रविवार, 28 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. Violence and hatred are not permanent features of human society

हिंसा, नफ़रत की चुनौती और शांति-सद्भाव की भूख

हिंसा, नफ़रत की चुनौती और शांति-सद्भाव की भूख - Violence and hatred are not permanent features of human society
हिंसा और नफ़रत मानव समाज के स्थाई भाव नहीं हैं। जैसे प्राकृतिक आग सदैव प्रज्‍ज्‍वलित नहीं रहती वैसे ही सांप्रदायिक और जातीय हिंसक घटनाएं भी तात्कालिक रूप से ही घटती हैं। आज ही नहीं, सदियों पहले मनुष्य के मन में हिंसा और नफ़रत के भाव का उदय हुआ। पर एक भी मनुष्य या समाज ऐसा नहीं हुआ जो जीवनभर हिंसा और नफ़रत के साथ जी पाया हो।

मनुष्य समाज के इतिहास में देश और दुनियाभर में ऐसे संगठन और सिद्धांत गढ़े गए हैं जिसे साधन बनाकर हिंसा और नफ़रत को मानव मन में बढ़ाने का रास्ता कुछ समूहों ने पकड़ा है और उसे ही पुरुषार्थ समझते हैं। पर देश और दुनिया की जिंदगी में यह जीवन का प्राकृतिक रास्ता नहीं बन पाया। हमारे समाज में कई संगठनों, संस्थानों और समूहों को हिंसात्मक और नफरती विचार संगठन के तात्कालिक विस्तार के लिए अनुकूल या आकर्षक लगते हों।

हिंसा और नफ़रत की घटनाएं आज के हमारे देश-काल और मन-मस्तिष्क में रोज की सामान्य बात हो गई है। हिंसा को प्रतिष्ठापित करना और अपने संगठन, समूह और विचार का विस्तार करना कई लोगों को तात्कालिक तौर पर लाभकारी लगता है। पर मूलतः ऐसे विचार और संगठित व्यवहार दया के पात्र हैं, क्योंकि ऐसी विचारधाराओं को मनुष्य और विचार की प्राकृतिक ऊर्जा की अनंत शक्ति से अब तक साक्षात्कार ही नहीं हो पाया है।

हिंसा के सहारे विचार व संगठन का विस्तार करने वाले समूहों को समझना चाहिए कि हिंसा और नफ़रत जीवन की बुनियाद नहीं है। फिर भी यह बात किसी संगठन और विचार को समझाना पड़े तो हमारे अंतर्मन में ऐसे संगठन और जमातों के लिए दया और करुणा का भाव ही उपजेगा, हिंसा और घृणा का नहीं, क्योंकि यही सनातन प्राकृतिक विचार और व्यवहार है।

हिंसक घटनाएं और नफरती विचार दूसरे को थोड़ा-बहुत क्षतिग्रस्त तो करते ही हैं, पर स्वयं को भी स्वतंत्र और भयमुक्त जीवन से सबसे पहले और सर्वाधिक वंचित करते हैं। हिंसा और नफ़रत मनुष्य समाज का ताना-बाना नहीं है। आज या कभी भी देश-दुनिया को हिंसा, नफ़रत और विकृत व्यवस्था से नहीं चलाया जा सकता। मनुष्य समाज ने न जाने कितने युद्ध लड़े, पर सबके सब बेनतीजा रहे।

हिंसा और बंदूक के बल पर न जाने कितनी सत्ता बनी, पर वे सब भी हथियारों के साए के सहारे ही अल्पकाल तक चल पाईं। तानाशाही तो उधार की हिंसा और हथियार की ताकत से ही अल्पकाल तक चल पाती है, क्योंकि हिंसा जीवन की विकृति है, प्रकृति नहीं। हिंसा मनुष्यकृत घटना है। नफ़रत मनुष्य के दिमाग को मृत्यु की दिशा में धकेलती है। हिंसा और नफ़रत विचारहीन भीड़ की विकृत तात्कालिक उत्तेजना है।

प्रकृति मूलतः शांत, गहन-गंभीर और जीवनदायिनी है। मनुष्यकृत विध्वंसक विचार और व्यवहार, व्यक्ति और समाज के मन में तात्कालिक रूप से कई चुनौतियां खड़ी करता है, जिससे समकालीन समाज मुंह नहीं मोड़ सकता या पलायन नहीं करता। हमारे देश के प्राकृतिक जीवन से ओतप्रोत पूर्वोत्तर राज्यों में जो चुनौतियां उभरी हैं, वे संकुचित विचार और हिंसक संगठित विकृतियों का उप उत्पाद है।

हिंसा तात्कालिक रूप से मनुष्य को असहाय बनाती है। पर अहिंसा मानव मन में शांति सद्भाव और जीवन को सभ्यता की दिशा में सतत सक्रिय बने रहने की भूख भी जगाती हैं। पूर्वोत्तर में जो हिंसा उभरी है वो मनुष्य समाज में जो भौतिक समस्याएं है, उनका न तो तात्कालिक हल है और न ही सर्वकालिक हल है। हिमालय पर्वत श्रृंखला में बसने वाले मनुष्य समाज के रोजमर्रा के जीवन के सवाल, संघर्ष और समाधान उस तरह नहीं हल हो सकते जैसे मैदान या महानगर में रहने वालों के होते हैं।

पहाड़ और मैदान दोनों ही सदियों से मनुष्य समाज का निवास रहे हैं। आज जब आम मनुष्य को अपनी जिंदगी को चलाने के लिए चूल्हा जलाना कठिन है, वहां जब मनुष्य समाज के घरों को जलाकर, हिंसा और नफ़रत का नंगा नाच करना राज्य, समाज और विचार के सामने आई खुली चुनौती है। चुनौतियां चुप रहने या निष्क्रियता से नहीं हल होती हैं।

आज की दुनिया में कुछ संगठित विचार हिंसा और नफ़रत के साधनों से राज्य और समाज की अगुवाई हासिल करना चाहते हैं। पर प्राकृतिक मनुष्य इस देश और दुनिया में अपने रोजमर्रा के जीवन के सवालों को हिलमिलकर ही हल करता आया है। रोटी जुटाता आया है। स्वयंभू आगेवान विचार और संगठित समूह तात्कालिक लोभ-लालच और विध्वंसक शक्ति से दुनिया में आगे बढ़ना चाहते हों।

पर पहाड़, जंगल, मैदान, नदी किनारे या रेगिस्तान में रहने वाले सारे मनुष्य आजीवन शांति, सद्भाव और आपसी समझबूझ से हिलमिलकर ही सनातन काल से जीते आए हैं। जीवन की प्राकृतिक चुनौतियों को जीवन का अनंत संघर्ष मान उससे जूझते रहने और जीने से शांति और सद्भाव की भूख बढ़ती है।
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)
ये भी पढ़ें
कहीं महंगा न पड़ जाए लेजर हेयर रिमूवल, पहले जान लें क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स