तेरी मेहरबानियां, चल यार धक्का मार, अल्लाह रक्खा
बच्चों को जानवरों से विशेष प्रेम होता है और जब जानवर किसी फिल्म में अहम रोल निभा रहे हों तो बच्चे बड़े शौक से ऐसी फिल्में देखते हैं। हालांकि अब फेसबुक युग में बच्चों के शौक और पसंद बदल रहे हैं। वे वर्चुअल वर्ल्ड की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, लेकिन 80 और 90 के दशक में जन्में लोगों का बचपन तेरी मेहरबानियां, हाथी मेरे साथी, सफेद हाथी जैसी फिल्में देखकर बीता और आज भी यादें ताज़ा हैं।
1985 में रीलीज़ हुई फिल्म 'तेरी मेहरबानियां' में मोती हीरो है। मोती एक ट्रेंड कुत्ता है और वह न केवल अपने मालिक की हत्या का बदला लेता है, बल्कि पुलिस को वीडियोग्राफी के रूप में हत्यारों के खिलाफ सुबूत भी देता है। इस फिल्म का टाइटल गीत, खास तौर पर रामबाबू (जैकी श्राफ) के अंतिम संस्कार के समय यह गीत बच्चों को काफी रुलाता है। उस समय के लोग बताते हैं कि 'तेरी मेहरबानियां' की रीलीज़ के बाद अपने बच्चों की जिद के कारण काफी लोगों ने घरों में कुत्ते पाले।
बच्चों ने केसी बोकाडिया की यह फिल्म बेहद पसंद की और वे अपने माता पिता को लेकर कई कई बार यह फिल्म थिएटर में देख आए और इसका कारण था मोती। मोती ने 'बच्चा दर्शकों' की जो भीड़ सिनेमाघरों में खींची, उससे इस फिल्म के सामने रीलीज़ हुई रमेश सिप्पी की रोमांटिक फिल्म 'सागर' फीकी पड़ गई और उतने दर्शक नहीं खींच पाई जितनी कि तेरी मेहरबानियां ने खींच लिए। यानी मोती ने रिषी कपूर, डिंपल कपाडि़या, कमल हसन जैसे बड़े नामों के साथ शोले जैसी महान फिल्म बनाने वाले निर्देशक को भी फेल कर दिया।
देखा जाए तो मोती ने सिर्फ बच्चों को आकर्षित किया और बचा हुआ काम बच्चों ने अपने माता पिता से करवा लिया। इसी तरह 1971 में रीलीज़ हुई् फिल्म हाथी मेरे साथी में रामू हाथी के कारनामें देखकर बच्चों ने खूब तालियां बजाई और जब क्लाइमैक्स में केएन सिंह रामू को गोली मार देते हैं तो माता पिता के लिए अपने बच्चों को चुप करवाना मुश्किल हो जाता है।
सूरज बडजात्या ने फिल्म 'हम आपके हैं कौन' में 'टफी' से कबूतरों वाला काम लिया। सलमान खान की चिट्ठी वाया माधुरी दीक्षित मोहनीश बहल तक पहुंचाई और फिल्म का सुखदायी अंत करवाया वरना तो प्रेम को निशा कभी नहीं मिलती। वैसे इस फिल्म में टफी ने क्रिकेट मैच में अंपायर बनकर भी बच्चों को खूब गुदगुदाया।
फिल्म कुली में अमिताभ बच्चन अपने बाज़ दोस्त को कई बार आवाज़ लगाते दिखाई दिए। जब भी अमिताभ बाज़ को उसके नाम अल्लाह रक्खा से बुलाते हैं, वह फौरन ऊंचे आसमान से सीधे नीचे गोता लगातर बच्चन साहब के बाज़ू पर बैठ जाता है और फिर बच्चन उससे बातें करते हैं। कुली में अल्लाह रक्खा के किरदार का मूल कहानी से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन इसने बच्चा पार्टी पर गज़ब का असर डाला। फिल्म के दौरान बच्चे पूछते थे, अल्लाह रक्खा कब आएगा? बच्चों के लिए ये अल्लाह रक्खा, रामू और मोती ही हीरो हैं जो बालमन को अपनी ईमानदारी और मासूमियत से मोह लेते हैं।