Azadi ka safar: 15 अगस्त सिर्फ एक तारीख नहीं है, बल्कि हर भारतीय के लिए गर्व, त्याग और स्वतंत्रता की एक ऐसी महागाथा है, जो हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहती है। यह उस दिन की कहानी है जब सैकड़ों सालों की गुलामी के बाद हमारा देश आजाद हुआ था। यह कहानी है उन लाखों-करोड़ों देशभक्तों की, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमें यह आजादी दिलाई।
आजादी की सुबह का संघर्ष: यह कहानी 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से शुरू होती है, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी थी। मंगल पांडे की क्रांति से लेकर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत तक, रानी लक्ष्मीबाई का शौर्य, और सुभाष चंद्र बोस की 'आज़ाद हिंद फ़ौज' का संघर्ष, इस गाथा के अनगिनत अध्याय हैं।
गांधी जी का अहिंसक आंदोलन और 'भारत छोड़ो' का नारा इस कहानी को एक नई दिशा देता है। इन सभी महानायकों ने अपने-अपने तरीके से 'आजादी' के एक ही सपने को जिया और देश के कोने-कोने में देशभक्ति की लौ जलाई।
मध्यरात्रि का वो क्षण: 14 अगस्त और 15 अगस्त 1947 की वो मध्यरात्रि, जब दुनिया सो रही थी, तब भारत जाग रहा था। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली के लाल किले से अपना ऐतिहासिक भाषण दिया, 'आज हम इतिहास के साथ एक वादा निभा रहे हैं... जब दुनिया सो रही होगी, तब भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जागेगा।' इस एक क्षण में सदियों की गुलामी का अंत हुआ और एक नए, स्वतंत्र भारत का जन्म हुआ।
गौरव, जिम्मेदारी और संकल्प: 15/ पंद्रह अगस्त की गाथा सिर्फ आजादी मिलने की खुशी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें उन शहीदों के बलिदान की याद दिलाती है, जिन्होंने देश के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया। यह हमें हमारी जिम्मेदारी का एहसास कराती है कि इस आजादी को बनाए रखने और देश को आगे ले जाने का दायित्व अब हमारा है।
आज, जब हम 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, तो यह कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम सभी मिलकर एक ऐसा भारत बनाएं, जहां हर नागरिक को समानता, न्याय और सम्मान मिले। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारा तिरंगा सिर्फ एक झंडा नहीं, बल्कि हमारे गौरव, एकता और स्वाभिमान का प्रतीक है।
'जय हिंद! वंदे मातरम्!'
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