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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 11 अगस्त 2025 (16:51 IST)

खुदीराम बोस शहीद दिवस, जानें भारतीय अमर सेनानी की कहानी

Khudiram Bose history
August 11 Khudiram Bose History: आज 11 अगस्त, महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस का शहीद दिवस है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में, खुदीराम बोस का नाम सबसे कम उम्र के उन क्रांतिकारियों में शामिल है, जिन्होंने देश के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे को गले लगा लिया था। उनका बलिदान आज भी हर भारतीय को प्रेरित करता है। यह दिन उनके बलिदान और देशभक्ति को याद करने का दिन है, जब उन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर किए थे। ALSO READ: 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर यदि जाना चाहते हैं लाल किला, जानिए कैसे करें अपनी जगह बुक
 
आइए जानते हैं भारत के इस अमर सेनानी की कहानी:
 
प्रारंभिक जीवन और क्रांतिकारी यात्रा: 
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में हुआ था। बचपन में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद उनकी बड़ी बहन ने उनका लालन-पालन किया। छोटी उम्र से ही खुदीराम के मन में अंग्रेजों के प्रति गहरा रोष था।
 
सन् 1905 में, जब बंगाल का विभाजन हुआ, तो खुदीराम बोस ने स्कूल छोड़ दिया और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। वे 'युगांतर' नामक क्रांतिकारी दल से जुड़ गए और ब्रिटिश राज के खिलाफ होने वाले प्रदर्शनों और सभाओं में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने लगे। मात्र 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में कदम रख दिया था। उनकी बहादुरी और निडरता को देखकर उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़ा अभियान चलाने की जिम्मेदारी दी गई।ALSO READ: 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस एंकरिंग/मंच संचालन स्क्रिप्ट हिंदी में
 
किंग्सफोर्ड पर हमला और गिरफ्तारी:
खुदीराम बोस को क्रांतिकारियों के प्रति क्रूरता के लिए कुख्यात ब्रिटिश मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या का काम सौंपा गया। किंग्सफोर्ड को मुजफ्फरपुर में सत्र न्यायाधीश के पद पर भेजा गया था। 30 अप्रैल 1908 को, खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड की बग्घी समझकर उस पर बम फेंक दिया। दुर्भाग्यवश, उस बग्घी में किंग्सफोर्ड नहीं, बल्कि दो निर्दोष ब्रिटिश महिलाएं सवार थीं, जिनकी मौत हो गई। इस घटना के बाद, प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मारकर शहादत दी, जबकि खुदीराम बोस को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया।
 
शहादत और अमरता: 
गिरफ्तारी के बाद, खुदीराम बोस पर मुकदमा चलाया गया। मात्र 18 साल की उम्र में, उन्होंने अदालत में न केवल अपने अपराध को स्वीकार किया, बल्कि देश की आजादी के लिए अपने साहस और दृढ़ विश्वास को भी दर्शाया।
 
11 अगस्त 1908 को, उन्हें मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। फांसी के फंदे पर चढ़ते समय भी उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। उनके अंतिम शब्द थे 'वंदे मातरम!'। उनकी शहादत ने पूरे देश में देशभक्ति की एक नई लहर पैदा कर दी।

उनके बलिदान से भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस और अन्य कई क्रांतिकारियों को प्रेरणा मिली। खुदीराम बोस की स्मृति में आज भी उनके गांव और मुजफ्फरपुर की जेल में श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित की जाती हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि देशप्रेम और साहस की कोई उम्र नहीं होती।
 
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