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भारत के ट्रिलियनमय प्रदेश और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्वानुमान

भारत के ट्रिलियनमय प्रदेश और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्वानुमान - State of India and Forecasts of the International Monetary Fund
5 मई 2022 को 7 प्रमुख अखबारों में 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की हैडलाइन निम्न तस्वीर में दिख रही थीं। ये सारी खबरें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के 4.5.2022 को घोषित पूर्वानुमान पर आधारित थीं। इन खबरों को हमें सिर्फ एक वाक्यांश समझना चाहिए जिसको कहते हैं संभावित जीडीपी। मेरे व्यक्तिगत विचार से यह संभावित जीडीपी ही सारे पूर्वानुमानों का आधार है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अर्थशास्त्रियों ने आउटपुट गैप के ऊपर पॉलिसी पेपर भी काफी अच्छे लिखे हैं। यह आउटपुट गैप वो अंतर है जो वास्तविक जीडीपी और संभावित जीडीपी के अंतर को दिखाता है। लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब जीडीपी के पूर्वानुमान किए गए हैं।

जीडीपी के पूर्वानुमान पहले भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने किए हैं जिसका भारत के लिए सारांश निम्न तस्वीर में हैं। थोड़ी भीड़भरी तस्वीर है जिसमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व 9 वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक से तथ्य लिए गए हैं। इस तस्वीर में 9 पंक्तियां हैं जिसमें हर पंक्ति में 12 स्तंभ हैं। पहले स्तंभ में पिछले 10 वर्षों की औसत संख्या है और आखरी 3 स्तंभों में अगले 5 वर्षों के जीडीपी के भविष्य का पूर्वानुमान है।

जैसे कि प्रथम पंक्ति में वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक 2014 में वर्ष 2019 की ग्रोथ रेट का 6.8% का पूर्वानुमान है जबकि वास्तविक ग्रोथ रेट 4% थी। इस तस्वीर की दूसरी पंक्ति में वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक 2015 में वर्ष 2020 की ग्रोथ रेट का 7.5% का पूर्वानुमान है जबकि वास्तविक ग्रोथ रेट (-) 6.6% थी जो कि कोविड प्रभावित थी। इस तस्वीर की तीसरी पंक्ति में वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक 2016 में वर्ष 2021 की ग्रोथ रेट का 7.8% का पूर्वानुमान है जबकि वास्तविक ग्रोथ रेट 8.2% थी। इसी तरह से अगर बाकी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुकों का अध्ययन किया जाए तो अर्थव्यवस्था की थोड़ी-बहुत और यथार्थस्थिति दिखेगी।

अगर हम डाटा से आगे जाएं तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को भारत के संघीय ढांचे के अंदर इसके विभिन्न प्रदेशों के ट्रिलियनमय होने की उस आर्थिक गतिशीलता को भी अपने सरवीलांस में लेना चाहिए जो अभी मात्रात्मक नहीं है। विभिन्न प्रदेशों की ट्रिलियनमय होने की यह गतिशीलता तब शुरू हुई जब भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने वर्ष 2018 में इसके उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों को ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया।

टीम उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री ट्रिलियन के लक्ष्य को समाधि के लक्ष्य की तरह एक सच्चे योगी की तरह लगातार पीछा कर रहे हैं। टीम महाराष्ट्र के माननीय मुख्यमंत्री मुंबई शहर और अपने बजटों के द्वारा ट्रिलियन के लक्ष्य के प्रति समर्पित लग रहे हैं। टीम तमिलनाडु के माननीय मुख्यमंत्री भी अपने वित्तमंत्री और अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त अर्थशास्त्रियों की टीम को साथ लेकर चल रहे हैं। माननीय गीता गोपीनाथ जी भी 2016 से 2018 तक टीम केरल की सहायता कर रही थीं। अर्थशास्त्रियों के अपाइंटमेंट के इस मॉडल को बाद में टीम तमिलनाडु ने अपनाया।

टीम कर्नाटक प्रदेश के पास देश की एक तिहाई स्टार्टअप होने का फायदा है। टीम ओडिशा के माननीय मुख्यमंत्री भी जनता के समक्ष अपने प्रदेश को 2030 तक ट्रिलियनमय करने की नीतियों पर अपने विचार दे चुके हैं। बाकी बड़े बड़े प्रदेशों के माननीय मुख्यमंत्री भी धीरे-धीरे ट्रिलियनमय होने की अपनी अपनी सार्वजनिक नीतियां व्यक्त कर ही देंगे। सभी की अपने ट्रिलियनमय होने की अपनी-अपनी विचारधारा है जो लगभग अलग-अलग है।

