‘पाताल लोक’ का वो ‘सत्य’ जिसे इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी ने ‘वॉट्सएप’ पर पढ़ा था
राजनीति, मीडिया और सिस्टम की आत्मा तक धंसे कीचड़ में डूबकर भी पवित्र बाहर निकलता है पाताल लोक का इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी
ये कलयुग है, लेकिन इस युग में ‘पाताल लोक’ सुर्खियों में है। अपनी कहानी के लिए और अपनी गहराई के लिए। इस पाताल लोक की गहराई का अंदाजा सिर्फ उसे ही होता है जो इसमें धंसता है और डूबता है।
हमारा सिस्टम भी शायद ऐसे ही किसी पाताल लोक की गहराई लिए हुए है। जो बाहर से या ऊपर से साफ-सुथरा और व्यवस्थित नजर आता है, लेकिन इसके भीतर कीचड़ ही कीचड़ है। सिस्टम की आत्मा तक सना हुआ कीचड़।
जिस सिस्टम को हम खराब और दलदलभरा कहते हैं इंस्पेक्टर हाथीराम उसी में डूबकर नहाता है। उसकी गहराई में धंसता जाता है और धीरे-धीरे पवित्र होकर बाहर निकलता है अपने सत्य के साथ।
हाथीराम दो चीजों के लिए सिस्टम के इस दलदल में डुबकी लगता है, पहला एक मीडियाकर्मी की हत्या की साजिश के पीछे का सत्य जानने के लिए और दूसरा खुद को साबित करने और खुद की खोज के लिए।
हाथीराम (जयदीप अहलावत) एक फ्रस्ट्रेटेड बाप का बेटा था और अब उसे लगता है कि उसका बेटा भी उसे फ्रस्ट्रेटेड समझता है। उसे खुद भी करीब 15 साल की पुलिस की नौकरी में कोई प्रमोशन नहीं मिला है।
एक दिन हाथीराम को मीडियाकर्मी संजीव मेहरा (नीरज काबी) की हत्या की साजिश की जांच का केस मिलता है। वो छानबीन में जुट जाता है, लेकिन अपनी गलतियों के चक्कर में न सिर्फ केस सीबीआई को सौंप दिया जाता है, बल्कि उसे सस्पेंड भी कर दिया जाता है।
हाथीराम अब सस्पेंडेड है लेकिन वो फिर भी केस की जांच में भटकता है। कभी चित्रकुट तो कभी पंजाब। क्योंकि सीबीआई ने जो सत्य दुनिया के सामने रखा है वो झूठा है, फर्जी है। सीबीआई ने संजीव मेहरा की हत्या की साजिश के तार आईएसआई और पाकिस्तान से जोड दिए जबकि यह साजिश राजनीतिक सिस्टम, माफिया और मीडिया की भूमिका का बुना हुआ जाल होता है।
जो दिखता है वो भ्रम है और जो नहीं दिखता उस सत्य की तलाश है। इसी तलाश में जब हाथीराम उतरता है तो डूबता जाता है। राजनीतिज्ञ पुलिस के आला अधिकारी और मीडिया की साजिशों के बीच एक अकेला ईमानदार अधिकारी जब इस जाल को कतरने की कोशिश करता है तो वह यह नहीं सोचता कि दलदल के उस पार जब उसे वो सत्य हासिल हो जाएगा तो वो उसका क्या करेगा। वो डूबता जाता है और खुद को पाता जाता है।
अपनी कहानी की शुरुआत में डरा और हिचकिचाया हुआ इंस्पेक्टर हाथीराम धीमे-धीमे खुलता जाता है।
धरती लोक और पाताल लोक के कीचड़ में हर आदमी की आंख और गर्दन झुकी हुई है। ऐसे में खुद को बनाए और बचाए रखने के संघर्ष में वो सत्य के इतने करीब पहुंच जाता है कि कोई भी उससे आंख नहीं मिला पाता है।
सिस्टम के कीचड में डूबकर भी वहां से पवित्र होकर निकलता है इंस्पेक्टर हाथीराम। क्योंकि उसने कोई शास्त्र नहीं पढ़ा है। वो सिर्फ इतना जानता है कि-
‘ये जो दुनिया है न दुनिया, ये एक नहीं, तीन दुनिया है। सबसे ऊपर स्वर्गलोक जिसमें देवता रहते हैं। बीच में धरती लोक जिसमें आदमी रहते हैं। और सबसे नीचे पाताल लोक, जिसमें कीड़े रहते हैं। वैसे तो यह शास्त्रों में लिखा हुआ है, पर मैंने वॉट्सएप पर पढ़ा था।’
नोट: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अभिव्यक्ति है। वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।