे से निर्धारित करने की परिस्थितियां पैदा की हैं और परस्पर विश्वास बहाली की तीन दशकों की कोशिशों को नुकसान पहुंचाया है।
 
चीन, दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में भी समान रूप से आक्रामक रहा है तथा वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलिपीन और मलेशिया जैसे देशों के लिए संकट की स्थिति पैदा की है। प्रो. राजामोहन ने कहा कि चीन गलत जगहों पर अपनी आक्रामकता दिखाने का अंजाम भुगतेगा क्योंकि यह क्षेत्र में शक्ति को पुर्नसंतुलित करने की मुहिम सहित ‘राष्ट्रवादी जवाबी प्रतिक्रियाएं’ शुरू कर सकती है।
उन्होंने कहा, ‘हम यह देखने जा रहे हैं कि शेष विश्व किसी एक शक्ति के वर्चस्व को कहीं से भी स्वीकार नहीं करेगा।’ उन्होंने सिंगापुर से टेलीफोन पर दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन ने एशिया में राष्ट्रवाद के स्वभाव का बुनियादी रूप से गलत आकलन किया है। एशिया में ज्यादातर देश राष्ट्रवादी हैं, भारत राष्ट्रवादी है। समूचे दक्षिण पूर्व एशिया में राष्ट्रवाद की मजबूत भावना है।’
 
प्रो. राजामोहन ने कहा, ‘एक राष्ट्र की इच्छा को दूसरों पर थोपे जाने की कोशिश का उलट नतीजा निकलने जा रहा है क्योंकि चीन जैसे ज्यादातर एशियाई देशों ने औपनिवेशिक शक्तियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। इसलिए वे एशिया में किसी नयी शक्ति के वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश स्वीकार नहीं करने जा रहे हैं।’ रणनीतिक मामलों के प्रख्यात विशेषज्ञ राजामोहन अभी राष्ट्रीय विश्वविद्यालय सिंगापुर में एशियाई अध्ययन संस्थान के निदेशक के तौर पर सेवा दे रहे हैं।
 
उन्होंने कहा कि चीन अपने आक्रामक व्यवहार से विभिन्न देशों को अमेरिका के नजदीक ला रहा है। बीजिंग को रोकने के लिए शेष विश्व का प्रतिरोध होगा क्योंकि वैश्विक समुदाय एक शक्ति के वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश यूं ही स्वीकार नहीं कर सकता।
 
उन्होंने कहा, ‘चीन ने जो कुछ किया है उसने ज्यादातर देशों को अमेरिका की ओर अग्रसर किया है। हालांकि, ए देश अमेरिका के पास जाने में हिचकते थे, या ऐसा करने को अनिच्छुक थे। चीन अपने कई पड़ोसी देशों को अमेरिका के साथ रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग सहित मजबूत संबंध बनाने के लिए विवश कर रहा है।’
 
प्रो. राजामोहन ने कहा, ‘इस तरह उसके कार्यों का प्रभाव उसके लिए ही नुकसानदेह है, भले ही क्यों न चीन अपने दृष्टिकोण से इसे विशुद्ध रूप से एक विश्लेषणात्मक चीज के रूप में देख रहा हो। इसलिए मेरा मानना है कि चीन के अंदर भी, मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूं कि ऐसे लोग हैं जो इसे गलत आकलन के रूप में देख रहे हैं और गैर जरूरी गतिविधि की कीमत चीन को चुकानी पड़ेगी।’
 
उन्होंने कहा कि गलवान घाटी में झड़प सहित पूर्वी लद्दाख में चीन की दुस्साहसपूर्ण गतिविधयों का प्राथमिक प्रभाव भारत-चीन संबंधों को सामान्य बनाने की तीन दशकों की कोशिशों पर पड़ा है। ये कोशिशें 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चीन यात्रा से और इसके बाद अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाने से शुरू हुईं थी।
उल्लेखनीय है कि गलवान घाटी में 15 जून को भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैन्यकर्मी शहीद हो गए थे। प्रो. राजामोहन ने कहा, ‘लेकिन सीमा को बदलने की एकतरफा कोशिश कर और लद्दाख सीमांत तथा अन्य स्थानों पर आक्रामक रुख अख्तियार कर चीन ने भारतीय लोगों द्वारा बीजिंग में विकसित किए जा रहे विश्वास को नाटकीय ढंग से नुकसान पहुंचा दिया और इसने संबंधों को बुनियादी स्तर पर नए सिरे से निर्धारित करने के लिए परिस्थितियां पैदा कर दी हैं।’
 
उन्होंने कहा, ‘क्षेत्र में चीन भले ही कुछ जमीन हथिया ले, लेकिन उसने भारतीय जनमानस में चीन के प्रति क्रमिक रूप से बन रही सद्भावना और भारत के साथ आर्थिक सहयोग के व्यापक फायदों को तिलांजलि दे दी है।’
 
गौरतलब है कि पिछले महीने एक साक्षात्कार में चीनी राजदूत सुन वेइदोंग ने इन सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया था कि ‘ऐसे समय जब विश्व कोविड-19 महामारी से लड़ रहा है, चीन इस तरह का आक्रामक सैन्य व्यवहार क्यों अपना रहा है और सैनिकों को भारी तादाद में तैनात करने के पीछे क्या मकसद है और गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर नृशंस हमला क्यों किया?’
 