निजी क्षेत्र के 2 दिग्गज व्यवसायी घराने भी भारत के पांच ट्रिलियनमय हो जाने के प्रति अपने-अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं। सीआईआई भी प्रदेशों के ट्रिलियनमय करने के प्रति सकारात्मक भूमिका निभा रही है। इस परिप्रेक्ष में सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि संभावित जीडीपी की गणनाओं में भारत के प्रदेशों के ट्रिलियनमय होने का बहुत ज्यादा योगदान रहने वाला है। भारत के इन प्रदेशों के ट्रिलियनमय होकर वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रति भी योगदान होगा। लेकिन प्रश्न यह है कि कौनसे सेक्टर में फोकस किया जाए?

वर्ल्ड बैंक के डाटा के अनुसार 2020 में विश्व की अर्थव्यवस्था का नोमिनल जीडीपी 84.74 ट्रिलियन डॉलर था जो की 100 ट्रिलियन डॉलर पर जरूर पहुंचेगा लेकिन प्रश्न है कि कब? अगर 2.5% की ग्रोथ से गिनेंगे तो सन् 2027 और अगर 1% की ग्रोथ से गिनेंगे तो सन् 2037। इसका चार्ट निम्नानुसार है। कुल मिलाकर 16 देश ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य के ऊपर हैं और 8 देश 0.5 डॉलर ट्रिलियन से 1 ट्रिलियन डॉलर के बीच में हैं।

वैश्विक अर्थव्यवस्था के इन 16 देशों में 5 देश भारत से आगे हैं जिनमें से यूएसए का हिस्सा 25% है, चाइना का 17%, जापान का 5.9%, जर्मनी का 4.5%, यूके का 3.25% है। भारत का 3.13 % है। फ्रांस का 3.1% और इटली का 2.2% है। बाकी फिर, कनाडा, कोरिया, रूस, ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, मैक्सिको और इंडोनेशिया का 1% से 2% है।

लेकिन जैसे ही वैश्विक स्टार पर सेक्टर के अनुसार सॉर्टिंग करते हैं पूरी स्थिति बादल जाती है। वर्ष 2015 के सीआईए फ़ैक्ट बुक के अनुसार कृषि के क्षेत्र में चाइना प्रथम और भारत द्वितीय स्थिति पर है। औद्योगिक क्षेत्र में चाइना प्रथम है और फिर यूएसए, जापान और जर्मनी के पश्चात भारत की स्थिति आती है। वैश्विक सेवाओं के सेक्टर में यूएसए, चाइना, जापान, जर्मनी, यूके, फ़्रांस और इटली के बाद भारत का नंबर आता है।

अब ऐसी स्थिति में जब हमारे प्रदेश ट्रिलियनमय होने की ओर अग्रसर हैं तब हमें सर्वोत्तम तकनीकी का उपयोग करके कृषि पर बहुत ज्यादा तकनीकी ज़ोर देकर इसको बढ़ाना चाहिए। चाइना के अतिरिक्त भारत बाकी समस्त विकसित देशों से आगे तो है। मेरे अनुसार हमें अपने उपग्रामों तक अपने उपग्रहों की सेवाएं बढ़ानी चाहिए। सुपर कम्प्यूटर, एआई और क्वान्टम कम्प्यूटिंग का क्रेज थोड़ा इस क्षेत्र की ओर भी बढ़ना चाहिए। अगर यह होता है तो शायद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की संभावित जीडीपी की गिनती थोड़ी सी बदले।

(इस लेख में लेखक के स्वयं के विचार और विश्लेषण हैं। लेखक भारतीय राजस्व सेवा में अतिरिक्त आयकर आयुक्त के पद पर वाराणसी में नियुक्त हैं और मूलत: बुंदेलखंड के छतरपुर जिले के निवासी हैं। इन्होंने लगभग 8 वर्ष इसरो में वैज्ञानिक के तौर पर प्रमुखतया उपग्रह केंद्र बेंगलुरु में कार्य किया जिसमें अहमदाबाद, त्रिवेंद्रम, तिरुपति जिले की श्रीहरिकोटा एवं इसराइल के वैज्ञानिकों के साथ भी कार्य किया।)