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Written By WD Feature Desk
Last Modified: शुक्रवार, 11 जुलाई 2025 (11:52 IST)

सावन में कढ़ी क्यों नहीं खाते? क्या है आयुर्वेदिक कारण? जानिए बेहतर विकल्प

why kadhi is not eaten in Shravan
sawan me kadhi kyu nahi khate: सावन का महीना आते ही वातावरण में हरियाली, ठंडक और आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्भुत संयोग देखने को मिलता है। इस पवित्र महीने में शिव भक्ति का विशेष महत्व होता है, और साथ ही भोजन और जीवनशैली को लेकर भी अनेक परंपराएं और नियमों का पालन किया जाता है। इन्हीं में से एक परंपरा यह भी है कि सावन के दौरान कढ़ी खाने से परहेज़ किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों कहा जाता है? क्या यह केवल एक धार्मिक मान्यता है, या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक या आयुर्वेदिक तर्क भी छिपा हुआ है?
 
आइए विस्तार से जानते हैं कि सावन में कढ़ी क्यों नहीं खानी चाहिए, और आयुर्वेद इसके बारे में क्या कहता है। हम इस विषय को गहराई से समझेंगे ताकि आप भी अपनी दिनचर्या में सावधानी बरत सकें और इस पावन मौसम का स्वास्थ्य के लिहाज़ से भी पूरा लाभ उठा सकें।
 
कढ़ी क्या है और इसमें क्या मिलाया जाता है?
कढ़ी भारतीय भोजन का एक प्रिय हिस्सा है जो दही और बेसन के मिश्रण से बनाई जाती है। इसे हल्की आंच पर पकाया जाता है और अक्सर इसमें पकौड़ी या हरी मिर्च डाली जाती है। इसका स्वाद खट्टा-तीखा होता है और यह पेट को ठंडक देने वाला माना जाता है। लेकिन यही ठंडक सावन के मौसम में हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।
 
सावन और मौसम का बदलाव
सावन के दौरान वर्षा ऋतु अपने चरम पर होती है। वातावरण में नमी होती है, सूर्य की किरणें बहुत कम मिलती हैं और पाचन तंत्र स्वाभाविक रूप से कमजोर हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार वर्षा ऋतु में शरीर में वात और कफ दोष बढ़ जाते हैं, जिससे पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। ऐसे समय में खट्टे, ठंडे और भारी भोजन शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
 
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से कढ़ी का प्रभाव
आयुर्वेद के अनुसार, कढ़ी में प्रयोग किया गया दही वर्षा ऋतु में अम्लीय (acidic) गुण वाला होता है, जो शरीर में कफ को और बढ़ा देता है। इसके अलावा बेसन एक भारी और देर से पचने वाला अनाज होता है, जो पहले से कमजोर पाचन प्रणाली पर अतिरिक्त दबाव डालता है। यह गैस, अपच, सूजन, और एसिडिटी जैसी समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।
 
कढ़ी खाने से शरीर में जल तत्व और कफ दोष बढ़ सकते हैं, जिससे सर्दी-जुकाम, बुखार, सांस की तकलीफ और गला खराब होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं, खासकर उन लोगों को जो पहले से ही एलर्जी या साइनस से पीड़ित हैं।
 
कढ़ी का खट्टापन और मानसून की समस्याएं
सावन में खट्टे पदार्थों का सेवन विशेष रूप से वर्जित माना गया है। इसका कारण यह है कि खट्टा स्वाद (अम्ल रस) शरीर में पित्त और कफ को असंतुलित कर देता है। इससे त्वचा संबंधी विकार, एलर्जी, थकावट और यहां तक कि फंगल इंफेक्शन जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं, जो मानसून में वैसे ही आम होती हैं। ऐसे में खट्टी कढ़ी पाचन शक्ति को और अधिक प्रभावित करती है।
 
धार्मिक और पारंपरिक कारण
सावन शिवभक्ति का महीना होता है। यह महीना संयम, उपवास, सात्विक आहार और सरल जीवनशैली का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में कढ़ी जैसे तले हुए, मसालेदार और खट्टे व्यंजन से परहेज करने की परंपरा भी इसी सिद्धांत से जुड़ी हुई है, ताकि शरीर और मन दोनों को शुद्ध रखा जा सके।
 
क्या हर किसी को कढ़ी से परहेज करना चाहिए?
हालांकि कुछ लोग जिनकी पाचन शक्ति अच्छी है, वे कढ़ी को कम मात्रा में और ताजे, हल्के मसालों के साथ खा सकते हैं, परंतु जिन लोगों को एलर्जी, एसिडिटी, थायरॉइड, साइनस, अस्थमा या पाचन संबंधी समस्याएं हैं, उन्हें सावन में कढ़ी से दूरी बनाना ही समझदारी है। साथ ही बच्चों और बुजुर्गों के लिए भी यह मौसम थोड़ी अतिरिक्त सावधानी की मांग करता है।
 
विकल्प क्या हो सकते हैं?
यदि आपको हल्का भोजन करना है, तो दाल का पानी, मूंग की दाल, छाछ (बिना नमक), हरी सब्जियों का सूप, सादी खिचड़ी, और लौकी जैसी सब्जियों बेहतर विकल्प हैं। ये न केवल आसानी से पचती हैं, बल्कि शरीर को पर्याप्त ऊर्जा और पोषण भी देती हैं। 


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