चीनी राजदूत से यह भी पूछा गया था कि क्या चीन गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर हुए हमले में शामिल अपने सैनिकों को दंडित करेगा, चीन के कितने सैनिक इस झड़प में हताहत हुए, चीन पैंगोंग सो में फिंगर 4 से लेकर फिंगर 8 इलाकों में भारतीय सैनिकों को गश्त करने की इजाजत क्यों नहीं दे रहा है, और क्या उसे नहीं लगता कि सीमा गतिरोध का दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा? बहरहाल, चीनी राजूदत इन सवालों को टाल गए।
 
चीनी राजूदत ने साक्षात्कार में इन सवालों का भी जवाब नहीं दिया कि टकराव वाले सभी स्थानों से सैनिकों को हटाने के लिए 6 जून को दोनों पक्षों के बीच बनी सहमति का चीन ने उल्लंघन क्यों किया, हालात को हल करने के लिए आगे के क्या रास्ते हैं, और गलवान में हुई झड़पों में चीन के कितने सैनिक हताहत हुए हैं?’
 
भारतीय सीमा पर चीन के व्यवहार के बारे में पूछे जाने पर प्रो. राजामोहन ने कहा कि यह काफी संख्या में भारत के लोगों के लिए भी आश्चर्यजनक हो सकता है, लेकिन यह एक सामान्य पद्धति प्रतीत होती है ,जो अन्य स्थानों पर भी दिखी है। उन्होंने कहा कि तंग श्याओपिंग के तहत चीन ने 1980 और 1990 के दशक में क्षेत्रीय विवादों को ठंडे बस्ते में रखने पर सहमति जताई तथा क्षेत्रीय सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया।
 
उन्होंने कहा, ‘तंग का यह मानना था कि सीमांत क्षेत्रों में अवश्य ही शांति होनी चाहिए और भारत-चीन संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश भी तंग के इस फार्मूले पर आधारित थी कि ‘सीमाओं पर शांति कायम रखी जाए।’ लेकिन हमने (मौजूदा राष्ट्रपति) शी चिनफिंग के तहत पिछले कुछ वर्षों में यह देखा है कि वह शांति का रुख छोड़ रहे हैं और एकतरफा तरीके से दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर में चीन के अधिपत्य का दावा कर रहे हैं। साथ ही, हांगकांग और ताइवान तथा भारत के मामले में भी कहीं अधिक शक्ति प्रदर्शित कर रहे हैं।’
 
उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामकता भारत के लिए सीमित नहीं है, बल्कि ऐसा लगता है कि यह उस पद्धति का हिस्सा है जिसके तहत चीन ने क्षेत्रीय विवादों में अजीबोगरीब तरीके से खुद को पेश किया है। उन्होंने कहा, ‘यह चीन के व्यापक रूपांतरण का हिस्सा है जो शी के नेतृत्व में हो रहा है।’
 
यह पूछे जाने पर कि क्या चीन विश्व-व्यवस्था बदलने की कोशिश कर रहा है? प्रो. राजामोहन ने कहा कि चीन खुद को अमेरिका के खिलाफ स्थापित कर रहा है और खुद को अमेरिका से आगे निकलने वाले देश के तौर पर देखता है। उसका मानना है उसके पास तरीके हैं और वह वैश्विक-व्यवस्था को पुनर्गठित करने की क्षमता रखता है।
 
उन्होंने कहा कि चीन के व्यवहार का एक नकारात्मक परिणाम यह हुआ है कि यह एशिया में अमेरिका को राष्ट्रवादी भावनाओं का सहयोगी देश बना रहा है। ‘आज, उसकी गतिविधियों की वजह से, अमेरिका एशिया में राष्ट्रवाद का एक स्वाभाविक सहयोगी बन रहा है।’
 
उन्होंने कहा, ‘क्षेत्र के एकतरफा बदलाव और एकपक्षीय तरीके से शक्ति हासिल करने की आक्रामक कोशिश कर चीन शेष विश्व को अपने खिलाफ खड़ा कर रहा है।’ पूरा एशिया चीन की ओर देख रहा था क्योंकि उस देश के साथ कहीं अधिक व्यापक आर्थिक अंतरनिर्भरता है। लेकिन आज, चीन के दबाव के चलते शेष विश्व (उससे) अपने कदम पीछे खींच रहा है। (भाषा)